Book Title: Kamtaprasad Jain Vyaktitva evam Krutitva
Author(s): Shivnarayan Saxena
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 134
________________ १२१ जैनधर्म और तीर्थंकरोंकी ऐतिहासिकता एवं प्राचीनता विदेशी विद्वान प्रो० डॉ० गुस्टाफ शेठके अंग्रेजी निबन्धका हिन्दी में अनुवाद बाबूजीने किया जिसमें केवल २२ पृष्ठ हैं। फिर भी यह छोटी पुस्तक बड़े महत्वकी है। प्रत्येक पंक्तिसे परिश्रम और अनुसन्धानकी आमा प्रकट होती दिखाई पड़ती है। जो व्यक्ति भगवान महावीरसे पूर्व किसी भी तीर्थंकरको नहीं मानते उनके लिये बड़ी जबदस्त फटकार तथा चुनौती है और अपनी भूल स्वीकार करने के लिये विवश करती है। जैनधर्मको एक ऐसा निराला धर्म बताया है जो मूल निवासियों द्राविड, असुर आदिके समयमे प्रचलित है। इसमें जैनधर्म और उसके सिद्धान्तोंकी मौलिकताको ऐतहासिक कसौटी पर कसकर खरा उतारा है। मैं जैनी क्यों हुआ ! यह तीस पृष्ठकी पुस्तक बाबूजी द्वारा अंग्रेजीसे हिन्दी में अनुवादित तथा सम्पादत है। इसमें की हवट वैरन मा० रन्दनकी "मेरी श्रद्धा जंन सिद्धान्तमें कैसे हुई ?" श्रीमती ई० एस० क्लीन'स मट अमेरिका, का "मेरा वक्तव्य", डबल्यू० जी० ट्रार साहब इंगलंण्डका "सच्चा धम", श्री मैथ्यू मैके साहब लन्दन का "मैं जैन को हुआ ?” श्री फ्रेंक आर० मैनसेल, इंगलैण्डका "सत्य और आनन्दकी खोजमें", श्री एन० जे० स्टीवर्ट चेडबर्न लन्दन का सच्चा धर्म" श्रीमती मिस कौमकी यनीका "जैन धर्मकी विशेषता" स्वर्गीय मि० अलेक्जेण्डर गार्डन इंग्लैण्डका "सच्ची रथयात्राएं" श्री लुई डी० सेन्टर इंग्लैण्डका "मैं जैन क्यों हुषा" प्रो. लोथर वेन्डेल जरमनीका “जैनधर्म में मेरा साक्षात्" और वुडलेण्ड काहलर अमेरिकाका "हम शाकाहारी Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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