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________________ 27 कुन्दकुन्द सर्व प्रयम पान्जूर पर्वत पर जाकर समयसार की रचना करते हैं कौण्डेश से कुन्द कुन्द | उत्तर भारत विहार के समय साधुओं के आचरण को देखकर करते हैं कि (समयमा सार (है। समयसार सद्गुणों की ही वन्दना कीर (है,जो आत्मा जाती है। इसके बिनाव्ययित) नुभूति है। न तो सच्चा मुनि हो सकता है और न ही श्रावक ALL TRA | जो मुनिवेषी होकर भी गन्दी भावना रखता | || उनके तर्कसंगत आत्महितकारी वचनों को सुन है, स्त्री सम्पर्क करता है, वहातो मुनि है ही। कर लोग प्रभावित हुए। श्वावक चची करने लग.) नहीं, तिर्यंच है। देखो तो सही ७०० मुनियों का संघ। एक तरफ अध्यात्मप्रतिष्ठा और दूसरी ओरचारित्र को जीवित किया | हां ! हो। क्यों नहीं,यदि कुंद कुंदाचार्य लोग तो सवस्त्र मोक्ष पाने को बेठे थे,या न होते तो साधुओं में आए भ्रष्टाचरण फिर नंगे होकर पूजे जाने के लिए आतुर को कौन रोक सकता था?) थे। मुनिधर्म का निर्वाह कान करे?)
SR No.033209
Book TitleKaudesh se Kundkund
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYogesh Jain
PublisherMukti Comics
Publication Year2000
Total Pages32
LanguageHindi
ClassificationBook_Comics, Moral Stories, & Children Comics
File Size33 MB
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