Book Title: KALP Barsa SOOTRA
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 125
________________ दशाश्रुत छेदसूत्र अन्तर्गत् “कल्पसूत्रं (बारसासूत्र) (मूलम्) ......... मूलं- सूत्र.[१७] / गाथा.||-|| ..... मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित......"कल्प(बारसा)सूत्रम्" मूलम प्रत सूत्रांक/ गाथांक [१७] १, दहिं २, नवणीयं ३, सप्पि४, तिल्लं ५, गुडं ६, महुं ७, मजं ८, मंसं ९॥ १७॥ वासावासं पजोसवियाणं अत्थेगइआणं एवं वृत्तपुत्वं भवइ, अट्ठो भंते ! गिलाणस्स, से य । पुच्छियवे-केवइएणं अट्ठो ? से वएज्जा-एवइएणं अट्ठो गिलाणस्स, जं से पमाणं वयह से य पमाणओ चित्तवे, से य विन्नविजा, से य विन्नवेमाणे लभिजा, से य पमाणपत्ते होउ अलाहि-इय वत्तवं सिआ? से किमाहु भंते!?, एवइएणं अट्रो गिलाणस्स, सियाणं एवं |वयंतं परो वइजा-पडिगाहेह अजो! पच्छा तुमं भोक्खसि वा पाहिसि वा, एवं से कप्पइ पडिगाहित्तए, नो से कप्पइ गिलाणनीसाए पडिगाहित्तए ॥ १८॥ वासावासं| |पजो० अत्थि णं थेराणं तहप्पगाराइं कुलाई कडाइं पत्तिआई थिजाई वेसासियाई। समयाइं बहुमयाइं अणुमयाइं भवंति, जत्थ से नो कप्पइ अदक्खु वइत्तए “ अस्थि ते आउसो! इमं वा २” से किमाहु भंते !?, सड्डी गिही गिण्हइ वा, तेणियंपि कुजा ॥१९॥ 35*3455445CE दीप CAREECECCHECK अनुक्रम [२७७] ~ 124 ~

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