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है। उनमें शिथिलाचार पनपाने या मिटाने का दायित्व आप। के लिए उनके गुरुओं को उत्तरदायी माना है और सुझाव पर है, शतप्रतिशत आप पर है।
दिया है कि गुरुओं को उन पर कठोर अनुशासन करना भक्ति भावना से प्रेरित होकर इस कठोर निवेदन के | चाहिए, और यदि वे आज्ञापालन नहीं करते, तो उनके पिच्छीप्रति क्षमा प्रार्थी हूँ। इसके अतिरिक्त मैं उन श्रेष्ठिजनों- | कमण्डलु छीन लेना चाहिए अर्थात् दीक्षाभंग कर देनी चाहिए। श्रावकों से भी विनम्र निवेदन करना चाहूँगा कि अपनी | यह सुझाव समीचीन है, क्योंकि दीक्षा-छेद की आज्ञा आगम सांसारिक लालसाओं की पर्ति के लिए इन भोले-भोले सन्तों में दी गयी है। किन्त प्रश्न यह है कि यदि गरु (अ को ख्याति लाभ के प्रलोभनों में फँसाकर दर्गति का मार्ग ना शिथिलाचारी हो, तो गरु और शिष्य दोनों के शिथिलाचार का दिखावें। क्यों कि अपनी मर्यादा भंग करने पर जितना दोष | उत्तरदायित्व किस पर है? उनके पिच्छी-कमण्डल छीनने उन्हें लगता है उससे दुगुना दोष आपको भी लग जाता हैं। | का अधिकार किसे है? यह यक्षप्रश्न सम्पूर्ण जैन समाज के
शिवाड़ (सिवाई माधोपुर) राजस्थान | लिए विचारणाय है। सम्पादकीय टिप्पणी
रतनचन्द्र जैन विद्वान् और अनुभवी लेखक ने मुनियों के शिथिलाचार
कुण्डलपुर के बड़े बाबा पर उपसर्ग
ब्र.अमरचन्द्र जैन पढ़ा था मुगलों ने बड़े बाबा की कीर्ति सुनकर अपने | आक्रोश एवं घोर अज्ञानता के अंधकार से इस अंधे जीव को धर्मानुसार कुण्डलपुर आकर मूर्ति को खंडित करने का शौर्य
क्षमा कर देना। उसे खबर नहीं कि वह क्या कर बैठा! यह (उद्योग) किया था। अतीत की इस घटना में वे इस अतिशयकारी | लिखते मेरी लेखनी काँप रही है। इस कृत्य' को सपने में भी मर्ति का कुछ बिगाड़ नहीं पाये और उल्टे पाँव भाग गये और | कोई जैन धर्मी सोच सकता है क्या? आज विधर्मियों ने नहीं, साधर्मी भाई ने ही अपने भावों से बड़े
| हम नहीं जानते यह पुस्तक प्रकाशित कर लेखक, बाबा को चीर बीच से दो टुकड़े कर (खंडित कर) जोड़कर संपादक, प्रकाशक श्री भाई अजित टोंग्या समाज से क्या उसे फोटो बनाकर एक पुस्तक लिखी 'कुण्डलपुर कोहराम' कहना चाहते हैं तथा क्या करना उन्हें इष्ट है? यह जिनभक्त
और चित्र को उक्त पुस्तक के मुखपृष्ठ पर छापकर अपनी | की भक्ति की कौन सी विधा है? अभी तक के इतिहास में तीव्रतम कषायों (कृष्ण लेश्या का) का लेखा प्रस्तुत किया है। मैंने ऐसा ककत्य नहीं पढा। अरे भाई जिनवाणी के पष्ठ यदि
जैनदर्शन में द्रव्य हिंसा से कहीं बहुत बढ़कर भाव | असावधानी से धरती पर गिर जायें या फट जायें तो उसे हिंसा कही गयी है और भावों के द्वारा ही पापों का बंध होता | उठाशीश से लगा पश्चाताप कर दःख करते हैं। इस अवमानना. है। मेरे भाई ने भावों से ही बड़े बाबा को खंडित प्रदर्शित | प्रमाद का प्रायश्चित लेते हैं और मेरे भाई ने जिनवाणी को किया और हंता बनकर शांति एवं आनन्द का अनुभव कर रहा | नहीं 'जिन' को ही बद्धिपूर्वक चीर डाला? है और लोक में प्रशंसा पाने की पात्रता की भीख माँग रहा है।
| अरे भाई पुराण में पढ़ा कि मात्र णमोकार मंत्र को आज मेरे साधर्मी बंधु ने भावों से हिंसाकर (वचन) | लिखकर मिटाने में नरक गति का बंध हो गया और आपने लेखन द्वारा प्रदर्शन किया है, अब द्रव्यरूप से कार्य शेष रह | लाखों जैनधर्मियों की आत्मा द:खायी है. घोर आसादना की गया है, तो क्या मुगलों की तरह यह भाई बड़े बाबा को | है. उसका प्रतिफल क्या होगा? नरक से नीची भी कोई गति खंडित करने का अब उद्योग करेगा? इस 'उपसर्ग' से 'बड़े | है क्या? बाबा' को बचाने को मैं भारतवर्ष के हर पुरुष महिला एवं
भाई टोंग्या का अगला कदम क्या होगा, नहीं जानता। बच्चे से अपील करता हूँ।
इस कार्य की निन्दा करें पर यदि मन-वचन और काय से, जब मुखपृष्ठ पर जिनेन्द्र देव की यह अवमानना की | इन्होंने कोई ऐसा उद्योग किया तो क्या होगा? अभी कहने में हो, तो आप उक्त (वगैर देखे ही) पुस्तक के गर्भ में क्या है, | असमर्थ हूँ। अतः हर जैन से मैं प्रार्थना करता हूँ कि बड़े अंदाज लगा सकते हैं। भगवान् की प्रतिमा के चित्र को इस | बाबा को इस उपसर्ग से बचायें और पण्य लाभ करें। विद्रूपता से प्रकाशित करने का मैं तीव्र विरोधक हूँ।
श्री महावीर दि. जैन उदासीन आश्रम, हे 'बड़े बाबा' इस पाप से किस गति का बंध होगा? |
- कुण्डलपुर(दमोह)
-अप्रैल 2007 जिनभाषित 13
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