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तक भारत के नाम ही है, भारत में क्यों उपेक्षित हो रही हैं ? आवश्यकता है, अध्यात्म को चिकित्सा विज्ञान से जोड़कर, मानवीय सेवा को धर्म से सम्बद्ध कर आध्यात्मिक प्रयोग करने की। मेरा एक निजी संस्मरण इस सन्दर्भ में उल्लेखनीय है जिसके द्वारा इस लेख का उपसंहार करना चाहूँगा। जो अध्यात्म और चिकित्सा की जुगलबंदी को पुष्ट करता है । घटना 20 फरवरी 2002 की है। मरी बेटी नन्दिनी का जयपुर में एंगेजमेंट हुआ । वर-पक्ष से सुझाव आया कि मार्च 02 में ही शादी सम्पन्न कर ली जावे क्योंकि लड़के की माँ स्तन कैंसर से सीरियस है । शायद अप्रैल 04 तक खुशी के ये क्षण ने देख पाएँ। मैंने शादी के पूर्व होने वाली समधिन
जीवदयाप्रेमी जीवनसृष्टि का नाश करनेवाले व्यापार नहीं करें
श्रीमती सुमन जैन को एक लम्बा विश्वासभरा पत्र लिखा और अमुक मन्त्र लिखकर जाप्य करने की सलाह दी। प्रार्थना में संस्कृत स्तोत्र ( भक्तामर ) पढ़ने को कहा। 25 अप्रैल 2002 महावीर जयन्ती के दिन शादी सम्पन्न हुई और आज 2 वर्ष से अधिक समय बाद भी समधिन (मेरी बेटी की सास) अपने अवशेष आयु निषेकों के साथ ज्यादा स्वस्थ होकर जी रही हैं। अध्यात्म की शक्ति, जीवन में शान्ति का वर्षण करती है। जो अमोल विरासत है । जरुरत है- एक दृढ़ विश्वास /आस्था/ श्रद्धा और संकल्प की ।
14 मई 2005 जिनभाषित
एक जीव दयाप्रेमी व्यक्ति हमारे पास आकर कहने लगा कि वह हर रोज कबूतर को दाने डालते हैं, गाय को चारा खिलाते हैं तथा मछलियों को आटा भी खिलाते हैं। हमने उनके धंधे के बारे में पूछा तो कहते हैं कि मेरी हिन्दुस्तान लीवर कंपनी एवं साबुन की एजेन्सी है। हमें तुरंत विचार आया कि साबुन बनाने के लिए जानवरों का कत्ल कर उसके शरीर से निकलने वाले चर्बी का उपयोग किया जाता है। करोड़ों रूपये के साबुन का व्यापार करने वाला व्यक्ति खुद जीवदयाप्रेमी होने का दावा किस तरह करता है ? अहिंसाप्रेमी बनने वालों को हिंसा से चलने वाले धंधों को अपनाने के लिए तत्पर नहीं रहना चाहिए। मुंबई के उपनगर में गायनेकोलोजिस्ट नामक महिला धर्मात्मा जैसी है, वह मंदिर जाती है, साधुओं का सत्संग करती है व्रत करती है साथ-साथ वह डॉक्टर महिला अपने मेटर्निटी में गर्भपात कराने का काम भी करती है। 1970 सं. पहले वह गैर कानूनी रूप से गर्भपात कराती थी अब नियम बनने के बाद कायदे से गर्भपात कराती है, ऐसी व्यक्ति को धर्मात्मा कैसे कह सकते हैं? पुराने जमाने में मछली, कसाई आदि धंधे हिंसक माने जाते थे और समाज में प्रतिष्ठा हासिल करने के लिए हिंसक धंधे भी लोग करने लगे हैं। शेयर ब्रोकर एक प्रतिष्ठित धंधा कहा जाता है लेकिन उसमें शामिल कंपनियों की सूची को देखने पर पता चलता है उनके द्वारा उत्पादित वस्तुओं, दवाइयां, फ्रूड प्रोसेसिंग, केमिकल्स इत्यादि में भी कत्लखाने से निकलने वाले अवयव का उपयोग किया जाता है। दवा बनाने के लिए जानवरों पर परिक्षण किया जाता है जिससे केमिस्ट की दुकान और कसाई की दुकान में कोई फर्क नहीं रहा । कसाई अपनी दुकान में मांसाहार पदार्थ स्वरूपों में बेचता है जबकि केमिस्ट उसे पैकिंग कर उसे आकर्षक रुप में बेचते हैं। केमिकल्स इण्डस्ट्रीज द्वारा तैयार की गई दवा से करोडों जीवों की हत्या होती है । केमिकल्स का गंदा पानी नदियों के पानी को दूषित करता है जिससे जलचर जीवों की मृत्यु हो जाती है, जिस क्षेत्र में सीमेन्ट के कारखाने बनाये जाते हैं वहां लाखों पेड़ों का संहार किया जाता है। प्लास्टिक की थैलियां पर्यावरण के लिए सबसे बड़ी समस्या बन गई हैं, रास्ते पर घूमने वाली हजारों गायें, प्लास्टिक की थैलियां खाकर मर जाती है। अतः जीव दयाप्रेमियों को अहिंसक व्यापार अपनाना चाहिए। प्रकृति का दोहन एवं पशुओं पर अत्याचार को रोकना उनकी पहली प्राथमिकता है।
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बीना (म.प्र.)
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'जिनेन्दु' साप्ताहिक से साभार
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