Book Title: Jinprabhsuri ane Sultan Mahommad
Author(s): Lalchandra Bhagwan Gandhi
Publisher: Jinharisagarsuri Gyanbhandar

View full book text
Previous | Next

Page 164
________________ सुलतान महम्मद.] विशेष परिचय [१५३ (२) उदयले खरतरगच्छ-गयणि, अभिनवड सहसकरो; सिरिजिणप्रभुसूरि गणहरो, जंगम कल्पतरो. १ वंदहु भविक जन ! जिणशासण-वण-नववसंतो; छत्तीसगुणसंजुत्तो वाइय-मयगल-दलण-सीहो. (आं तेर पंचासियह पोस सुदि आठमि सणिहि वारो; भेटिउ असपते महमदो सुगुरि ढीलियनयरे. २ आपुणु पास बइसार ए, नमिवि आदरि नरिंदो; अभिनव कवितु वखाणिवि, राय रंजइ मुर्णिदो. ३ हरषि तु देइ राय गय तुरय, धण कणय देस गामा; भणइ अनेवि जे चाह हो, ते तुह दिउ इमा. ४ लेइ गहु किंपि जिणप्रभसूरि, मुणिवरो अतिनिरीहो; श्रीमुखि सलहिउ पातसाहि, विविहपरि मुणि-सीहो. ५ पूजिवि सुगुरु वस्त्रादिकहि, करिवि सहिथि निसाणु; देह फरमाणु अनु कारवइ, नववसति राय सुजाणु. ६ पाटहथि चाडिवि जुग-पवरु, जिणदेवसूरि-समेतो; मोकलइ राउ पोसालहं, बहुमलिक-परिकरीतो. ७ वाजहि पंचसबद गहिर सरि, नाचहि तरुण नारि; इंदु जिम गइंद-साहितु, गुरु आवइ वसतिहिं मझारे. ८ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204