Book Title: Jinprabhsuri ane Sultan Mahommad
Author(s): Lalchandra Bhagwan Gandhi
Publisher: Jinharisagarsuri Gyanbhandar

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Page 157
________________ १४६ ] जिनप्रभसूरिनो [ जिनप्रभसूरि अने कोइ छे ? जे आ ( टोपी ) ने उतारे ' शाहे सभा सामे जोयुं, त्यार पछी सूरि, महम्मदशाह प्रत्ये बोल्या के - ' राजन् ! म्हारा वडे एनुं जे कराय ते तम्हे जुओ.' त्यार पछी यूरिए आकाशमां रजोहरण ( ओघो) फॅक्युं, तेणे जइने ते कुल्लाह (टोपी) ने माथे पाडी. त्यार पछी फरी पाछा ते कलंदरे एक स्त्री द्वारा लड् जवाता माथे रहेला पाणीना घडाने आकाशमां अद्धर ज थंभाव्यो. [ पहेलां प्रमाणे ] फरी पाछा शाहने कयुं. सूरिए ते घडाने भांगीने पाणीने घडाना आकारवां कर्यु. शाहे क के - ' पाणीना कण - फुसिया ( छूटा ) करो. ' सूरिए ते ज प्रमाणे कयुं. कलंदरनो अहंकार गयो. फरी पाछा एक वखते सभामां बेठेला अद्भुत निमित्त शाहे करूं के -' म्हारी सभामां बेठेला कथन विज्ञो ! मने आजे कहो के प्रभातमां हुं कया मार्गे थइने रयवाडी ( राजपाटी ) ए जइश १' त्यार पछी सर्व विज्ञोए पोतपोतानी बुद्धि प्रमाणे विचारीने चिठ्ठीमां लखीने शाहने आप्युं. शाहे सरि ( जिनप्रभ ) ने कं - ' तमे पण आपो. ' सूरिए पण पोतानी बुद्धि प्रमाणे चिठ्ठी आपी. ते सर्व चिठ्ठीओने लइने पोताना खुपट्टामां बांधी. शाहे विचार्यु के - ' आ बधा असत्यवादी ( खोटुं बोलनारा ) बने तेम करूं. एवो विचार करी शाह Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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