Book Title: Kaudesh se Kundkund
Author(s): Yogesh Jain
Publisher: Mukti Comics

View full book text
Previous | Next

Page 20
________________ मुक्ति कॉमिक्स (तुम्हे जाना है तो जामो । परन्तु मनिह किसी के श्रीन नहीं सोरिस के आने पर उपदरा ) (इसको क्या है। गय मुनिश्वार तिको समयब्यश्री करनार टही। वास्तव में हमारी कह रहा है। जिसका भाग्य पूण्य का उदय अन) नहीं का अच्छा नहीं उसे स्सेही अशुभ विचार आते हैं। सांसारिक कार्य तो चलते ही है, रुकते नही।) फिर में क्यों मुनिराज के दरनि-प्रवचनादि के सुनने से चित राई। कितना समय) हो, मैं प्रवचन सुनकर ही जाऊंगा। थोडा धीमे-धीमें बोलिए आदरणीय कहीं बातचीत से महाराज का ध्यान भंग न हो। अभी वे सिबों से वार्ता कर रहे हैं। हो! हां! वह बालक ठीक ही कह रहा है,ध्यान तभी मुनिराज का ध्यान भंग होता है।वेजन-समूह की अवस्था तो सिद्ध भगवंतों से वार्ता की ली को सम्मुख देखकर उपदेश देने लगते है। अवस्था है। (परमसत्य, हमें शांति से कलशुद्धत्मा को जाने बिना दुःख ही दुःख है। सुरव के ||लिए अहिंसा, दूया, सत्याचरण करना चाहिए उनकायका अनुमादनायटिसंभव हो तो मनियमधारण करना चाहिए। कर पुण्य का भागीदार होनाचाहिए

Loading...

Page Navigation
1 ... 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32