Book Title: Kappasuttam Vhas Vises Chunni Sahiyam Part 02
Author(s): Bhadrabahuswami, Sanghdasgani Kshamashraman, 
Publisher: Shubhabhilasha Trust

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Page 346
________________ भासगाहा-५१५०-५१६२] चउत्थो उद्देसो ७५५ "उवहय उवकरणम्मि०" गाहा । कविलगो नाम चेल्लगो तस्स सेज्जायरभूणियाए संपलग्गस्स सागारियं सअंडं छिन्नं । तस्स कम्मोदएणं अहोटुं भंगं जायं । ततो फुफियअग्गिसमाणो इत्थिवेदो से उदिन्नो नपुंसगवेदो वि । आसगपोसगपडिसेवितो उदिन्नो, एसो उवगरणोवघातो । उप्पन्ने वेदे न सक्का निलंभिउं । दिटुंतो जह पढमपाउसम्मि, गोणो धाओ तु हरियगतणस्स। अणुसज्जति कोटुिंबिं, वावण्णं दुब्भिगंधीयं ॥५१५५॥ एवं तु केइ पुरिसा, भोत्तूण वि भोयणं पतिविसिटुं। ताव ण होंति उ तुट्ठा, जाव न पडिसेवितो भावो ॥५१५६॥ "जह पढम०" ["एवं तु०"] गाहाद्वयं कण्ठ्यम् । कयाइ अणाभोगेणं पव्वाविओ होज्ज, पच्छा इमेण हेतुणा णाओ। गहणं च संजयस्सा, आयरियाणं व खिप्पमालोए । बहिया व निग्गयाणं, चरित्तसंभेयणी विकहा ॥५१५७॥ "गहणं च०१" गाहा । अस्य व्याख्याछंदिय गहिय गुरूणं, जा न कहे जो वि सिट्टवेहेज्जा। परपक्ख सपक्खे वा, जं काहिति सो तमावज्जे ॥५१५८॥ "छंदिय०" गाहा । छंदितो नाम पडिसेवेगो । सेसं कण्ठ्यम् । अहवा इमेहिं कारणेहिं णाओ। इत्थिकधाउ कहित्ता, तासि अवन्नं पुणो पगासेति । समलं सावि अगंधिं, खेतो य ण एयरे ताई ॥५१५९॥ सागारियं निरिक्खति, तं च मलेऊण जिंघइ हत्थं । पुच्छति सेविमसेवी, अतिव सुहं अहं चिय दुहा वि ॥५१६०॥ सो समणसुविहितेसुं, पवियारं कत्थई अलभमाणो । तो सेविउमारद्धो, गिहिणो तह अन्नतित्थी य ॥५१६१॥ अयसो य अकित्तीया, तम्मूलागं तहिं पवयणस्स । तेसिं पि होति संका, सव्वे एतारिसा मन्ने ॥५१६२॥ १. गहणं तु मुच ।

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