Book Title: Jinraj Bhakti Adarsh Author(s): Danmal Shankardan Nahta Publisher: Danmal Shankardan Nahta View full book textPage 7
________________ करता हूं कि आप इसी प्रकार पुस्तक प्रकाशन आदि शुभ कार्यो में बराबर सहायता देते रहेंगे। कोई शास्त्र विरुद्ध यात न आ जाय इसलिये उक्त चारों लेखों को श्रीश्रीपूज्यजी श्रीजिन चारित्र सरिजी महाराज एवं मुनिराज वोरपुत्र श्रीआनंदसागरजी महाराज ने देखकर जो अपने अमूल्य समय को खर्च किया है तथा कई एक बातों की उचित सम्मति दे जो मुझे कृतार्थ किया है, उसके लिये मैं उनका चिराभारी हूँ। अन्तमें मैं यह आशा करता हूं कि मेरे स्वर्गस्थ ज्येष्ठभ्राता अभयराजजी के स्मार्थ संस्थापित ग्रन्थमाला का छट्ठा पुष्प पाठकों को भक्ति मार्ग में पूर्ण सहायक होगा, प्रार्थना करता हूँ कि संशोधन अच्छी तरह करने पर भी दृष्टि दोष और प्रेस की भूलोंके कारण जो अशुद्धियां रह गई हों उनके लिये पाठक कृपा कर क्षमा करेंगे तथा पीछे दिये हुए "शुद्धि पत्र" द्वारा संशोधन कर, पढ़ने की कृपा करेंगे। निवेदकअगरचन्द नाहटा। नोट-स्मर्ण रहे कि ज्ञान को आशातना हो ज्ञानावर्णीय कर्म के बंध का मुख्य कारण है, इस हेतु, पुस्तक की आशातना न हो, इसका विशेष ध्यान रखें। आप पढ़कर दूसरोंको लाभ उठानेके लिये दें, मन्दिरजी के पूजारियों एवं संरक्षकों को पुस्तकानुसार आदर्शों का अनुकरण करनेके लिए बाध्य करें। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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