Book Title: Jinprabhsuri ane Sultan Mahommad
Author(s): Lalchandra Bhagwan Gandhi
Publisher: Jinharisagarsuri Gyanbhandar

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Page 121
________________ ११० ] दिल्लीश्वर पातशाहोथी [ जिनप्रभसूरि अने नाथ-चरित महाकाव्य रचनार, पेरोज शाहि महम्मद पातशाहनी सभामा प्रतिष्ठोदय प्राप्त करअने पेरोजथी नार मुनिभद्रसूरिए पोताना गुरु गुणगौरवित गुण- भद्रसूरिनो परिचय करावतां सूचव्युं छे भद्रसूरि अने के-" ते (बृहद्गच्छना मानभद्रसूरि )ना मुनिभद्रसूरि पट्टने शोभावनार गुणभद्रसूरि सुगुरु थया, जेओ व्याकरण, छंद, नाटक, तर्क, साहित्य, अलंकार विगेरे सर्व शास्त्रोमां चातुर्य घरावता हता. जेना श्लोकोना व्याख्यानथी रंजित थइ अयुत( दस हजार ) सौवर्णटंको( सोनैया ) आपता क्ष्मापाल-चूडामणि शाहि मुहंमदनी आगळ ' तपस्वीओथी ए ग्रहण न ज कराय ' एम बोलतां जेणे चारित्रने स्थापित कर्यु हतुं.' १. " तस्य श्रीगुणमद्रमूरिसुगुरुः पट्टावतंसोऽभवद् यः श्रीशाहिमुहंमदस्य पुरतः क्षमापालचूडामणेः । लोकव्याकृतिरस्जितस्य ददतः सौवर्णटङ्कायुतं प्राचं नैव तपस्विनामिति वदंश्चारित्रमस्थापयत् ॥ x x सच्छिष्यो मुनिभद्रसरिरजनि स्याद्वादिसंमाननः श्रीपेरोजमहीमहेन्द्रसदसि प्राप्तप्रतिष्ठोदयः । तेनेदं निरमायि मन्दमतिना श्रीशान्तिवृत्तं नवं तत्तजन्मसहस्रसंचितमहादुष्कर्मविच्छित्तये ॥ xx Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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