Book Title: Jinprabhsuri ane Sultan Mahommad
Author(s): Lalchandra Bhagwan Gandhi
Publisher: Jinharisagarsuri Gyanbhandar
View full book text
________________
सुलतान महम्मद.]
पट्ट-परम्परा
[१५९
जिनप्रभसूरिनी शिष्य-परंपरामां विक्रमनी पन्नरमी सदीना
अंतमां तथा सोलमी सदीना प्रारंवाचनाचार्य भमां चारित्रवर्धन नामना विद्वान चारित्रवर्धन मुनि वाचनाचार्य थइ गया. तेओए
पोताने तेमनी परंपराना जिनहितमरिना शिष्य भूमीशवंदित कल्याणराज उपाध्यायना शिष्य तरीके ओळखाव्या छे. तेओ बहुबुद्धिशाली वादविद्या-कुशल, साहित्य, नाटक, अलंकार शास्त्रोमां तथा न्याय, बौद्ध, वेदांत विगेरे दर्शनशास्त्रोमा निष्णात हता-तेवू सूचन करे छे. नरपेष वाणी (सरस्वती) गणाता हता. तेमनी रचेली कल्याणमंदिर-स्तोत्रनी ४२३ श्लोकप्रमाण टीका वडोदराना प्राच्यविद्यामंदिरमां छे. तेओए श्रीमालवंशी ठक्कुर भीषणनी अभ्यर्थनाथी, वि. सं. १५०५ मां वैशाख शु. ८ गुरुवारे सोमप्रभाचार्यना सिन्दूरप्रकर नामना प्रसिद्ध काव्य पर दृष्टांतोथी सरस ४८०० श्लोकप्रमाण तात्पर्य टीका रची हती, जे ए ज वर्षमा पं. धर्मदासद्वारा लखाइ हती. तेनी सं.
सुगुरु-परंपर-गाहाकुलयमिणं जो पढइ पच्चूसे । सो लहइ मणोवंछियसिद्धिं सव्वं पि भव्वजणो ॥ १४ ॥ --ऐतिहासिक जैनकाव्यसंग्रह( अभयजैनग्रंथमाला पु. ८, पृ. ४१-४२)मांथी संशोधन करी उद्धत. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

Page Navigation
1 ... 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204