Book Title: Jogmayano Saloko
Author(s): Niranjan Rajyaguru
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 13
________________ June-2005 ॥६० ॥६१|| गणके रणतुर सिंघई रागें वगे वछुटी लीची तीहां वागं दंत काढिने दैत्यनें दुदाला चढ़े रणामांहि केई वडाला हुर कोलाहल कंकाल हुक बहुलं घंचोली छुटे बंधुक छय लन्द्र छ हां दांणव छुटा गणे धनुपर्था तीर वछुटा दैत्य चंडीने विटी चोफेरें जाणे सुकरें सीहण घेरी वीसे भुजासु वढें वाराही मारे म्लेच्छनें मनसुं उंमाहि खड्ग घुमावी मथांण घाट दल वलोई को दहवट इज्जत-मांखण लीउं ऊतारी दुसमनका जम तीहां डारी मार्यो सुंभ में उतार्यो मद राखस रुद्राणीइं कर्या सह रद गृप्ती गदाई गुरजें केई गुंद्या छुटी जमधारें केताइक चुर्या | कई पड़तालें घाली पायाले कई आकासें लीधा उलाली कई पछाडि प्रथीइं पाड्या कई त्रीशुले तीर सुं ताड्या घणा तो मार्या मृशट्याई पाळी केताएक रगदोल्या पा ॥६ ॥ ॥६३॥ ॥६४|| Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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