Book Title: Karm Ki Gati Nyari Part 05
Author(s): Arunvijay
Publisher: Jain Shwetambar Tapagaccha Sangh Atmanand Sabha

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Page 4
________________ अज्ञान दशा में जिन कर्मों को खपने में, क्षय होने में करोड़ों वर्ष लगते हैं उन कर्मों को ज्ञानी महात्मा श्वासोच्छवास परिमित काल में क्षय कर लेता है । अत: अज्ञान साधना कष्ट साध्य हैं । ज्ञान साधना सहज साध्य बननी चाहिए । ज्ञानयोग की गरिमा है । योग साधना साधक ने साध्य कर भी ली परन्तु उसमें ज्ञान नहीं आया तो वह साधना बिना सुगंध के पुष्प की तरह शुष्क बन जाती है । श्रतः करोड़ों भवों के संचित पाप कर्मों को ज्ञानी श्वासोच्छवास परिमित काल में क्षय कर सकता है । इसलिए दर्शनोपासना, चारित्राराधना, तपाराधना में यदि ज्ञान मिश्रित होता है, मिलता है तो सोने में सुगंध की तरह उसकी कीमत हजार गुनी बढ़ जाती है । अन्यथा ज्ञानाभाव में चारित्र साधना तथा तपाराधना आदि कष्टसाध्य बन जाती है | ज्ञानी ज्यादा है कि अज्ञानी ? समस्त संसार के जीवों का सर्वेक्षण किया जाय तो संसार में ज्ञानी ज्यादा मिलेंगे कि अज्ञानी ? सुखी ज्यादा मिलेंगे या दुःखी ? पापी ज्यादा मिलेंगे या पुण्यशाली ? धर्मी ज्यादा मिलेंगे या अधर्मी ? उसी तरह मिथ्यात्वी ज्यांदा मिलेंगे या सम्यक्त्वी ? आपको आश्चर्य होगा कि इन सब प्रश्नों के उत्तर में - प्रज्ञानी, दुःखी, पापी, अधर्मी, तथा मिथ्यात्वीयों की संख्या बहुत ज्यादा थी धौर है । ज्ञानी जगत् में गिने गिनाए मिलेंगे । सुखी पुण्यशाली तथा धर्मी एवं सम्यक्त्वी जीव भी संसार में गिने गिनाए ही मिलेंगे । यह संख्या बहुत अल्प है । प्रज्ञानियों की लम्बी-चौड़ी संख्या के सामने ज्ञानियों की संख्या नगण्य है । सीमित है। काफी अल्प है । इतना ही नहीं भूतकाल में भी बहुत अल्प थी वर्तमान में और भी ज्यादा घटकर अल्प हो गई है । तथा भविष्य में कभी भी धर्मियों की, ज्ञानियों की, सम्यक्त्वीयों की तथा पुण्यशालियों की संख्या अधर्मी, अज्ञानी, मिथ्यात्वी या पापी जीवों से बढ़ने वाली भी नहीं हैं । न भूतो न भविष्यति जैसी बात है । कर्मक्षय करने वालों की अपेक्षा कर्म बंध करने वालों की संख्या अनेक गुनी ज्यादा ही रही है । यह स्थिति त्रैकालिक है । तीन काल में यही स्थिति रहती है । शायद आप सोचेंगे कि क्यों ? क्या कारण है ? कारण प्रांखों के सामने स्पष्ट प्रत्यक्ष ही है कि पाप प्रवृत्ति जीवों की ज्यादा है । पापकर्म का बन्ध ज्यादा है अतः परिणाम क्या आएगा ? कर्म बंध के कारण जब कर्म उदय में आएगा तब आत्मा के ज्ञानादि गुणों का प्राच्छादन हो जाएगा । सारी प्रवृत्तियां कर्माधीन ज्यादा हो जाएगी । अज्ञान क्या है ? मिथ्यात्व क्या है ? आत्मा के ज्ञान गुण को ढकने वाले ज्ञानावरणीय कर्म के कारण प्रज्ञान उदय में है । दर्शन मोहनीय कर्म के कारण यथार्थ श्रद्वा का गुण ढक गया, दब गया श्रत: मिथ्यात्व कर्म की गति न्यारी २४६

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