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होगा या नहीं, विवाह के दोष गुण बतलाना, हस्तरेखा । रहे हैं। 30-40 साल बाद इन नये तीर्थों पर असामाजिक देखना, संकटमोचन करना, तंत्र-मंत्र, वैद्य की क्रियाएँ | तत्त्वों द्वारा कब्जा किया जावेगा और दिगम्बर-समाज को करना, दवा देना, शान्तिधारा बोलना, विधान कराना, मंदिर | इन तीर्थों की रक्षा हेतु सदैव मुकदमों का ही सामना बनवाना, सट्टे-बट्टे के नम्बर बतलाना, लॉटरी के नम्बर | करना होगा। जैनसमाज सोया हुआ है, अथवा चन्द लोग बतलाना, घर-घर जाकर पंडितों की तरह विधान कराना, | अपने निजी स्वार्थों की पूर्ति के लिए साधु-साध्वी से जन्मजयन्ती, दीक्षाजयन्ती मनवाना, बड़े-बड़े पोस्टर, | मिलकर शिथिलाचार कर रहे हैं। साधुओं के नाम पर पैम्पलेट, फोटो छपवाना, रथयात्रा में जाना, ख्यातिलाभ | मंच बन रहे हैं। वे ही साधु की प्रशंसा, ख्याति फैलाने के लिये धन खर्च करना, आराम का जीवन बिताने के | में संलग्न हैं। कुछ साधु गाड़ी में ही सामायिकी-चौका, लिए धनसंग्रह करना, रात्रि में बोलना, मन्दिर जी में | आहार आदि करने लगे हैं। गर्म-गर्म खाना खाते हैं, नौ-दस बजे तक बैठकर बाते करना, रात्रि में अपनी बर्फ खाते हैं, गैस, अँगीठी जलती रहे, पंखा चलता एवं भगवान की आरती कराना, अपनी प्रशंसा के मुक्तक | रहे, बिजली जलती रहे, आहार के समय अन्तराय सुनना। इसके लिये बड़े-बड़े पोस्टर, पैम्पलेट छपने लगे। | नहीं पालते, पंखा के नीचे आहार करने लगे, तकिया शास्त्र-स्वाध्याय छूट गया, परिणामस्वरूप जैनधर्म के | लगाने लगे आदि। आज जो साधु आगमविरोधी आचरण वीतरागभाव का लोप हो रहा है। वीतरागता केवल नग्न अपना रहे हैं, नियम से निगोद जावेंगे तथा 56 करोड़ रहना मात्र रह गई, बल्कि गृहस्थ से अधिक परिग्रह | श्रावक, जो इन कार्यों की अनुमोदना कर रहे हैं, निगोद
आज के दिगम्बर साधु-साध्वी, एलक, क्षुल्लक के पास | जावेंगे। अब वैष्णव- मत एवं जैनधर्म में केवल नग्नता रहने लगा, क्षुल्लक-एलक हवाई जहाज की यात्रा करने | का अन्तर रह गया है। लगे। मोबाइल पर कुछ साधु-साध्वी, एलक, क्षुल्लक विद्वानों से मेरा आग्रह है कि निजी स्वार्थों को घंटों वार्ता करने लगे। फ्रिज, कूलर, पंखा, ए.सी. आदि छोड़कर शिथिलाचार की प्रक्रिया रोकने के लिए कठोर का इस्तेमाल होने लगा, दूरदर्शन, देखने लगे, कम्प्यूटर कदम उठावें, संघ की संख्या बढ़ाने को बिना परीक्षण का उपयोग करने लगे। परिणाम स्वरूप 50 से 100 | के दी जा रही दीक्षा को रोका जाय। पुनर्दीक्षा पूर्व आचार्य पिच्छी ऐसी हैं, जिनके कुशील की चर्चा व्यक्तिगत चर्चाओं | की राय के बिना न दी जाय। 90 प्रतिशत पुनर्दीक्षा में श्रावक करने लगे। दिखावा मात्र को दिगम्बर-स्वरूप | उनको दी गई, जो चारित्र से भ्रष्ट हैं। कहने लगे कि रह गया है। एक आचार्य रात्रि दो बजे अपने संघ के | हम बीमार हो गये थे, इसलिये कपड़ा पहने थे। कुछ साधुओं और श्रावकों को लेकर सम्मेदशिखर जी की साधु महिलाओं से पैर छुवाने लगे। यहाँ तक वैय्यावृत्ति वन्दना को गये। रात्रि में ही भगवान् पद्मप्रभु की टोंक कराने लगे हैं। माता जी पुरुषों से पैर छुवाने लगी हैं। पर विधान कराया, महाव्रत और समिति का पालन केवल ऐसे आचरण को वे शीलभंग का दोष नहीं मानते हैं। जिह्वा पर रह गये, आचरण में नहीं। अपने नाम की | अतः शिथिलचार रोकने को कड़े कदम उठाना आवश्यक ख्याति के लिये क्षेत्र घोषित कर जहाँ समाज नहीं है, | है। वहाँ करोड़ों रु. पानी की तरह बहाया जा रहा है। पुराने
त्यागी-व्रती आश्रम, मधुवन शिखर जी तीर्थों की रक्षा नहीं हो पा रही है, नये तीर्थ बनाये जा ।
जिला-गिरीडीह (झारखण्ड)
पूज्य क्षमासागर की जीवनी सन्तशिरोमणि प० पू० आचार्य विद्यासागर जी के सुयोग्य शिष्य पूज्य मुनि श्री क्षमासागर जी के २८वें संयमदिवस पर विद्यासागर-शिक्षा-समिति शीघ्र ही एक पुस्तिका का प्रकाशन करने जा रही है।
जहाँ जहाँ मुनिश्री के चातुर्मास, ग्रीष्मकाल, शीतावकाश सम्पन्न हुए हों, उनके व्यक्तित्व और कर्त्तव्य से संबंधित संस्मरण, गोष्ठियाँ, उपलब्धियाँ निम्न पते पर भेजकर इस सुकृत्य में अपनी सहभागिता अवश्य बनाएँ। कृपया जानकारी निम्न पते पर भेजने का कष्ट करें।
श्री विद्यासागर शिक्षा समिति, १५३६/५ सिद्धनगर, पुरवा, नागपुर रोड, जबलपुर (म.प्र.)
20 जनवरी 2009 जिनभाषित
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