Book Title: Jogmayano Saloko
Author(s): Niranjan Rajyaguru
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 11
________________ June-2005 11 सीध योगणीई ते पण्य संहार्यो अंशमात्र न कोय उगार्यो सुंभ सांभली तेह उदंत आणी रुदयामां रीस अत्यंत ॥४६।। लाख गमे केई दांणव लुट्या पहाड सरीखा जे जालम पोढा बलिआ आभसुं भरें जे बाथ सुभट ओहवा लेई राखसनाथ ॥४७॥ पान्य करीने आयुध पूरें चाल्यो रणवट वाजतें तुरें जाणे उलटीओ जलनीधी पुर मरद मूछाला म्लेच्छ माहाकुर ॥४८।। खड्ग खेडा में बगतर खलकें झलहल झलहल बरछीओ झलकें ढोल वाजे नें चमर ढलकें कुर्म कडकडे शेष तां सलकें ॥४९॥ कंन्या वरवाने काजे उमायो अतुर थईने मनसुं अलजायो जांन लेइने शुंभ जोरालो आव्यो हलकीने जीहां छे हिमालो ॥५०॥ छायो दिनयर खुरताल खेहें जाणे के घेर्यो आसाढ़ें मेहें नवल भेरी नें वाजें नीसांण कड कड फरें तिहां बहुलां केकाण ॥५१॥ आव्यां दैतनां दल त्यां एम . कालि मेघनी काढ्यल जेम Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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