Book Title: Jinabhashita 2009 01
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 34
________________ 23) को उद्धृत करते हुए कहा गया है कि कुन्दकुन्द । श्रावकधर्म के पालक भी होते हैं, उन्हें उन्मार्गी कैसे के अनुसार "नग्नवेश ही मोक्षमार्ग है, शेष सब उन्मार्ग कहा जा सकता है? यदि श्रावकधर्म उन्मार्ग होता, तो हैं। ग्यारह प्रतिमाधारी एलक, क्षुल्लक, क्षुल्लिका और | आचार्य अमृतचन्द्र उसे पुरुषार्थसिद्धयुपाय (मोक्षपुरुषार्थ आर्यिकाएँ सभी वस्त्रधारी होने के कारण मोक्षमार्गी नहीं | की सिद्धि का साधन) न कहते और उसे सागारधर्म हैं, अतः पूजा, आरती के योग्य भी नहीं हो सकते।" | तथा परम्परया मुनिधर्म और मोक्ष का साधक भी न कहा आचार्य कुन्दकुन्द की उक्त गाथा का यह अर्थ | जाता। यद्यपि श्रावक संयमधारी न होने से निश्चयनय समीचीन प्रतीत नहीं होता। आचार्य कुन्दकुन्द ने जो से मोक्षमार्गी नहीं कहा जा सकता, तथापि मोक्षमहल वस्त्रधारियों को उन्मार्गी कहा है, वह श्वेताम्बर आदि | की सम्यग्दर्शनरूप प्रथम सीढ़ी पर उसके चरण स्थित सम्प्रदायों के साधुओं को दृष्टि में रखकर कहा है। यह | होने के कारण वह व्यवहारनय से मोक्षमार्गी ही है, उन्मार्गी टीकाकार श्रुतसागर सूरि के निम्नलिखित वचनों से सिद्ध | नहीं। यद्यपि यह सत्य है कि पञ्चपरमेष्ठी ही वन्दनीय "नग्नो वस्त्राभरणरहितो विमोक्षमार्गः ज्ञातव्यः। । हैं, अतः एलक, क्षुल्लक एवं आर्यिका वन्दना के योग्य शेषाः सितपटादीनां मार्गाः सर्वेऽपि उन्मार्गका: कुत्सिता | नहीं हैं, इच्छाकार के ही योग्य हैं, तथापि वे उन्मार्गी मिथ्यारूपा मार्गा जानीया विद्वद्भिरित्यर्थ।" नहीं हैं। और दीपकपूजा तो सचित्तपूजा है, अतः उसका अर्थ- जो वस्त्राभरणरहित नग्नत्व है, उसे विद्वानों | तो तेरापन्थ आम्नाय में निषेध है। इसलिए तेरापन्थ में को मोक्षमार्ग जानना चाहिए, शेष श्वेताम्बर आदि सम्प्र- | तो पंचरमेष्ठी की भी आरती निषिद्ध है। यही कारण दायों के जितने भी मार्ग हैं, उन सबको उन्मार्ग, कुत्सितमार्ग, | है कि तेरापन्थी-पूजापद्धति में दीपक के स्थान में नारियल मिथ्यामार्ग समझना चाहिये। की पीली चिटकें भगवान को चढायी जाती हैं। इन वचनों से सिद्ध है कि आचार्य कुन्दकुन्द ने मिथ्यादृष्टियों के मार्ग को ही उन्मार्ग कहा है, सम्यग् इंजी० धर्मचन्द्र वाझल्य दृष्टियों के मार्ग को नहीं। आर्यिका, एलक, क्षुल्लक ए-92, शाहपुरा, भोपाल-462 039 एवं क्षुल्लिका न केवल सम्यग्दृष्टि होते हैं, अपितु दूरभाष 0755-2424755 श्रीसेवायतन द्वारा आयोजित व्यक्तित्व विकास । में लगी सम्पूर्ण राशि श्री राजकुमार जी ने वहन की। कार्यक्रम सम्पन्न | श्रीसेवायतन मधुबन पारसनाथ को दान देने हाल ही में श्री सेवायतन संस्थान द्वारा श्री सम्मेद | पर आयकर में छट शिखर जी में मधुबन पंचायत के 14 गाँवों में से चुनित श्रीसेवायतन संस्थान मधुबन पारसनाथ को आयकर 140 लोगों के व्यक्तित्व-विकास कार्यक्रम के अंतर्गत | आयुक्त धनबाद ने जाँचोपरांत आयकर अधिनियम की जीवन जीने की कला एवं योगशिक्षा कार्यक्रम सम्पन्न | धारा 80 जी. के अंतर्गत दान-दाताओं को दान की राशि हुआ। एक सप्ताह तक चले इस कार्यक्रम से प्रशिक्षित | देने में आयकर छूट देने की स्वीकृति प्रदत्त की है। युवा महिलाएँ एवं युवक पूर्ण शाकाहारी एवं मद्यपान | यहाँ पर उल्लेखनीय है कि श्रीसेवायतन संस्थान गिरिडीह रहित बने एवं संकल्प लिया कि पावन तीर्थराज की | जिले के पीरटांड प्रखण्ड अंतर्गत मधुबन पंचायत के पवित्रता बनी रहे, वे सभी इसके लिए श्रीसेवायतन के | 14 गाँवों को सर्वांगीण विकास के लिए चुना है और साथ पूरी निष्ठा से जुड़े रहेंगे। इस संस्थान द्वारा मानवसेवा एवं ग्रामीणविकास के इस अवसर पर 10 महिलाओं को सिलाई मशीनें | अनेकानेक सृजनात्मक कार्यक्रम कर एक मिसाल पैदा श्री राजकुमार जैन धनबाद एवं उनकी धर्मपत्नी ने वितरित | की है, जो अपने आप में एक ऐतिहासिक उदाहरण की। यहाँ यह उल्लेखनीय है कि श्री राजकुमार जी जैन | है। श्रीसेवायतन की पिछली बैठक में अनेक कार्य किये धनबादवालों के पूर्ण सहयोग से एक सप्ताह का 140 जाने का निर्णय लिया गया है। लोगों का यह कार्यक्रम सम्पन्न हुआ। इस आदर्श कार्यक्रम | विमल (सेठी) गया प्रचार मंत्री- श्रीसेवायतन, मधुबन 32 जनवरी 2009 जिनभाषित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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