Book Title: Kamtaprasad Jain Vyaktitva evam Krutitva
Author(s): Shivnarayan Saxena
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 167
________________ . (१५४) रहेगा। सहज सरल भव्य मूर्ति आंखोके सामने है, ऐसा लगता है कि वे कुछ मेरे व समाज के हितमें कह रहे हैं। विदिशा (म० प्र०) राजमल गुलाबचन्द । कविको कल्पनाएं भी जाग उठी "वही फूल झर गया" %3D - वैसे एक फूल झरजाना, कोई वैसी बात नही है। आनी जानीमें दोदसकी, कोई बडी बिसात नहीं है ।। फिरभी हर बगियामें ऐसा, कोई फूल हुआ करता है । जिसकी पांखोंसे परिमल का, अक्षय कोष चुआ करता है ।। जिसके रहनेसे बगियाको, रौनक दूनी हो जाती है। जिसके झर. जानेसे बगिया, सचमुच सूनी हो जाती है ।। चन्द्रसेन जैन विसेनपुरी जि. खिरी लखीमपुर काम तो करते सभी अपने लिये हैं। मगर कितने कर रहे परके लिये हैं। तारको, शशि, सूर्य गाओ गीत उसके प्रमुद मन जो जी रहा सबके लिये है ।। मादगीका बाण तो सबने किया है। दव द्वेष कालुषसे मगर जलता हिया है ।। जैन ही क्या अखिल जग है बन्धु जिनका नर-रत्न, भारत देश मेरेको मिला है। कोलारस (म. प्र.) प्रकाशचन्द्र जैन सर्वलेन्स इन्स्पेक्टर मात्मसुप्रनको सुषमासे, सुरभित जिसने जगकर डाला । उसी महापुरुषों चरणों में, सादर श्रद्धांजलि माला ।। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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