Book Title: Jinprabhsuri ane Sultan Mahommad
Author(s): Lalchandra Bhagwan Gandhi
Publisher: Jinharisagarsuri Gyanbhandar

View full book text
Previous | Next

Page 172
________________ सुलतान महम्मद.] पट्ट-परम्परा [१६१ के-" जिनवल्लभ सुगुरुना वंशमां सिद्धान्त-शास्त्रार्थना जाण, गर्विष्ठ प्रतिवादीरूपी हाथीओनी घटाने परास्त करवामां सिंह जेवा, विविध नव्य रमणीय काव्योनी रचना करनार, विचारणीय विशुद्ध प्रज्ञावाळा, विज्ञोथी नमन करायेला प्रोटप्रतापी मूरिराज जिनेश्वर थइ गया. तेमना शिष्य सूरीश्वर जिनसिंहरि थया, जे प्राणि-समूहना हितार्थ-संपादनमा कल्पवृक्ष जेवा अने विपक्ष-वादीरूपी हाथीओने प्रतिहत करवामां पंचानन जेवा हता. तेना पट्टरूपी पूर्वाचल पर सूर्य जेवा मूरि-पुरंदर जिनप्रभ थया, जेमनी जीभने बुधेन्द्रोए वाग्देवता( सरस्वती )ना आस्थानपट्ट तरीके वर्णवी हती. तेमनी पछी पोतानी बुद्धिवडे बृहस्पतिने तर्जना करनार, निरुपम समरसरूपी द्रव्यवाळा, जयशाली मूरिवर जिनदेवमूरि थया. " त्यारपछी थयेला जिनमेरुसूरि, जिनहितमूरि, जिनसर्वसूरि, जिनचन्द्रसरि, जिनसमुद्रसरि, जिनतिलकसरि १. " वंशे श्रीजिनवल्लभस्य सुगुरोः सिद्धान्तशास्त्रार्थविद् दर्पिष्ठप्रतिवादिकुखरघटा-कण्ठीरवः सूरिराट् । नानानव्य-सुभव्यकाव्यरचनाकाव्यो विभाव्यामल प्रज्ञो विज्ञनतो जिनेश्वर इति प्रौढप्रतापोऽभवत् ॥ १॥ शिष्यस्तदीयोऽजनि जन्तुजातहितार्थसम्पादनकल्पवृक्षः । विपक्षवादिद्विप-पञ्चवक्त्रा सूरीश्वरश्रीजिनसिंहसरिः ॥२॥ ११ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204