Book Title: Jogmayano Saloko
Author(s): Niranjan Rajyaguru
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 2
________________ अनुसन्धान ३२ अभ्यास करेलो. उदयरत्नजी द्वारा वि.सं. १७४९ थी शरु करीने वि.सं. १७८२ सुधीना समयगाळा दरम्यान त्रीशेक नानी मोटी रचनाओ अने छूटक स्तवन-सज्जायोनी रचना थई होवान नोंधायुं छे. श्री केशवलाल सवाईभाई द्वारा प्रकाशित 'सलोका संग्रह'मां 'श्री नेमिनाथनो सलोको', 'शालिभद्रनो सलोको', भरतबाहुबलिनो सलोको' जेवी केटलीक रचनाओ प्रकाशित थई छे परंतु अहीं अपायेल 'जोगमायानो सलोको' आज सुधीना कोई ज सन्दर्भग्रन्थोमां नोंधायेल जोवा मळ्यो नथी. कोई हस्तप्रतसूचिमां पण एनी यादी नथी मळती. एक सुप्रसिद्ध जैन साधु-कवि शक्ति मातानी पुराणप्रसिद्ध कथानो सलोको रचे ए वात जराक विचित्र जणाय तेवी छे. लागे छे के कवि उदयरत्नने 'शक्ति' तत्त्व प्रत्ये गहन आस्था हशे, अने तेथी प्रेराईने तेमणे आ सलोकानी रचना करी हशे. एवी पण अटकळ करी शकाय के ते कविने संघ बहार मूकवानुं खरं कारण तेमनी आवी 'अन्याश्रय' रूप गणी शकाय तेवी आस्था तथा ते आस्थाना प्रगटीकरण-रूप आवी रचना ज होय; शृंगारवर्णन ओ बहानुं होय. सलोकानो आछो परिचयः सलोकानो प्रारम्भ कवि, परम्परानुसारी तीर्थंकर-वन्दन के गुरु-स्मरण वगेरे प्रकारना मंगलाचरणथी नथी करता, परंतु आ प्रकारनी प्रसिद्ध रचनाओनी आगवी पद्धति मुजब ओंकारना स्मरण पूर्वक करे छे. अम्बा, जोगमाया, शक्ति, बहुचरा, पार्वती, दुर्गा-इत्यादि शक्तिवाचक नामोनो आमां अनेकवार प्रयोग जोवा मळे छे, अने शक्तिने जगतजननी के जगतनी सर्जनहार, रक्षणहार वगेरे रूपे ज कवि वर्णवी छे; जे बधुं एक जैन परम्पराना कविना मुखे वर्णवातुं होईने विशेष रसप्रद बनी रहे छे. प्रसिद्ध कथा प्रमाणे, शुम्भ-निशुम्भ ए बे दानवोओ, हरि, हर, ब्रह्मा, इन्द्र सहित तमाम देवोंने हराव्या छे ने स्थानभ्रष्ट करी भगाड्या छे; त्यारे ते देवोओ हिमालयमां अम्बामाता पासे आवीने अरज करी के आ दानवोथी तमे अमारी रक्षा करो. देवोनी प्रार्थना शक्तिमाता स्वीकारे छे, अने पछी मायावी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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