Book Title: Kappasuttam Vhas Vises Chunni Sahiyam Part 02
Author(s): Bhadrabahuswami, Sanghdasgani Kshamashraman, 
Publisher: Shubhabhilasha Trust

View full book text
Previous | Next

Page 286
________________ भासगाहा - ४८१७-४८२५ ] इओ उद्देस इदाणि थंडिल्ले जयणा तं चेव पुव्वभणितं, पत्तेयं दिस्समाणें कुरुकुया य । थंडिल्ल सुक्ख हरिए, पवायपासे पदेसेसु ॥ ४८२१॥ "तं चेव पुव्वभणितं ० " गाहा । अस्य व्याख्या पढमासइ अमणुण्णेतराण गिहियाण वा वि आलोगं । पत्तेयमत्त कुरुकुय, दवं च परं गिहत्थेसुं ॥४८२२॥ ते परं पुरिसाणं, असोयवादीण वच्च आवातं । इत्थी नपुंसकेसु वि, परम्मुहो कुरुकुया सेव ॥४८२३॥ ६९५ “पढमासइ०" [ "तेण परं० " ] गाहा । सेसं कण्ठ्यम् । बाहिं अलब्भमाणे सुक्कतणाण मज्झे, असइ मीसए, असइ हरिए । पएसणीसाए अहवा तेसिं वि दिन्नं अगडा पागारो वा होज्ज तत्थ पासे वोसिरंति । एसा उच्चारजयणा । इदाणिं सरीरपरिद्वावणियाजयणा । पच्छन्न पुव्वभणियं, विदिण्ण थंडिल्ल सुक्ख हरिए य । अगड वरंडग दीहिय, जलणे पासे पदेसेसु ॥४८२४॥ अन्नाए परलिंगं, उवओगद्धं तुलेत्तु मा मिच्छं । णाते उड्डाहो वा, अयसो पत्थारदोसो वा ॥ ४८२५॥ "" 'पच्छन्न पुव्व भणियं ० " [ "अन्नाए० " ] गाहा । 'पच्छन्न पुव्व भणियं "ति जइ बाहिं हीणणाए लब्भइ तत्थ पुव्वभणिएण विहिणा दिसा अवरदक्खिणा सो चेव विही पुव्वुत्तो (गा० १६३०) । अह न लब्भइ ताहे जं विदिन्नं थंडिल्लं तहिं अप्पहरिए असइ सुक्कतणाण मज्झे, असइ हरिएसु वि । अहवा एक्को पासो दिन्नो अगडे वा छुब्भेज्जह अद्ध पागाराए छुब्भेत्ति नदीए वा डज्झइ वा अवस्सं दहियव्वो । “केणइ कारणेणं" (?) तत्थ जइ केण केणइ कारणेणं तत्थ जइ केणइ न नायं ताहे किंचि कालं संबंधेक्खावेत्ता जा उवओगं गच्छइ, मा मिच्छत्तं जाहिति ताहे परलिंगं काउं रत्ति छड्डिज्जइ । जो पुण णाओ - मओ त्ति तत्थ जइ एवं करेंति तो उग्ग(ड्डा)हो अयसो य। एसा सरीरपरिट्ठावणियाजयणा । इदाणिं भिक्खाजयणा

Loading...

Page Navigation
1 ... 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423