Book Title: Jogmayano Saloko
Author(s): Niranjan Rajyaguru
Publisher: ZZ_Anusandhan
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ June-2005 उदयरत्नजी कृत जोगमायानो सलोको सं. डो. निरंजन राज्यगुरु पू. श्री आचार्यश्री विजयशीलचन्द्रसूरिजी महाराज साहेबना विहार दरम्यान वढवाण (जि. सुरेन्द्रनगर) खातेथी प्राप्त थयेल आ रचनानी झेरोक्स नकल परथी आ वाचना तैयार करी छे. विक्रम संवत १७७० ना पोष सुदी सातमना रोज सर्जन थयुं अने वि.सं. १८७१ आसो सुदी ४ ना रोज लहिया मुनि गुणरत्नजी द्वारा जेनुं लेखन थयुं छे ते 'उदयरत्नजी कृत जोगमायानो सलोको'नी कुल पांच पानांनी हस्तप्रत बन्ने बाजु लखायेली छे. ११" x ६" नी साईझमां दरेक पेइज उपर १३ के १४ पंक्तिओ लखाई छे. नवमा छेल्ला पेज उपर पांच पंक्ति छे. आ रीते कुल ७८ कडीनी रचना १११ पंक्तिओमां लखायेली छे. सर्जक कवि उदयरत्नजीः पार्श्वनाथ प्रभुना गणधरनी परम्परामां रत्नप्रभसूरि थया, तेमना ३८ मी पाटे देवगुप्तसूरि थया. देवगुप्तसूरिना शिष्य कक्कसूरि मूळ उपकेशगच्छमांथी नीकळी तपागच्छमां भळेला अने राजविजयसूरि नाम स्वीकारेलं. तेमना शिष्य रत्नविजयसूरि पछी शिष्योना नाम पाछळ 'रत्न' शब्द शरु थयो. आ रीते रत्नशाखामां थयेला कवि उदयरत्नजीना गुरुनु नाम शिवरत्नसूरि हतुं. कविश्री उदयरनजीओ संवत १७७०मां बारेजामां शरु करेला अने खेडा गामे पूर्ण करेला 'श्री भावरत्रसूरि प्रमुख पांच पाट वर्णन गच्छ परम्परा रास'मां आ समग्र माहिती आपवामां आवी छे. । जै.गू.क. भाग ९ पृ. .९५ ] उदयरत्नजी खेडाना रहीश हता अने तेमनुं अवसान मियांगाममां थयु एम कहेवाय छे. तेओश्रीने शृंगाररसभरित 'स्थूलिभद्र नवरसो' लखवाने कारणे आचार्ये संघबहार काढेला, पछी 'नववाड ब्रह्मचर्य'नी रचना करतां फरी प्रवेश मळ्यो एम नोंधायुं छे. खेडाना रत्ना भावसार नामना कविओ उदयरत्नजी पासे काव्यशास्त्रनो Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसन्धान ३२ अभ्यास करेलो. उदयरत्नजी द्वारा वि.सं. १७४९ थी शरु करीने वि.सं. १७८२ सुधीना समयगाळा दरम्यान त्रीशेक नानी मोटी रचनाओ अने छूटक स्तवन-सज्जायोनी रचना थई होवान नोंधायुं छे. श्री केशवलाल सवाईभाई द्वारा प्रकाशित 'सलोका संग्रह'मां 'श्री नेमिनाथनो सलोको', 'शालिभद्रनो सलोको', भरतबाहुबलिनो सलोको' जेवी केटलीक रचनाओ प्रकाशित थई छे परंतु अहीं अपायेल 'जोगमायानो सलोको' आज सुधीना कोई ज सन्दर्भग्रन्थोमां नोंधायेल जोवा मळ्यो नथी. कोई हस्तप्रतसूचिमां पण एनी यादी नथी मळती. एक सुप्रसिद्ध जैन साधु-कवि शक्ति मातानी पुराणप्रसिद्ध कथानो सलोको रचे ए वात जराक विचित्र जणाय तेवी छे. लागे छे के कवि उदयरत्नने 'शक्ति' तत्त्व प्रत्ये गहन आस्था हशे, अने तेथी प्रेराईने तेमणे आ सलोकानी रचना करी हशे. एवी पण अटकळ करी शकाय के ते कविने संघ बहार मूकवानुं खरं कारण तेमनी आवी 'अन्याश्रय' रूप गणी शकाय तेवी आस्था तथा ते आस्थाना प्रगटीकरण-रूप आवी रचना ज होय; शृंगारवर्णन ओ बहानुं होय. सलोकानो आछो परिचयः सलोकानो प्रारम्भ कवि, परम्परानुसारी तीर्थंकर-वन्दन के गुरु-स्मरण वगेरे प्रकारना मंगलाचरणथी नथी करता, परंतु आ प्रकारनी प्रसिद्ध रचनाओनी आगवी पद्धति मुजब ओंकारना स्मरण पूर्वक करे छे. अम्बा, जोगमाया, शक्ति, बहुचरा, पार्वती, दुर्गा-इत्यादि शक्तिवाचक नामोनो आमां अनेकवार प्रयोग जोवा मळे छे, अने शक्तिने जगतजननी के जगतनी सर्जनहार, रक्षणहार वगेरे रूपे ज कवि वर्णवी छे; जे बधुं एक जैन परम्पराना कविना मुखे वर्णवातुं होईने विशेष रसप्रद बनी रहे छे. प्रसिद्ध कथा प्रमाणे, शुम्भ-निशुम्भ ए बे दानवोओ, हरि, हर, ब्रह्मा, इन्द्र सहित तमाम देवोंने हराव्या छे ने स्थानभ्रष्ट करी भगाड्या छे; त्यारे ते देवोओ हिमालयमां अम्बामाता पासे आवीने अरज करी के आ दानवोथी तमे अमारी रक्षा करो. देवोनी प्रार्थना शक्तिमाता स्वीकारे छे, अने पछी मायावी Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ June-2005 रूपसुन्दरीना रूप द्वारा शुम्भने लोभावी युद्धना मेदानमां घसडी लावी तेने तथा तेना समग्र सैन्यने नष्ट करी, देवोने पुनः स्वस्थाने प्रस्थापित करी आपे छे. प्रान्ते कवि कहे छे के महाकाली, महासरस्वती तथा महालक्ष्मी - आ त्रण तमारां स्वरूप छे, अने आ चणे रूपे तमे ज जगतनुं रक्षण करो छो. देवी-दानव-युद्धवर्णनमां देवी द्वारा प्रयोजातां शस्त्रास्त्रो तथा तेनी विविध क्रियाओनुं वर्ण अत्यन्त जीवंत तेमज वीररस-छलकतुं छे. ६० मी कडीमां तो कवि देवीना हाथमां 'बंधुक' (gun) पण मूकी आपे छे अने गोळी पण छोडावे छे ! तो ६२मी कडीमां वलोणांनं रूपक कविओ आप्यं छे: खड्गरूपी मन्थान (रवैया) वडे शत्रुना दळने वलोवी शत्रुनी इज्जतरूपी माखण देवी ऊतारी ले छे.. तेवा मतलब ए रूपक खूब चमत्कृति सर्जनाएं बन्युं छे. ७१मी कडीमां वळी कवि शत्रुओना चित्तमां एवो प्रश्न उत्पन्न करे छे के 'अमे पुरुष शुं काम पेदा थया ? (आ करतां स्त्री थयां होत तो आ देवी-स्त्री जेवी शक्ति अमारामांय आवत !) आ कडीमां 'शत्रु चेंतें अमे पुरुष कां सरजा ?' ए पंक्तिमा 'चेंतें' पदनो अर्थ शं थशे ? 'चिंते' एवो अर्थ ज तरत समजाय छे. बाकी जो ते क्रियापदने कच्छी बोलीना क्रियापद तरीके स्वीकारीओ तो, शत्रु 'ते' अर्थात् 'शत्रु कहेता हता (कहेवा लाग्या)' एवो अर्थ पण करी शकाय खरो. आ सलोकानी बीजी प्रतिओ कोई ने कोई भण्डारमा होवी तो जोईए ज. जो ते मळी आवे तो पाठशुद्धि माटे खपमां जरूर आवी शके. अहीं तळपदा शब्दोना प्रयोगो घणा छे, अने नोंधपात्र छे. 'भचरड्या' (६५), 'लापोट' 'थापोट' (६६) 'गणणाव्यां' (६८), 'चुपट' (६९), 'गरदी' (७०), 'तम्यो' (७७) वगेरे. आमां क्यांक क्यांक चारणी जबाननी छांट पण होवानुं कळी शकाय तेम छे. देवीना रूपवर्णननी तथा दानव साथेना युद्धवर्णननी कडीओ साचेज रसदायक तथा अभ्यासयोग्य छे. शक्ति-वर्णननी अन्य छन्दरचनाओ साथे आनी सरखामणी करवी ए पण एक रसप्रद अभ्यास-विषय बनी रहे. Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसन्धान ३२ ॥१॥ जोगमायानो सलोको बावन अक्षरमा ॐकार बलीओ किणे तेहनो भेद न कलीओ सीद्ध साधक जेहनें साद्धे वंदुं तेहनें जम मति वाद्धि आदि हरीहर बंभ उपाया जगत-जननी छे जे जोगमाया सुंदर तेहनो कहुं सलोको लीला अंबानि सांभळजो लोको ॥२॥ इच्छा पूरे ए अखील भ्रह्मांडिं रहि व्यापीने रूप अखंडे जगमां सेवकनां संकट जांणी मायारूपे जे धरे ब्रह्मांणी आदि अनादि एह ज जांणो सघलो संसार अहथी रचांणो आपे थापें ने आपें उथा करुणा करें तो बंधन कापे ॥४॥ करता हरता छे अह कल्यांणि सक्ती विना कोई सोभो नही प्राणी चारु-करमी ते अहनें वलगा अकरमी विना कोई नवी रहें अलगा !।५।। भवनुं मंडाण अछे भवानी दीलनी चिंता चुरे देवानी क्रोधे करीने नजर करडी मधु कैटभ नांख्या छे मरडी ॥६॥ ॥३॥ Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ June-2005 देखी देवने दुःख उपातो मार्यो महीषासुर दाणव मातो सुरथ वैसनें वरदान दीधुं राज्य वालु नें कारज कीधुं हरी हर बंभ में रवी ससी जोडि सुरपति देवता तेत्रीस कोडि शुंभ दैतें ते सघळा हराव्या हार मानीने हेंमाचल आव्या अंबाजि आगल्य अरज करे छें दीलमां देवता दुःख धरे छें देवी दांणव- सुभट छें दुष्ट अमनें कीधा तेणें थांनक- भृष्ट नीपनी छोंड्या सुरीनर नांग जोरें रोक्या छें जगन नें जाग त्रीभोवन कंटक म्लेच्छ ए ताजो मनमां नांणें केहनो मलाजो भई दांणवनें तुमें सुं भागा इम नासीने आवी इहां लागा तिहारें सुर कहें हाथ तमारें अहनुं लख्यु छें मरण आ वारें वदी बीसी वरदान वारु देवी रचें तीहा रूप दीदारु वरसां बारांक तेराकवाली बाल कुंआरी सुदर सुखमालि 11911 वलती वेंमासी तव कहें इंम वेंमला कहो आपणी तजीने कमला 11211 ॥९॥ ॥१०॥ ॥११॥ ॥१२॥ 5 Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसन्धान ३२ ॥१३॥ रुडी रुपाली अजब रंगीली छलवा दैतनें थई छबीली पद पंकज पलव वराजें लाल सुरंगां माणेक लाजें उपें हीरा-सी नखनी ओल रुडी पांनी बहु कुंकुम रोल ॥१४॥ पिंडी ऊतरती एडी लंकाली केळ-थंभ-सी जंघ सुहाली कटने लंकें केसरी हारी भुज नीतंब उनत भारें ॥१५॥ पातलपेटी में नाभ्य गंभीर युग्म पयोधर जाणे जंबीर हार कमलनी हाथनें लटकें मोहें मुंनीजन मुखडाने मटकें ॥१६॥ दंत दाडिमनी कलीने जी दीपसीखा सी नासीका दीपें होठ परवाली रही छे हारी मृगनयणी मोहनगारि भमर कबांन नयण सोभाला खलक देखीने पांमें सह ख्याला वेंणे वासंग आवीने वसीओ जाणे मुख सशी जोवाने रसीओ ॥१८॥ सीसफूलनें गोफणो नीको दीपे जडाव डांमणीओ टीको हीई सरबंध सिंथो समारो ओपें आंखडीओ काजल सार्यो ॥१९॥ ॥१७॥ Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ June-2005 कांने कुंडल रवी ससी जोती मुंघ मुलांनी नाके छे मोती सोवन रेखाओ रदनें वारु विराजें तंबोल वदनें ॥२०।। कंठे रेखा त्रण सोहि जम कंबु तांणा कंचुकसुं थणहर तंबु हिई चोसरो नवसर हार बाजुबंधनु तेज अपार ॥२१॥ जडीत चुंनडीओ झगमग झलके कटिमेखला खल खल खलके पाए नेपुर पायल वाजें जांणे भाद्रवें जलधर गाजें ॥२२॥ ठम ठम अणवट विछुआ ठमकें घम घम घुघरी गोफणो घमके जडीत जालीमा जड्यां छे नंग हाथें अंगूठी मिंदी सुरंग ॥२३॥ मिहेंकें चंदन मृगमद पुर सोहें मुख-नुर उगतो सुर चरणा चोलीने चोसर फुले उपे अंबाजी चीर अमुलें जाइ जोवन लेंहिरिं जम गंग केसर-वरणुं छे कोमल अंग गमन करंतां गिरमा जणाई जाणे वादलमां वीजली थाई ॥२५॥ दांणव मल्या छे दातणनें काजें (में) ततखेंण त्रीपुरा जाइ तेणें ठांमें ॥२४॥ Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 00 वेंण वाहीने राग आलापें थेईथेई ता थेई शु पद तां थापे ||२६|| खांते खेलती घुंघट खोलिं बोलि मीठु जम कोयल बोले रूप जोवानें रवीरथ थंभें असुर देखीनइ पड्या अचंभें पूच्छि राखस पातलपेटी किहां वसें तु केहनी छे बेटी ठांम तमारो इहां न ठावो किम आव्यां छो आघेरां आवो बलीओ मुजने कोई झालि बांहि नथी देखति त्रीभोवन मांहिं भाखें भवांनी टेक धरीनें जल थल जोड छं तेणें करीनें तिहारें त्रीपुरा कहि ललकावी मोति जिहां तीहां फरूं छं वरने जोती युद्धे करीने मुजने जे जीतें तेह पुरषने परणुं प्रीतें ईम सुंणीनें असुर पर्यपें जेह आगलि जग सहु कंपि शुंभ नांमे छें साहिब अमारो तेह पुरसें मनोरथ तारो राखस वंशनो मोटो राजांन सुरो नहि कोई जेह समांन मांननी तुमनें ते देखें सही मांन नारी बीजीने तजी नीदांन ॥२७॥ ||२८|| ॥२९॥ ||३०|| ॥३१॥ ॥३२॥ अनुसन्धान ३२ Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ June-2005 भद्रकाली तव कहें इणी भांति खरी.... युद्धनी खांति भडि मुझसुं जे रणमा भुपाल मोदें तेहनें ठवुं वरमाल एहवो अंबाना मननो आकुत दाणव शुंभने दाखें जई दुत बिठी हिंमाचल उपर एक बालि रमणी रंभी अद्धीक रूपाली जुद्धे जीतें जे मुझनें जोरालो वरुं ते वर मरद मुंछालो कंन्या संग्रांम करसें ते केहवो असुर मलीने विमासे एहवो शुंभ तेहनी ते सांभली वात चंड मूंड बें दैत वीख्यात आपें तेहनें एम आदेश कांमण्य ते लावो झालीनें केश दल लेइनें दुत ते धाया हल हल करीनें हिमाचल आया भारथ तहसुं रचीने भारी वाघवानी नांखें वीदारी पापी शुभे तव दुत पठायो धुंम्रलोचन द्ववर ( ? ) धायो सीहणि आगलि जम सीयाल तें ते हरसीद्धी हाथे लिहिं काल || ३६ || चुर्या चंड नें मुंड बें भूंडा थयुं चीं( चं) डीनुं नांम चामुंडा ॥३३॥ ||३४|| ||३५|| ||३७|| ||३८|| 9 Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 10 रोल वरत्यो ते राखसें जांण्यों तइहारि अबलानो भय मन आण्यो ||३९|| खरी मनमां वलि आंणीनें खीज रोस धरीनें रगत बीज रमणी लेवानें राखस राजा तरत मोकलें करी तगाजा जुधें अंबासुं जई ते जडीओ जांणे छालीमां नाहर पडीओ दैत्य दुर्गाई आम्रो ते लीधो पछें हालीइ घाउ ज कीधो पडें रगतना बिंदु जीहां जेता थाई राखसना रूप ज तेता क्रेता मारें ने केता संहारें करें हरसीद्धी हुकम तेहारें लोहि लेईने घटघट पीई वळी योगणीने वेंहचीनें दीई क्रोधें तेहनुं मस्तक काप्युं देवें बहुचरा नांम तीहां थापुं घणा संहार्या गीर्याई हाथ संघला हुता जे तेहनें साथें रगतबीजनी नीरसो जांणीनें असुहीयामां अमरख आंणीनें वली बीजो तीहां नीसुंभ भाइ सेना लेइनें पोहतो ते धाई जोर तेहसुं मचाव्यो जंग रणखेत्रनो वधार्यो रंग ॥४०॥ ॥४१॥ ॥४२॥ ॥४३॥ ॥४४॥ ॥४५॥ अनुसन्धान ३२ Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ June-2005 11 सीध योगणीई ते पण्य संहार्यो अंशमात्र न कोय उगार्यो सुंभ सांभली तेह उदंत आणी रुदयामां रीस अत्यंत ॥४६।। लाख गमे केई दांणव लुट्या पहाड सरीखा जे जालम पोढा बलिआ आभसुं भरें जे बाथ सुभट ओहवा लेई राखसनाथ ॥४७॥ पान्य करीने आयुध पूरें चाल्यो रणवट वाजतें तुरें जाणे उलटीओ जलनीधी पुर मरद मूछाला म्लेच्छ माहाकुर ॥४८।। खड्ग खेडा में बगतर खलकें झलहल झलहल बरछीओ झलकें ढोल वाजे नें चमर ढलकें कुर्म कडकडे शेष तां सलकें ॥४९॥ कंन्या वरवाने काजे उमायो अतुर थईने मनसुं अलजायो जांन लेइने शुंभ जोरालो आव्यो हलकीने जीहां छे हिमालो ॥५०॥ छायो दिनयर खुरताल खेहें जाणे के घेर्यो आसाढ़ें मेहें नवल भेरी नें वाजें नीसांण कड कड फरें तिहां बहुलां केकाण ॥५१॥ आव्यां दैतनां दल त्यां एम . कालि मेघनी काढ्यल जेम Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 12 अनुसन्धान ३२ ॥५४॥ रण-काहल वाजें रणसिंगा धीर धिंगा सांभली तजे ज्यां धीर ॥५२॥ गरजें बोलें ते शुंभ गुमांनी रखे छबीली रहि हवि छांनी वनीता वहली था लागें छे वार खडा झुझवा कोडि खंधार ॥५३॥ झबक लेइने तरुंआरि कालें चतुरा चाहीने आघेरी चालें जगमां कुण करें अमारी होड्य करी युध ने पुरु कोड मुझ आगल तुं कुंण मात्र गोरी तारो छे कोमल गात्र बलें जोरें पणि तुझने हुं बाला आखरे परणीस तजो तिणे चाला ॥५५|| शुंभ सांभलजे साचुं हुं बोलुं खांति ताहरी तो धुंघट खोलुं ताती तरुआरि देखीश तारी तारी प्रतीज्ञा पूरासें माहरी इंम कहीने ईस्वरि आयें सावज पूठे पल्हांण था दंत पीसीने दैतनें दलवा हंस करीनें रणखेत्र हलवा हाथे वीसे तीहां हथीयार झाली चाचरें झुझवा सांमी ते चाली म्लेच्छां मारण माहा मछराली काली कंकाली थई कराली ||५६॥ ५७॥ ॥५८॥ Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ June-2005 ॥६० ॥६१|| गणके रणतुर सिंघई रागें वगे वछुटी लीची तीहां वागं दंत काढिने दैत्यनें दुदाला चढ़े रणामांहि केई वडाला हुर कोलाहल कंकाल हुक बहुलं घंचोली छुटे बंधुक छय लन्द्र छ हां दांणव छुटा गणे धनुपर्था तीर वछुटा दैत्य चंडीने विटी चोफेरें जाणे सुकरें सीहण घेरी वीसे भुजासु वढें वाराही मारे म्लेच्छनें मनसुं उंमाहि खड्ग घुमावी मथांण घाट दल वलोई को दहवट इज्जत-मांखण लीउं ऊतारी दुसमनका जम तीहां डारी मार्यो सुंभ में उतार्यो मद राखस रुद्राणीइं कर्या सह रद गृप्ती गदाई गुरजें केई गुंद्या छुटी जमधारें केताइक चुर्या | कई पड़तालें घाली पायाले कई आकासें लीधा उलाली कई पछाडि प्रथीइं पाड्या कई त्रीशुले तीर सुं ताड्या घणा तो मार्या मृशट्याई पाळी केताएक रगदोल्या पा ॥६ ॥ ॥६३॥ ॥६४|| Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 14 अनुसन्धान ३२ ॥६६॥ अंगें अड्या ते भचरड्या उरें मुह मरझ्या केइ माहामुरे ॥६५।। कुंहणी गदा के पाटु लापोट टांमे राख्या केई मारी थापोट हाथे पगे ने मस्तक हीई आपें छेदीने उडाडी दीई चक्रे चुर्या केई चुसीनें लीधा पडता लोहीइ उपाडी पीधा हजारगमे केई कीधा हम लाखगमें तो राल्या उजम ॥६७|| चरणे झाली ते नाख्या केइ चोली केइ गणणाव्या गोफण गोली ढाल वडें केड धरणीइं ढाला गर्व घणाना गेडीइ गाल्या वेरी घणा तो वाघे वलुर्या चापजोरें केई रणमांहि चुर्या कुबधि केतांइक कुहाडे कुट्या चपट सांडसे घणा तो चुट्या ॥६९॥ केई हुता जे जूधना कुसली मुदगरें मारी लीधां ते मसली मोह पमाडि नांख्या का मरदी गगने उडाडी तेहनी गरदी ॥७०।। संखनादें केई लीधा तीहां सोसी खेरु कर्या केइ बरछीइं पोसी तोमर हले केइ घुघरे तरजा शत्रु चेंतें अमे पुरष कां सरजा ? ||७१।। ||६८॥ Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ June 2005 विटलसंलाते मेहला वीगाई जावा न दीधो जीवता कोई पापी पाढा इम अंबानी परतो जगमा संघलो तव जयकार वरत्यो ॥७२॥ मा आदि सहु देवता भावें स्तवे अंबाने तिणें प्रस्ताव आसा पुरें तुं संकट दुरीत दुसमननें टालें तुं दुर श्री भोवन रह्यो छे ताहरें आवारें तुटी तारं तु रुठि संचारि जीहा जीहा पार्वती तुं पद धार तिहारे सेवकनां काज सुवारें ॥७४॥ गढ़ मद (ढ) ने वावि तर गीरवर गुफाई वासें बसें तु वली जल टाई वीश्वजननी तुं वश्वमां व्यापी आगम ताहरी कोइ न सके उपर पासी ॥७५॥ ॥७३॥ आसो माघ में चैत्र आसा अर तुझने जे उत्तम दाड़ें नवरात्र में नव नव दाडा जालिम ते नर लहें सुख जा ( जा ) डा || ७६ || माहाकाली माहासरसती माता माहालखमी तुं जगमां वीख्याता त्रीधा रूपें तुं संसार तारें तभ्यो वरदाता विघन नीवारें संवत सतर सीतेरा वरषें पोस मास सुदि आतम हरखें ॥७७॥ 15 Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 16 अनुसन्धान ३२ जो सलोको एह जोडायो उदयरत्न कहे पुण्योदय मे पायो ॥७८।। सं. १८७१ ना आसो सुदी ४ लखितं मुनि गुणरत्नेन । शब्दकोश जाग बारांक तेराक सुखमालि उपें याग वार तेर सुकामळ ओपे-शोभे पंक्ति कमान वेणी (चोटलो), वासुकी ओल कवांन वणे, वासंग (नाग) मुंघ मुलांनी रदन तांणा लेंहिरिं वेंण वाहीने भडि आकुत कांमण्य भारथ तईहारि छालीमां नाहर गीर्याइ अमरख मोघा मूलनी दांत पर (तंबू) तांण्या लहेरो वीणा वगाडीने सुभट आकूत-अभिप्राय कामिनी महाभारत/युद्ध त्यारे छालियामां(?) जंतु विशेष (?) गिरिजाए अमर्प रोप Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ June-2005 17 पान्य बगतर कुर्म सेय खहं काट्यल तरु आरि छय लच्छ सुकरें चुपट तरजा विटलसं लाते तम्यो पान(रक्तपान?) बख्तर कच्छप (कच्छपावतार) शेषनाग खेह धृळ(उडती) (?) तरवार छ लक्ष सूबर चपटी (साणसानी) तर्जना करी तमे C/o. आनंद आश्रम घाघाक्टर (दासी जीवण) ता. गोंडल (राजकोट)