Book Title: Jinabhashita 2005 05
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 20
________________ 21. - प्रदक्षिणा (परिक्रमा) प्रदक्षिणा देकर नमस्कार करता हूँ। जन्म-जरा-मरण से दूर परिक्रमा का अर्थ : परि+क्रम धन से परिकमा | होने के लिये तीन परिक्रमा दी जाती हैं। शब्द बनता है। परिक्रमा का अर्थ हआ सिलसिला, क्रम, | परिक्रमा लगाने का वैज्ञानिक कारण : प्रत्येक उत्तरोत्तर, घसना, इधर-उधर भ्रमण करना। परिक्रमा | प्राचीन अचेतन वस्त में एवं चेतन मनुष्य में अपना प्रभामण्डल पंचपरमेष्ठी के दायीं से बायीं ओर लगाना चाहिये। होता है, उस प्रभामण्डल के सम्पर्क में आने से विचारधवलाकार वीरसेन स्वामी ने कहा है कि वन्दना परिवर्तन होते हैं। किसी भी वस्तु के चारों तरफ घूमने से करते समय गुरु, जिन और जिनगृह की प्रदक्षिणा करके अथवा सिर को घुमाने से मस्तिष्क की रक्त प्रणालिका नमस्कार करना चाहिये। प्रभावित होती हैं तथा उससे पिनीयल और व्यूटर ग्रन्थियों पर भी रक्ताभिसरण होने से मन में एकाग्रता वृद्धिंगत होती वंदणकाले गुरु जिण जिणहराणं पदक्खिणं काऊण णमंसणं पदाहिणं णाम। धवला पु. 13/14,/28 /89 | परिक्रमा दायीं ओर से ही क्यों लगाते हैं ? मंदिर के पवित्र वातावरण में स्थित इलेक्ट्रान, न्यूट्रान आदि की आचार्य यतिवृषभ ने तिलोयपण्णति में प्रदक्षिणा का गति भी दक्षिणावर्त होती है। संसार के पवित्र माने जाने वाले वर्णन देवों के वर्णन में किया है- देवियों सहित वे देव उत्तम कार्यों में भी दाहिने हाथ का उपयोग किया जाता है। सारे मंगल-वादित्रों के शब्द से मखरित जिनेन्द्रपुर को देखकर लौकिक कार्यों में भी दाहिने हाथ का प्रयोग किया जाता है, नम्र हो प्रदक्षिण करते हैं। जैसे- शादी के समय फेरे लगाने में, रुपयों के लेन-देन में, ज्योतिषी या वैद्य को हाथ दिखाते समय, सलामी लेते समय, दट्टवण जिंणिदिपुरं, वर-मंगल-तूर-सद्द-हलबोल। | भोजन करते समय, लेखन कार्य में, पूजन, हवन आदि में। देवा देवी-सहिदा, कुव्वंति पदाहिणं पणदा॥ मुसलमान सारे कार्य उलटे हाथ से करते हैं। पर सलाम 8/604 पृ. 591 सीधे हाथ से करते हैं। परिक्रमा लगाने का धार्मिक कारण : 22. मण्डल रचना : पूज्य परमदेवों के प्रकार, परमेष्ठी ___1. ढाई द्वीपों में विद्यमान अरिहंत, आचार्य, उपाध्याय, देवों के भेद, प्रमुख गुण और उनके प्रकारों को एवं व्रत, तीर्थक्षेत्र इनको सामान्य दृष्टि से जानने के लिये जो रेखाकार साधु की प्रतीक अथवा तीन द्वीपों में स्थित चैत्यालयों की चित्र बनाया जाता है उसे मण्डल (मॉडना) कहते हैं। इसको वन्दनास्वरूप अथवा तीनों द्वीपों से होनेवाले सिद्धों की यथायोग्य फलक (पाटा) पर बनाकर प्रतिमा के या यन्त्र के सिद्धभूमियों की वन्दना-स्वरूप परिक्रमा तीन लगाते हैं, सामने स्थापित किया जाता है। यन्त्रसहित रेखाचित्र को यन्त्र क्योंकि तीनों द्वीपों में हमारा पहँचपाना सम्भव नहीं। . कहते हैं। 2. त्रिवर्ण (क्षत्रिय-वैश्य-शद्र इन तीन वर्णों) के निमित्त इसका उपयोग विशेष पूजा, विधान, व्रतोद्यापन, से होनेवाले अहंकार के नाश की सूचनारूप भी तीन ही तीर्थक्षेत्र पूजा और प्रतिष्ठा कार्यों में नियमतः किया जाता है। परिक्रमा दी जाती हैं। इसी प्रकार ग्रहशान्ति, नवीन गृहोद्घाटन, शान्तिकर्म आदि 3. धर्म, अर्थ काम पुरुषार्थ गौण करके अब मेरे विशेष अवसरों पर ही मण्डल अथवा यन्त्र का उपयोग कदम मोक्ष पुरुषार्थ की ओर बढ़ें, यह याद दिलाने के लिये | करना अनिवार्य है। धार्मिक पूजा, अनुष्ठान आदि अवसरों भी तीन ही परिक्रमा दी जाती हैं। पर जैनाचार्यों द्वारा प्रणीत यह मण्डलप्रणाली वैज्ञानिक एवं ___4. रत्नत्रय की प्राप्ति हो- ऐसी भावनासूचक तीन | युक्तिपूर्ण है। परिक्रमा दी जाती हैं। ____23. तिलककरण : पूजा अनुष्ठानमें तिलक-करण 5. मन की शुद्धता, वचन की शुद्धता के लिये अर्थात् | का महत्वपूर्ण स्थान है। तिलक जिनशासन के प्रति निष्ठा हे जिनेन्द्र ! मैं अपने मन को विकारों से रहित कर, वचनों | और परमात्मा की आज्ञा का प्रतीक है। प्रतीक के लुप्त होने को सात्विक कर और शरीर को स्नानादि से शुद्ध करके | पर निष्ठा भी लुप्त हुई और निष्ठाविहीन जीवन की आराधना आपको नमस्कार कर रहा हूँ। अर्थात् त्रियोगों से तीन बार कायरता का सूचक है। 18 मई 2005 जिनभाषित - Jain Education International For Private & Personal Use Only - www.jainelibrary.org

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