Book Title: Jinabhashita 2005 05
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 12
________________ तीर्थंकर महावीर एवं एलबर्ट आइंस्टाइन के गणितीय सापेक्षता सिद्धांत, सूचना तंत्र एवं कर्म स्वरुप पवना प्रोफेसर लक्ष्मीचंद्र जैन महावीर द्वारा प्रसारित जिनवाणी के रहस्यों के उद्घाटन | का सिद्धांत (special theory of relativity) प्रस्तुत किया, द्वार की एक अल्प चर्चा हम इस लेख द्वारा प्रस्तुत करेंगे। प्रायः | जिसने उस पहेली को निपटा दिया। यह वर्ष 1905 का था, प्रत्येक व्यक्ति महावीर और आइंस्टाइन के नामों से परिचित हैं, | जिसकी एक शताब्दी व्यतीत होने पर 2005 वर्ष को आइन्स्टाइन किन्तु उन्होंने प्रकृति की अनबुझ पहेलियों में से कुछ को किस | वर्ष के रूप में अखिल विश्व में मनाया जा रहा है। प्रकार सुलझाकर एक नवीन ज्ञान जगत का उद्घाटन किया, अब हम थोड़ी और गहराई में उतरें और देखें कि इसकी जानकारी दुर्लभ व जटिल है। आइन्स्टाइन ने इस पहेली को किस प्रकार सापेक्षता सिद्धांत द्वारा विश्व के इतिहास में जब विद्वानों के समक्ष कोई अनबूझ बूझने का प्रयास किया! यहाँ महावीर की जिनवाणी का वह पहेली ने उनके ज्ञान प्रसार में बाधा, क्राइसिस (Crisis) डाली. | सापेक्षता सिद्धांत प्रयुक्त होता है जहाँ अल्पतम और महत्तम, या तभी किसी अद्भुत मस्तिष्क ने प्रकृति के किसी अज्ञात रहस्य | जघन्य और उत्कृष्ट प्रमाणों की मर्यादाएं प्रकृति ने तय, निर्धारित को सामने लाकर एक नया मार्ग प्रशस्त कर दिया । तीर्थंकर | करके रखी हैं, और उन अल्पतम से अल्पतर, तथा महत्तम से महावीर के युग में जो जीवों में पारस्परिक सम्बन्ध संकट की महत्तर प्रमाणों के अस्तित्त्व नहीं होते हैं। यदि समय अविभागी स्थिति में पहुँच गये थे, उन्हें सुलझाने हेतु कर्म को गणितीय है तो वह अविभागी ही रहता है, गतियां जो मंदतम है उनसे वस्तु में ढालकर जो मार्ग निर्मित किया गया उसमें भी सापेक्षता मंदतर नहीं होती तथा जो महत्तम है उनसे महत्तर नहीं होती। एवं सूचना तंत्र अपने गणितीय स्वरूपों को लेकर निखरते चले | आइंस्टाइन ने विशिष्ट सापेक्षता को इस प्रकार किया कि और गये थे। ऐसा ही प्रारम्भ आइंस्टाइन के युग में तब हुआ जब | सभी घटनाओं के सूचना तंत्र में गतियों की सापेक्षता बरकरार माइकेलसन-मोरले नामक वैज्ञानिकों ने पृथ्वी की निरपेक्ष गति | रहती है, किन्तु प्रकाश किरण या कण की गति में सापेक्षता को निकालने का प्रयास किया। यहीं से आइंस्टाइन ने जो सचना | भागीदारी नहीं रखती है। जहाँ जिस उद्गगम से वह निकलती है, तंत्र के रहस्य को खोला तो ज्ञात हुआ कि प्रकृति में एक ऐसा उसकी गति भी प्रकाश की गति में कोई परिवर्तन नहीं ला सापेक्षता सिद्धांत लागू होता है जो कल्पना के परे है। इस सकती है, अतः सभी गणनाएं इस विशिष्ट सापेक्षा को लेकर दिखाये गये विशिष्ठ सापेक्षता के मार्ग में अणुबंधनों में छिपी निर्धारित करने पर पहेली सुलझा ली गयी। इस सापेक्षता के शक्ति का प्रमाण भी मिल गया जिसने विश्व के राजनीतिज्ञों की रहस्य को लेकर अनेक प्रकार के भैतिकी के विभिन्न गणितीय गतिविधियों में क्रान्ति ला दी। प्रमाणों को पुनः निर्धारित किया गया और उन्हें प्रयोगों द्वारा पुष्ट तीर्थकर महावीर के पश्चात, लगभग चतुर्थ सदी ईस्वीपूर्व | भी पाया गया। में हुए इटली के जीनो (Zeno) ने सापेक्षता सम्बन्धी चार | तीर्थकर महावीर की सापेक्षता कोरी काल्पनिक नहीं पहेलियाँ प्रस्तुत की थीं जो देश और काल से सम्बन्धित थीं | थी और उसने प्रकृति में भूमिका अदा करने वाली कर्म सम्बन्धी (देखिए, प्रस्तावना, महावीराचार्य कृत गणित सार संग्रह, सोलपुर, | घटनाओं में गणितीय सापेक्षता का आधार भी देखा तथा कर्म के 1963)। इन अनब्रुझ पहेलियों ने भी उस युग से लेकर अभी गणितीय रूप को लेकर ज्ञान दर्शन के नये जगत का उद्घाटन तक के विद्वानों के समक्ष जो चुनौती दी थी उसे कोई हल न कर कर दिया। सूचना तंत्र का धवलादि ग्रंथों में विकसित रूप सका था। उनका भी गणितीय स्वरूप था और उनमें भी जो असाधारण प्रतीत होता है। किस प्रकार कर्म के विभिन्न हस्ताक्षरों रहस्य छिपा था उसे जिनवाणी के द्वारा सुलझाया जा सकता था। में प्रकृति, प्रदेश, अनुभाग और स्थिति के प्रमाण पारस्परिक (वही, प्रस्तावना) सापेक्षता की मर्यादाओं के भीतर जीव की अनेक चालों को पथ्वी की निरपेक्ष गति सम्बन्धी पहेली को जब विश्व | प्रकट करते हैं-यह गहन अध्ययन का विषय हो जाता है। का कोई भी विद्वान सफल न हो सका तो आइन्स्टाइन ने अपना आइंस्टाइन ने भी विशिष्ट सापेक्षता के आगे कदम रखा प्रकृति का अज्ञात रहस्य खोलने हेतु गणितीय विशिष्ट सापेक्षता | और वह सामान्य सापेक्षता तक पहुँचने के लिये देश, काल के 10 मई 2005 जिनभाषित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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