Book Title: Karm Ki Gati Nyari Part 01 Author(s): Arunvijay Publisher: Mahavir Rsearch Foundation Viralayam View full book textPage 6
________________ प्रस्तावना बेडी में या जेल में बंधा हुआ कैदी अपने आपको बन्धनग्रस्त न मानकर यदि मुक्त माने तो यह कितनी बडी अज्ञानता सिद्ध होगी ? ठीक इसी तरह समग्र संसार के छोटे-बड़े सभी संसारी जीव कर्म के बंधन से जो बंधे हुए हैं, वे यदि अपने आपको मुक्त माने तो यह कितनी बड़ी अज्ञानता सिद्ध होगी ? जो संसारी हो और कर्मग्रस्त न हो ऐसा एक भी जीव नहीं है, और न ही हो सकता है । संसारी होना यही सिद्ध करता है कि- किसी ने किसी प्रकरार के कर्मों से बंधन ग्रस्त है ही । जिस दिन संसार से मुक्त हो जाएगा, संसार का बंधन ही नहीं रहेगा, बस उसी दिन जीव कर्म जंजीरे से भी सदा के लिए मुक्त होगा। यदि इस भाषा को इस तरह कहें कि जिस दिन कर्म बंधन से मुक्त होगा, उसी दिन संसार के बंधन से मुक्त होगा। क्योंकि संसार का आधार कर्मों पर ही है। कर्म जन्य संसार और पुनः संसार जन्य कर्म, इस तरह दोनों ही एक दूसरों के कार्य-कारण बनकर जन्य-जनक होते हैं। कर्म से संसार बनता है, संसार से पुनः कर्म बंधते ही जाते है। जैसे अंडे से मूर्गी और मूर्गी से अंडा, अंडे से मूर्गी और मूर्गी से अंडा यह क्रम चलता ही रहता है, उसी तरह कर्म द्वारा संसार और फिर संसार द्वारा कर्म, यह क्रम अनन्त काल तक चलता ही रहता है। शायद यह पढकर आप ऐसा सोचेंगे कि तो फिर इस कर्मचक्र से कभी छुटकारा हो ही नहीं सकता है ? नही, ऐसी बात नहीं है। जैसे यदि कहीं अंडा फुट जाय तो मूर्गी पैदा नही होगी और यदि कहीं मूर्गी जल्दी ही मर जाय तो अंडा ही पैदा नहीं होगा तो आगे क्रम नहीं चल सकेगा। ठीक उसी तरह यदि नए कर्म बांधने ही बंद कर दिये जाय, और साथ ही भूतकाल के समस्त पूराने कर्मो का क्षय (निर्जरा) कर दी जाय तो यह जीव कर्मबंधन से सर्वथा मुक्त हो जाएगा। तो संसार का चक्र सदाकाल के लिए रुक जाएगा। कर्ममुक्ति किल मुक्तिरेव बस, यही कर्ममुक्ति ही सच्ची मोक्ष है। जो मुक्त हो चूका हो उसका संसार से छुटकारा हो ही गया हो, क्योंकि संसार का कारण कर्म था और कर्म के कारण ही संसार चल रहा था, अतः मूलभूत कारण स्वरुप कर्मो का ही क्षय हो जाता है । सर्वथा समूल साद्यन्त नष्ट हो जाने के पश्चात् संसार ही कहां से रहेगा? ऐसी अवस्था में जीव संसार से उपर उठ जाएगा, संसार रहित असंसारी-मुक्त बन जाएगा। मुक्त और संसारी यही दो मूलभूत अवस्था जीवों की है। अतः मुक्त जीव सभी सर्वथा सर्व कर्म रहित होते हैं। जब जीव मुक्त हो गया तब अशरीरी भी बन गया है। मोक्ष में अब इस शरीर के बंधन की भी आवश्यकता नहीं है। बस, मुक्त तो मुक्त ही है। हर तरह से सब दृष्टि से मुक्त ही है। संसार के बंधन से मुक्त है, राग-द्वेष से मुक्त, शरीर संबंध से मुक्त, जन्म-मरण के चक्र से मुक्त बस, हर तरह से सब दृष्टि से मुक्त वहि सच्चा मुक्त है। सदा के लिए मुक्त है वहि मुक्ति-मोक्ष है। उस मुक्तात्मा को न तो वापिस संसार में आना है, न हि कर्म बांधने है, नहि जन्म-मरण धारण करने है । न ही शरीर बनाना है और न हि संसार बसाना है। नही कुछभी नहीं, कभी भी नहीं न सुख, न दुःख । कभी भी नहीं, कदापि नहीं । सदा अनन्त काल के लिए अशरीरी, असंसारी, अकर्मी, अजन्मा ही रहेगा। स्वस्वरुपमें मुक्तात्मा सदा आनन्द ही आनन्द सच्चिदानंद की अनुभूति करती ही रहेगी। भले अनन्त काल बीत जाय फिर भी क्या ? अब मुक्तात्मा काल निरपेक्ष-काल से परे अकाल बन गई है । काल से जो परे उपर उठ गयी है, उसके लिए काल का बंधन रहा ही नहीं है। अतः वह संसार बस, -Page Navigation
1 ... 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 ... 236