Book Title: Katyayanas Sarvanvkramani of Rigveda
Author(s): A A Macdonell
Publisher: Clarendon Press
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॥ वेदार्थदीपिका ॥
खगोत्यान्मेषुमायेति कल्पहर्गणने सति । सवीनुक्रमणीवृत्तिजीता वेदार्थदीपिका ॥१३॥ लक्षाणि पंचदश वै पंचपष्टिसहस्रकं । सद्वात्रिंशच्छतं चेति दिनवाक्याथै ईरितः ॥१४॥ विनायकः शूलपाणिर्मुकुंदः सूर्यो व्यासः शिवयोगीति परे । नमामि तान् सर्वदा पातु मां ते या पडिः सप्त विद्यास्तु दनाः ॥१५॥ भाद्या सर्वानुक्रमणी द्वितीया महाव्रतं चोपनिषड्यं च । महाव्रतं सूत्रमासां तृतीया चत्वारिंशद्रामणं वै चतुर्थी ॥१६॥ सूत्रं पंचम्यत्र 10 षष्ठी तु गृह्म शाकल्यस्य संहिता सप्तमीति । इमा दना विद्यास्तु सद्भिः षड्भ्यो गुरुभ्यो हि नमोऽस्तु तेभ्यः ॥१७॥ इति घनरूशिष्येण कृता वेदार्थदीपिका।
सानुक्रमणीवृत्तिः समानेष्टार्थपुष्टये ॥१॥ ॥ इति पद्गुरुशिष्पविरचितायां सानुक्रमणीवृत्तौ वेदार्थदीपिकायां प्रथमोऽध्यायः समान:13 ॥
__1 WI; गांत्यांमेषमासेति P1; गणांत्यामेषमासेति P2, I 2 (T 4 omits verses 12-18).
कल्यहोगणने W1; कलिशुद्धदिनहोगणने PI; किलशुद्धदिनहोगणने P2, I 2. WI; ल-पंचदश वै PI; लक्षपंचदशपदैः P2, I 2. 4 WI; oर्थ हीरित: PI, P2, I 2. These two slokas (13 and 14), which give the date of the Vedârthadîpika, are fully explained by Weber, Ind. Stud. vol. viii, p. 160, note. P1, P2, I 2; F IAT W 1. In the Introd. to Shadg.'s comm. (Weber's Catal., p. 14) Sûlapâni is called Salanka, and Mukunda is called Govinda. घड्भ्यो PI, P2, I 2; पड्भ्यो WI. PI, Wr; प्रदत्ताः P2, I2. PI, P2, 12; आद्यानुक्रमणी WI. शं PI. 10 WI; सूत्रं पंचम्युPI; तद्वत्सुत्रं पंचमी वै निरुतं P2, I 2. 11 PI, P2, I 2 add सप्त. 12 WI; चार्यपुष्टये P1; आत्मतुष्टये P2, I 2. 13 PI, I 4 add समाप्तमिदं शासं समाप्ता चेयं वृतिः सानुक्रमणीवृत्तिः।
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