Book Title: Jogmayano Saloko Author(s): Niranjan Rajyaguru Publisher: ZZ_Anusandhan View full book textPage 4
________________ अनुसन्धान ३२ ॥१॥ जोगमायानो सलोको बावन अक्षरमा ॐकार बलीओ किणे तेहनो भेद न कलीओ सीद्ध साधक जेहनें साद्धे वंदुं तेहनें जम मति वाद्धि आदि हरीहर बंभ उपाया जगत-जननी छे जे जोगमाया सुंदर तेहनो कहुं सलोको लीला अंबानि सांभळजो लोको ॥२॥ इच्छा पूरे ए अखील भ्रह्मांडिं रहि व्यापीने रूप अखंडे जगमां सेवकनां संकट जांणी मायारूपे जे धरे ब्रह्मांणी आदि अनादि एह ज जांणो सघलो संसार अहथी रचांणो आपे थापें ने आपें उथा करुणा करें तो बंधन कापे ॥४॥ करता हरता छे अह कल्यांणि सक्ती विना कोई सोभो नही प्राणी चारु-करमी ते अहनें वलगा अकरमी विना कोई नवी रहें अलगा !।५।। भवनुं मंडाण अछे भवानी दीलनी चिंता चुरे देवानी क्रोधे करीने नजर करडी मधु कैटभ नांख्या छे मरडी ॥६॥ ॥३॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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