Book Title: Kalp Vyavahar Nisheeth Mul Matra Author(s): Jinvijay Publisher: ZZZ UnknownPage 29
________________ 28] सत्तमो उद्देसओ [7, 2-16 वाएतए वा उवट्ठावेत्तए वा संभुञ्जित्तए वा संवसित्तए वा तीसे इत्तरियं दिसं वा अणुदिसं वा उद्दिसितए वा धारेत्तए वा / तं च निग्गन्थीओ नो इच्छेज्जा सेवमेव नियं ठाणं / / 2. जे निग्गन्था य निम्गन्धीओ य संभोइया सिया, नो ण्हं कप्पइ पारोक्खं पाडिएक्कं संभोइयं विसंभोगं करेत्तए; कप्पइ ण्हं पञ्चक्खं पाडिएक्कं सभोइयं विसंभोगं करेत्तए / जत्थेव अन्नमन्नं पासेज्जा, तत्थेव . एवं वएज्जा-'अहणं, अज्जो, तुमाए सद्धिं इमाम्मि कारणम्मि पच्चखं संभोग विसंभोगं करेमि' / से य पडितप्पेज्जा, एवं से नो कप्पइ पच्चक्खं पाडिएकं संभोइयं विसंभोगं करेत्तए; से य नो पडितप्पज्जा, एवं से कप्पइ पच्चक्खं पाडिएकं संभोइयं विसभोगं करेत्तए / ___3. जाओ निग्गन्धीओ वा निग्गन्था वा संभोइया सिया, नो ण्हं कप्पइ पच्चक्खं पाडिएक्कं संभोइयं विसंभोगं करेत्तए; कप्पइ एहं पारोक्खं पाडिएकं संभोइयं विसंभोगं करेत्तए। जत्थेव ताओ अप्पणो आयरि10 यउवज्झाए पासेज्जा, तत्थेव एवं वएज्जा-'अह णं, भन्ते, अमुगीए अजाए सद्धिं इमम्मि कारणम्मि पारोक्खं पाडिएकं संभोगं विसंभोगं करेमि' ।सा य से पडितप्पेज्जा, एवं से नो कप्पइ पारोक्खं पाडिएकं संभोइयं विसंभोगं करेत्तए; सा ये से नो पडितप्पेज्जा, एवं से कप्पइ पारोक्खं पाडिएकं संभोइयं विसंभोगं करेत्तए / 4. नो कप्पइ निग्गन्थाणं निग्गन्थि अप्पणो अट्ठाए पवावेत्तए वा मुण्डावेत्तए वा सेहावेत्तए वा उवट्ठावत्तए वा संभुजित्तए संवसित्तए वा तीसे इत्तरियं दिसं वा अणुदिसं वा उद्दसि15 सए वा धारेत्तए वा। 5. कप्पइ निग्गन्थाणं निग्गन्धि अन्नेसिं अट्ठाए पवावेसए वा.... धारेतए वा। 6. नो कप्पइ निग्गन्थणिं विइकिट्टियं दिसं वा अणुदिसं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा। 7. कप्पद निमन्याय विक्षकीय विसंवा अतिसंवा जहिमितए का शोषए का) 8. नो कप्पइ निग्गन्थाणं विइकिट्ठाई पाहुडाई विओसवेत्तए / 9. कप्पइ निग्गन्थीणं 20 विइकिट्ठाई पाहुडाई विओसवेत्तए। 10. नो कप्पइ निग्गन्थाणं विइकिट्ठए काले सज्झायं करेतए / 11. कप्पइ निग्गन्धीणं विइकिट्ठए काले सज्झायं करेत्तए निग्गन्थ-निस्साए। . 12. नो कप्पइ निग्गन्थाण वा निग्गन्थीण वा असज्झाइए सज्झायं करेत्तए / 13. कप्पइ निग्गन्थाण वा निग्गन्थीण वा सज्झाइए सज्झायं करेत्तए / 25 14. नो कप्पइ निग्गन्थाण वा निग्गन्थीण वा अप्पणो असज्झाइए सज्झाय करेत्तए; कप्पइ ण्हं अन्नमन्नस्स वायणं दलइत्तए / 15. तिवासपरियाए समणे निग्गन्थे तसिंवासपरियाए समणीए निग्गन्थीए कप्पइ उवज्झायत्ताए उद्दिसित्तए। 16. पञ्चवासपरियाए समणे निग्गन्थे सट्ठिवासपरियाए समणीए निग्गन्थीए कप्पइ आयास्थिउ30 वज्झायत्ताए उदिसित्तए / 17. गामाणुगामं दूइज्जमाणे भिक्खू य आहच्च वसिम्भज्जा, तं च सरीरगं केइ साहम्मिए पासेज्जा, कप्पइ से तं सरीरगं से न सागारियमिति' कटु थाण्डिल्ले बहुफासुए पडिदेहित्ता पमजित्ताPage Navigation
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