Book Title: Jogmayano Saloko
Author(s): Niranjan Rajyaguru
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 3
________________ June-2005 रूपसुन्दरीना रूप द्वारा शुम्भने लोभावी युद्धना मेदानमां घसडी लावी तेने तथा तेना समग्र सैन्यने नष्ट करी, देवोने पुनः स्वस्थाने प्रस्थापित करी आपे छे. प्रान्ते कवि कहे छे के महाकाली, महासरस्वती तथा महालक्ष्मी - आ त्रण तमारां स्वरूप छे, अने आ चणे रूपे तमे ज जगतनुं रक्षण करो छो. देवी-दानव-युद्धवर्णनमां देवी द्वारा प्रयोजातां शस्त्रास्त्रो तथा तेनी विविध क्रियाओनुं वर्ण अत्यन्त जीवंत तेमज वीररस-छलकतुं छे. ६० मी कडीमां तो कवि देवीना हाथमां 'बंधुक' (gun) पण मूकी आपे छे अने गोळी पण छोडावे छे ! तो ६२मी कडीमां वलोणांनं रूपक कविओ आप्यं छे: खड्गरूपी मन्थान (रवैया) वडे शत्रुना दळने वलोवी शत्रुनी इज्जतरूपी माखण देवी ऊतारी ले छे.. तेवा मतलब ए रूपक खूब चमत्कृति सर्जनाएं बन्युं छे. ७१मी कडीमां वळी कवि शत्रुओना चित्तमां एवो प्रश्न उत्पन्न करे छे के 'अमे पुरुष शुं काम पेदा थया ? (आ करतां स्त्री थयां होत तो आ देवी-स्त्री जेवी शक्ति अमारामांय आवत !) आ कडीमां 'शत्रु चेंतें अमे पुरुष कां सरजा ?' ए पंक्तिमा 'चेंतें' पदनो अर्थ शं थशे ? 'चिंते' एवो अर्थ ज तरत समजाय छे. बाकी जो ते क्रियापदने कच्छी बोलीना क्रियापद तरीके स्वीकारीओ तो, शत्रु 'ते' अर्थात् 'शत्रु कहेता हता (कहेवा लाग्या)' एवो अर्थ पण करी शकाय खरो. आ सलोकानी बीजी प्रतिओ कोई ने कोई भण्डारमा होवी तो जोईए ज. जो ते मळी आवे तो पाठशुद्धि माटे खपमां जरूर आवी शके. अहीं तळपदा शब्दोना प्रयोगो घणा छे, अने नोंधपात्र छे. 'भचरड्या' (६५), 'लापोट' 'थापोट' (६६) 'गणणाव्यां' (६८), 'चुपट' (६९), 'गरदी' (७०), 'तम्यो' (७७) वगेरे. आमां क्यांक क्यांक चारणी जबाननी छांट पण होवानुं कळी शकाय तेम छे. देवीना रूपवर्णननी तथा दानव साथेना युद्धवर्णननी कडीओ साचेज रसदायक तथा अभ्यासयोग्य छे. शक्ति-वर्णननी अन्य छन्दरचनाओ साथे आनी सरखामणी करवी ए पण एक रसप्रद अभ्यास-विषय बनी रहे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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