Book Title: Jinabhashita 2005 05
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 7
________________ हमारी द्रव्य-पूजाका रहस्य स्व. पं. वंशीधर जी व्याकरणाचार्य पूजाका अर्थ भक्ति, सत्कार या सम्मान होता है और | अर्पण की जा रही हैं वह जड़ है या चेतन है अथवा आत्मा वह छोटों द्वारा बड़ों (पूज्यों) के प्रति प्रकट किया जाता है। | की अवस्थाविशेष है । अरहंत, सिद्ध, शास्त्र, धर्म,व्रत,रत्नत्रय इसका मूलकारण पूजक को अपनी लघुता और पूज्यकी | व तीर्थस्थानों को जलादि अष्टद्रव्यका अर्पण करना बुद्धिगम्य महत्ताको स्वीकार करना है तथा उद्देश्य अपनी लघुता को | कहा जा सकता है या नहीं? परन्तु तर्कशील लोगों ने इसके नष्ट कर पूज्य जैसी महत्ता की प्राप्ति में प्रयत्न करना है। | ऊपर हमेशा से आक्षेप उठाये हैं और वे आज भी उठाते चले इसके प्रकट करने के साधन मन, वचन और काय तो हैं ही, जा रहे हैं। उन आक्षेपों का यथोचित समाधान न होने के परन्तु कहीं-कहीं बाह्य सामग्री भी इसमें साधनभूत हो जाया कारण ही एक संप्रदाय में मूर्तिमान्यता के विरोधी दलों का करती हैं। जहाँ पर मन, वचन और कायके साथ बाह्य सामग्री अविष्कार हुआ है। जैनियों के श्वेताम्बर सम्प्रदाय में हँढिया इसमें साधनभूत हो, उसका नाम द्रव्यपूजा है तथा जहाँ केवल | पंथ और दिगम्बर सम्प्रदाय में तारण पंथ इन आक्षेपों के मन, वचन और कायसे ही भक्ति-प्रदर्शन किया जाय उसे समाधान न होने के ही फल हैं । केवल जैनीयों में ही नहीं, भावपूजा समझना चाहिये। वैसे तो मनके द्वारा भक्तिप्रदर्शन | जैनेतरों में भी इस प्रकार के पंथ कायम हए हैं. परन्त यह भावपूजा तथा वचन और कायके द्वारा भक्ति-प्रदर्शन द्रव्यपूजा | संभव है कि जैनेतरों में विरोध के कारण जैनियों से भिन्न हैं। कही जा सकती है, परन्तु यहाँ पर इस प्रकार की द्रव्यपूजा | कुछ भी हो, परन्तु जैन सिद्धान्त इस बात को नहीं और भावपूजा की विवक्षा नहीं है। शास्त्रों में जो द्रव्यपूजा | मानता कि जो द्रव्य भगवान के लिये अर्पण किया जाता है और भावपूजा का उल्लेख आता है, वह क्रमसे बाह्य सामग्री | वह उनकी तृप्तिका कारण होता है, कारण कि उनमें इच्छा की अपेक्षा और अनपेक्षा में ही आता है। | का सर्वथा अभाव है। इसलिये कोई भी बाह्य वस्तु उनकी उल्लिखित द्रव्यपूजाका लोकव्यवहार में समावेश तो | तृप्ति का कारण नहीं हो सकती, उनकी तृप्ति तो स्वाभाविक परंपरागत कहा जा सकता है। अपने से बड़े पुरुषों को | ही है। इसलिये अपने विचारों व आचरणों को पवित्र व उनकी प्रसन्नता के लिये उत्तमोत्तम सामग्री भेंट करना शिष्टाचार | उन्नत बनाने के लिये भगवान के गुणों का स्मरण (भावपूजा) ही में शामिल है। भगवदाराधन में भी कबसे इसका उपयोग | पर्याप्त है। भगवान-के गुणस्मरण में मूर्ति सहायक है, मूर्तिको हुआ, इसकी गवेषणा यद्यपि ऐतिहासिक दृष्टि से की जा | देखकर गुणस्मरण में हृदय का झुकाव सरलता से हो जाता सकती है, लेकिन यहाँ पर इसकी आवश्यकता नहीं है। है। इसालिये भगवान के गुणों का स्मरण करते समय मूर्ति यहाँ तो सिर्फ इस बात को प्रकट करना है कि हमारे यहाँ | का अवलम्बन युक्ति और अनुभव विरुद्ध नहीं, परन्तु ऊपर ईश्वरोपासना में द्रव्यपूजा का जो प्रकार है वह किस अर्थको | बतलाये हये उद्देश्य की सिद्धि में जब बाह्य सामग्रीका कोई लिये हुए है। यद्यपि मेरे विचारों के अनुसार शास्त्रों में स्पष्ट | उपयोग नहीं, तब भगवदाराधन में बाह्य सामग्री का समावेश उल्लेख तो जहाँ तक है, नहीं मिलता है। परन्तु पूजापाठों के | क्यों किया गया है ? इस आक्षेपका यथोचित समाधान न अवतरण, अभिषेक व जयमाला आदि भागों में मेरे इन | मिलने के कारण जैनियों में द्रव्यपूजा के बजाय मूर्ति मान्यता विचारों का आभास जरूर है। और फिर यह तो ध्यान में | के विरोधी पंथ बन गये हैं। रखना ही चाहिये कि जो विचार युक्ति और अनुभव विरुद्ध । | तात्पर्य यह कि मूर्तिकी मान्यता को अनिवार्य रूप नहीं, वे शास्त्रबाह्य नहीं कहे जा सकते। इसी विचार से मैं | से प्रत्येक व्यक्ति के हृदय में स्थान है। यह निश्चित है कि अपने विचारों को प्रकट करने के लिये बाध्य हुआ हूँ। मूर्तिमान्यता के विरोधी स्वयं मूर्ति की मान्यता को छोड़ नहीं शास्त्रों में द्रव्यपूजा का अष्टद्रव्य से करने का विधान | सकते, बल्कि आवश्यकतानुसार उसका उपयोग ही करते पाया जाता है और हमारा श्रद्धालु समाज बिना किसी तर्क- | रहते हैं। मर्ति मुख्य-वस्तुका प्रतिनिधि होती है, जो हमको वितर्क के नि:संकोच अर्हन्त, सिद्ध, गुरु, शास्त्र,धर्म, व्रत, मुख्य-वस्तु के किसी निश्चित उद्दिष्ट स्वरूप तक पहुँचाने में रत्नत्रय, तीर्थस्थान आदि की पूजा करते समय निश्चित | समर्थ है। किसी वस्तु का प्रतिनिधि आवश्यकता व उद्देश्य अष्टद्रव्यों को उपयोग में लाता है। समाज के उदार हृदय में | के अनुकूल सचेतन व अचेतन दोनों पदार्थ हो सकते हैं। यह विचार ही पैदा नहीं होता कि ये वस्तुयें जिसके लिये एक वस्तु के समझने में जो दृष्टान्त बगैरह का उपयोग किया - मई 2005 जिनभाषित 5 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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