Book Title: Kappasuttam Vhas Vises Chunni Sahiyam Part 02
Author(s): Bhadrabahuswami, Sanghdasgani Kshamashraman,
Publisher: Shubhabhilasha Trust
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७३२ विसेसचुण्णि
[पारंचियपगयं "उब्भामग०" गाहा । एगो उब्भामग भिक्खायरियाए आगतो । परितंतो तुरितं (एंतो) वडपादपस्स अहेणं वडसाले आवडितो परितावितो वडस्स रुट्ठो । उक्तं च- "किं एत्तो कट्ठतरं०१" रत्तिं पासुत्ताणं वडपायवं उम्मूलित्ता पडिसयस्स दारमूले ठाइ । सुमिणगो त्ति आलोएइ । दिढे णायं थीणद्धीउ त्ति ।
केसवअद्धबलं पण्णवेंति मुय लिंग नत्थि तुह चरणं । णेच्छस्स हरइ संघो, ण वि एक्को मा पदोसं तु ॥५०२३॥ अवि केवलमुप्पाडे, न य लिंगं देति अणतिसेसी से। देसवत दंसणं वा, गिण्ह अणिच्छे पलायंति ॥५०२४॥ "केसव०" ["अवि केवल."] गाहाद्वयं कण्ठ्यम् । भणिओ पमत्तो । इदाणि अन्नमन्नकरणं ।
करणं तु अण्णमण्णे, समणाण न कप्पते सुविहिताणं ।
जे पुण करेंति णाता, तेसिं तु विविंचणा भणिया ॥५०२५॥
"कारणं तु०" गाहा । अन्नमन्नकरणं नाम जो आसयपोसेसुरे करेइ सो लिंगपारंचिओ। अन्नमनं नाम जे परोप्परं आसयउवसएसु करेंति ।
आसग पोसगसेवी, केई पुरिसा दुवेयगा होति । तेसिं लिंगविवेगो, बितियपदं रायपव्वइते ॥५०२६॥ "आसग०" गाहा। बिइओ उवस्सयाई, कीरति पारंचिओ न लिंगातो।
अणुवरमं पुण कीरति, सेसा नियमा तु लिंगातो ॥५०२७॥
"बिइओ उवस्सयादी०" गाहा । बितिओ वि दुट्ठो । से खेत्ताओ पारंचिओ कीरति । अह न चेव उवरमइ ताओ दोसाओ लिंगपारंचिओ कीरइ । सेसा ण कसायपदुट्ठ-पमत्तअन्नमन्नकरणे लिंगओ पारंचिओ कीरंति । सो पुण केरिसो जो पारंचिओ कीरति ? अत उच्यते
१. किं एत्तो कट्ठयरं ? पत्ताण कहिंचि मणुअजम्मम्मि । __जं इत्थ वि होई रई अच्चंतं दुक्खफलयम्मि ॥१६०३॥ (पंचवत्थुगं) २. करणं मुच । ३. आसयणासएसु ड । आस्य=मुखम्, पोसक:=पायुः मलवृ ।
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