Book Title: Jinabhashita 2009 01
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 19
________________ ने बताया-पानी की जो नहर उधर से गुजरती है, उसका | उसी प्रकार का सात्त्विक भोजन करते हैं। वह दिन हमें रास्ता बदल दीजिये। इससे शत्रु-पक्ष की एकत्र सारी | स्मरण कराता है कि हम भी कभी जैन थे। शस्त्र-सामग्री पानी में डूब जायेगी। शास्त्रीजी ने जवाब सोचिये! तिरस्कार करने के कारण हमने कितनी दिया- ठीक है। पता लगाकर ऐसा करेंगे। यदि इस | हानि उठाई है। यदि कोई गलत कार्य करता है, तो कार्य में तुम्हारे बताये अनुसार सफलता मिलती है, तो उसे सजा दे देनी चाहिए, प्रायश्चित्त कराना चाहिए। जाति तुम्हारे दोष माफ कर दिये जायेंगे। पत्रकारों ने इसकी | बहिष्कार से समाज को कितनी हानि होती है। टिप्पणी में लिखा- कभी-कभी खोटा पैसा भी काम इसी प्रकार अहमदाबाद में भी एक 'साराभाई' आ जाता है। इसलिए उसे भी कूड़े में मत फेंकिये। | परिवार है, जो पहले जैन था। पर किसी कारणवश बहिष्कृत इसी प्रकार कोई श्रावक थोड़ी सी गलती करता | हो जाने से वे भी अन्य धर्म मानने लगे। है, तो उसका तिरस्कार, बहिष्कार मत कीजिये। उसे | मानव-जीवन विचित्र है, अनेक संकल्प-विकल्पों सीने से लगाइये, समझाइये। आज. नहीं तो कल, वह से भरा है यह। यदि भूल से कोई गलत कार्य कर प्रेमपूर्ण-व्यवहार से अवश्य सुधर जायेगा। जब उसका | लिया, तो उसे बहिष्कृत मत कीजिए। हम नित्य ही चारित्रमोहनीय कर्म का उदय समाप्त होगा, तब वह | तो शास्त्र में पढ़ते हैं कि अंजन चोर, विद्युत चोर आदि सुधरेगा। यह मत समझिये कि वह बिल्कुल बेकार है। बड़े-बड़े अपराधियों को, गलती करनेवालों को हमारे महिलाएँ ये सोचकर फटा कपड़ा भी सहेज कर रख | आचार्यों ने मार्गदर्शन दिया, सुधारा, उन्हें कुपथ से सुपथ लेती हैं कि जमीन पोंछने के काम आएगा, पर मोड़ा। पर आज हम इस बात को नहीं अपनाते। सम्यग्दृष्टि कभी किसी का तिरस्कार नहीं करता। | केवल इन घटनाओं को पढ़ लेते हैं। आज समाज संकुचित हम तिरस्कार करने के अधिकारी भी नहीं हैं। दूसरों | हो गया है। इतिहास और आज की परिस्थिति दोनों को के जीवन को आदर्श बनाने की चेष्टा मत कीजिये।| देखकर कार्य कीजिये। मेरा यह सब कहने का तात्पर्य दूसरों के पीछे लग गये, तो स्वयं ठन-ठन रह जायेंगे। यह नहीं है कि आप जान-बूझ कर गलती करते जायें पहले स्वयं आदर्श बन कर दिखायें, स्वयं उस मार्ग | और फिर समाज से वात्सल्यभाव की अपेक्षा करें। साथ पर चल कर दिखायें, तो दूसरे आपको देखकर उस | में कहें कि हमें तो महाराज जी ने छूट दे दी। मेरा मार्ग को स्वयं अपना लेंगे, आपका अनुकरणकर लेंगे। यही अभिप्राय है- श्रावकों के नियमों का पालन करते कुछ वर्ष पहले की बात है, एक दिन जनता | हुए एक आदर्श मानव बनिये। यदि उसमें भूल से कोई पार्टी के नेता श्री के.के. हेगड़े की पत्नी आईं। उनके | दोष आ जाय तो प्रायश्चित्त कराइये। साथ धर्मस्थल के हेगड़े परिवार की महिला भी थीं।। | आचार्य कुन्दकुन्द ने कहा है- जितनी शक्ति है धर्मस्थल का हेगड़े परिवार जैनपरिवार है और श्री के.के. | उतना कीजिये। यदि नहीं कर सकते तो श्रद्धा कीजिये, हेगड़े का परिवार वैष्णव परिवार है। मैंने उनसे पूछा- | श्रद्धा से मत डिगिये। आप भी हेगड़े, ये भी हेगड़े। पर एक जैन हैं, एक | जदि सक्कदि कादं जे पडिकमणादिं करेज्ज झाणमयं। वैष्णव, यह कैसे? इस पर श्रीमती के.के. हेगड़े ने बताया- सत्तिविहीणो जा जइ सद्दहणं चेव कायव्वं ॥ १५४॥ सौ वर्ष पूर्व हमारा परिवार भी जैन-धर्मावलम्बी था। उस नियमसार समय हमारे परिवार के एक व्यक्ति ने शिकार कर दिया, कोई व्यक्ति स्वयं रात में भोजन करना नहीं छोड़ जिसके कारण समाज ने उनका (जाति) बहिष्कार कर | सकता, तो वह यह नहीं कहे कि क्या रखा है दिन दिया। हमारा परिवार प्रभावशाली परिवार था। हमारे | में भोजन करने में? रात में भोजन करने से क्या हो परिवार के साथ दस हजार अन्य व्यक्ति भी जैनधर्म | जाता है? वह यह कहे- रात में भोजन नहीं करना त्याग वैष्णव बन गये। किन्तु वर्ष भर में एक दिन जिस चाहिये, पर मैं मजबूर हूँ इसलिए करता हूँ। अपनी दिन हम जैन से वैष्णव बने थे, उस दिन हम अभी कमजोरी या गलती के कारण धार्मिक मान्यता, परम्परा भी जैनपरम्परा का निर्वाह करते हैं, जैनमंदिर जाते हैं. | व सिद्धान्त का उपहास न करें, अवमानना न करें। आचार्यों -जनवरी 2009 जिनभाषित 17 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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