Book Title: Kamtaprasad Jain Vyaktitva evam Krutitva
Author(s): Shivnarayan Saxena
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 70
________________ (५७) अनेक उच्च कोटिकी विचारधाराओं और शिक्षाओं की प्राप्ति होती है। हिन्दोके प्रथम महाकवि स्वयंभू जैन, जिन्होंने 'हरिवंश पुराण' तथा 'रामायण' की पुरातन हिन्दी में रचनाका विस्तृत वर्णन किया है। जैनियों के हिन्दी साहित्य पर जो यह आरोप लगाया जाता है कि इसमें शृङ्गाररसका वर्णन नहीं किया गया है। अरे भाई ! मेरे शृङ्गाररसका पान तो लोग बिना बताये करने लगते हैं। जैन साहित्य शान्त रससे लबाउब भरा है। भरा मी होना चाहिए क्योंकि मानव शान्तिका पिपासु होता है। सारे जीवनमें शान्तिको कामना ही किया करता है । साहित्य तो व्यक्तियों के विचारोंको परिवर्तन करनेवाला होता है। जब जैसे साहित्यका निर्माग हुआ तभी तो उस समय व्यक्तियोंका दिशाओं में परिवर्तन हुआ। मुगल साम्राज्यमें इश्कको कविताओंने गजपरिवागेका दिवाला निकाल दिया। उस समय अनेक हिन्दी कवि भी शृङ्गार के क्षेत्रमें कूदकर बाहवाही लूटने लगे। कवि भी समाजके माथ चले, कितना अच्छा होता यदि वे ममाजको अपने माथ लेकर चले होते। . श्री देवसन द्वारा रचित 'दर्शनसार' 'तत्वसार' और 'साबयधम्म दोहा', मुनि समविजी द्वारा रचित 'पाहुड दोहा', महाकवि धबलका हरिशपुराण'. मारहवीं शताब्दिके साहित्यकार पुष्पदन्त द्वारा रचित महापुराण' 'यशोधर चरित्र' और नागकुमार चरित्र, कवि धनपाल, मुनि श्रीचन्द्र, श्री हेमचन्द्र, कव लक्खन कृत अणुक्या यशपईव. मुनि यश कीर्ति प्रणीत कृत जगत्पुन्दरी प्रयोग माला, विनय चन्द्र कृत 'उबएममाला-कहाणय-छप्पय, कविवर विबुध श्रोधरकृत 'वडमाणचरिउ' भविष्यदत्त कथा, चन्द्रमचरित, शांति जिन चरित और श्रतावतार, श्वेताम्बर जैनाचार्य मेरुतुङ्ग विचित सिद्धचक्र, श्रीपाल कथा, कवि महाचन्द्र रचित Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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