Book Title: Jogmayano Saloko
Author(s): Niranjan Rajyaguru
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 12
________________ 12 अनुसन्धान ३२ ॥५४॥ रण-काहल वाजें रणसिंगा धीर धिंगा सांभली तजे ज्यां धीर ॥५२॥ गरजें बोलें ते शुंभ गुमांनी रखे छबीली रहि हवि छांनी वनीता वहली था लागें छे वार खडा झुझवा कोडि खंधार ॥५३॥ झबक लेइने तरुंआरि कालें चतुरा चाहीने आघेरी चालें जगमां कुण करें अमारी होड्य करी युध ने पुरु कोड मुझ आगल तुं कुंण मात्र गोरी तारो छे कोमल गात्र बलें जोरें पणि तुझने हुं बाला आखरे परणीस तजो तिणे चाला ॥५५|| शुंभ सांभलजे साचुं हुं बोलुं खांति ताहरी तो धुंघट खोलुं ताती तरुआरि देखीश तारी तारी प्रतीज्ञा पूरासें माहरी इंम कहीने ईस्वरि आयें सावज पूठे पल्हांण था दंत पीसीने दैतनें दलवा हंस करीनें रणखेत्र हलवा हाथे वीसे तीहां हथीयार झाली चाचरें झुझवा सांमी ते चाली म्लेच्छां मारण माहा मछराली काली कंकाली थई कराली ||५६॥ ५७॥ ॥५८॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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