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अभिन्न-अविभाज्य अंग रहे हैं । भारतवर्ष का जैन धर्म | उसमें यह नियम रक्खा गया कि जैनों को हिन्दुओं के अन्तर्गत अथवा बौद्ध धर्म भारतीय विचारधारा एवं सभ्यता की शत- | ही परिगणित किया जाय-- एक स्वतन्त्र समुदाय के रूप में प्रतिशत उपज है, तथापि उनमें से कोई भी हिन्दू नहीं है। पृथक नहीं । इस पर जैन समाज में बढ़ी हलचल मची । अतएव भारतीय संस्कृति को हिन्दू संस्कृति कहना भ्रामक स्व० आचार्य शान्तिसागर जी ने कानून के विरोध में आमरण
अनशन ठान दिया, जैनों के अधिकारियों को स्मृतिपत्र दिए, ऐतिहासिक दृष्टि से भी, वेदों तथा वैदिक साहित्य में | उनके पास डेपुटेशन भेजे । फलस्वरूप राष्ट्रपति, प्रधानमन्त्री वेदविरोधी ब्रात्यों या श्रमणों को वेदानुयायियों--ब्राह्मणों आदि | तथा अन्य केन्द्रीय मन्त्रियों ने जैनों को आश्वासन दिये कि से पृथक सूचित किया है । अशोक के शिलालेखों (३ री उनकी उचित मांग के साथ न्याय किया जाएगा । शती ई० पूर्व) में भी श्रमणों और ब्राह्मणों का सुस्पष्ट पृथक
जैनों कि मांग थी कि उन्हें सदैव की भांति १९५१ पृथक उल्लेख है । यूनानी लेखकों ने भी ऐसा ही उल्लेख की तथा उसके पश्चात् होने वाली जनगणनाओं में एक स्वतन्त्र किया और खारवेल के शिलालेख में भी ऐससा ही किया | धार्मिक समाज के रूप में उसकी पृथक जनसंख्या के साथ गया । २री शती ई0 पूर्व में ब्राह्मण धर्म पुनरूद्धार के नेता | परिगणित किया जाय । उनका यह भी कहना था कि वे पतञ्जलि ने भी महाभाष्य में श्रमणों एवं ब्राह्मणों को दो | अपनी इस मांग को वापस लेने के लिए तैयार हैं यदि स्वतंत्र प्रतिस्पर्धाओं एवं विरोधी समदाओं के रूप में जनगणना में किसी अन्य सम्प्रदाय या समुदाय की भी पृथक कथन किया । महाभारत, रामायण, ब्राह्मणीय पुराणों, स्मृतियों गणना न की जाय और समस्त नागरिकों को मात्र भारतीय आदि से भी यह पार्थक्य स्पष्ट है । ईस्वी सन् के प्रथम | रूप में परिगणित किया जाय। (देखिए हिन्दुस्तान टाइम्स सहस्त्राब्दी में स्वयं भारतीय जनों में इस विषय पर कभी | ६.२.१९५०) कोई शंका, भ्रम या विवाद ही नहीं हुआ कि जैन एवं | | जैनों का डेपुटेशन अधिकारियों से ५ जनवरी 1950 ब्राह्मणधर्मी एक हैं -- यही लोकविश्वास था कि स्मरणातीत | को मिला । डेपुटेशन के नेता एस० जी० पाटिल थे । इस प्राचीन काल से दोनों परम्पराएँ एक दूसरे से स्वतंत्र चली | अवसर पर दिए गये स्मृति पत्र में हरिजन मन्दिर प्रवेश आई हैं । मुसलमानों ने इस देश के निवासियों को जातीय | अधिनियम तथा बम्बई बैगर्स एक्ट को भी जैनों पर न लागू दृष्टि से सामान्यतः हिन्दू कहा, किन्तु शीघ्र ही यह शब्द शैव | करने की मांग की । अधिकारियों ने जैनों की मांग पर वैष्णवादि ब्राह्मणधर्मियों के लिए ही प्रायः प्रयुक्त करने लगे | विचार विमर्श किया और अन्त में भारत के प्रधानमंत्री नेहरूजी क्योंकि उन्होंने यह भी निश्चय कर लिया था कि उनके | ने यह आश्वासन दिया कि भारत सरकार जैनों को एक अतिरिक्त यहाँ एक तो जैन परम्परा है जिसके अनुयायी | स्वतन्त्र- पृथक धार्मिक समुदाय मानती है और उन्हें यह अपेक्षाकृत अल्पसंख्यक हैं तथा अनेक बातों में बाह्यतः | भय करने की कोई आवश्यकता नहीं हैं कि वे हिन्दू समाज उक्त हिन्दुओं के ही सदृश भी हैं, वह एक भिन्न एवं स्वतंत्र | के अंग मान लिए जाएंगे यद्यपि वे और हिन्दू अनेक बातों में परम्परा है । मुगलकाल में अकबर के समय से ही यह तथ्य | एक रहे हैं (हि.टा. 2-2-1950) प्रधानमंत्री के प्रमुख सचिव सुस्पष्ट रूप से मान्य भी हुआ । अंग्रेजों ने भी प्रारंभ में, श्री ए.के. श्री एस.जी. पाटिल के नाम लिखे गये । 31-1मुसलमानों के अनुकरण से, सभी मुस्लिमतर भारतीयों को | 1950 के पत्र में जैन बनाम हिन्दू सम्बन्धी सरकार की नीति हिन्दू समझा किन्तु शीघ्र ही उन्होंने भी कथित हिन्दुओं और | एवं वैधानिक स्थिति सुस्पष्ट कर दी गई है । शिक्षा मन्त्री जैनों की एक दूसरे से स्वतंत्र संज्ञाएँ स्वीकार कर लीं । सन् | मौलाना अबुलकलाम आजाद ने भी श्री पाटिल को लिखे १८३१ से ब्रिटिश शासन में भारतीयों की जनगणना लेने का | गये अपने पत्र में उक्त आश्वासन की पुष्टि की और आशा क्रम भी चालू हुआ, सन् १८३१ से तो वह दशाब्दी जनगणना | व्यक्त की कि आचार्य शांतिसागर जी महाराज अब अपना क्रम सुव्यवस्थित रूप से चालू हो गया । इन गणनाओं में | अनशन त्याग देंगे । यह भी लिखा कि अपनी स्पष्ट इच्छाओं १८३१ से १८४१ तक बराबर हिन्दुओं और जैनियों की | के विरूद्ध कोई भी समूह किसी अन्य समुदाय में सम्मिलित संख्याएँ पृथक-पृथक सूचित की गईं । १५ अगस्त १९४७ | नहीं किया जाएगा। वही, (6-2-2950) लोक सभा में उप को हमारा देश स्वतन्त्र हुआ और सार्वजनिक नेताओं के | पधानमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल ने बलवन्त सिंह मेहता नेतृत्व में यहां स्वतन्त्र सर्वतन्त्र -प्रजातन्त्र की स्थापना हुई । के प्रश्र के उत्तर में सूचित किया कि जनगणना में धर्म किन्तु १९४८ में जो जनगणना अधिनियम पास किया गया | शीर्षक के अन्तर्गत हिन्दू और जैन पृथक- पृथक परिगणित 14 अप्रैल 2005 जिनभाषित
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