Book Title: Jinabhashita 2005 04
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 33
________________ किया, साथ ही पुराने मंदिर की दीवाल को अलग करते समय युग पुरुष श्रद्धेय वर्णी जी के असाधारण व्यक्तित्व पर अनेक उससे निकली 30 भव्य चित्ताकर्षक अष्टप्रातिहार्ययुक्त जिन | वक्ताओं ने प्रकाश डाला। ब्र. संदीप जी 'सरल' ने वर्णी जी को प्रतिमाओं का अवलोकन किया। सोलहवानी के शुद्ध सुवर्णवत् वर्णी जी को अटूट आस्था के सभी जिन प्रतिमायें मनोहारी हैं। सुंदर कलात्मक हैं, | मेरुशिखर, विनम्रता के धनी अभीक्ष्ण ज्ञानोपयोगी, उदार हृदय 1उन्हें देखकर अति प्रसन्नता व्यक्त की। भा.दि.जैन तीर्थ क्षेत्र की बेजोड़ मिसाल, ज्ञानरथ के प्रवर्तक, साहसिक संकल्प के कमेटी एवं भा.दि.जैन धर्म संरक्षणी सभा के अध्यक्ष द्वारा इन्हें | धनी, कुशल समाज सुधारक, नारी समाज उन्नायक, व्यवस्थित रखने के लिए आवश्यक राशि उपलब्ध कराने का | आत्मसमीक्षक, प्रभावक वाणी के धनी, श्रमणसंस्कृति के यशस्वी विश्वास दिलाया। इस नगर में जैनधर्म, बौद्धधर्म तथा हिंद धर्म | साधक, समयसारमय, वात्सल्यता के अथाह सागर आदि सोलह के पुरावशेष बडी मात्रा में हैं। ग्रामवासियों ने जानकारी दी है | विशेषणों से अलंकृत किया। आबाल वृद्ध नर-नारियों के लिए कि अभी भी अनेक स्थलों पर जैन मंदिरों के भग्नावशेष पड़े हैं वर्णी जी द्वारा प्रदत्त इन पंच शांतिसूत्रों को अपनाने की प्रेरणा ब्र. जो अपने अंदर जिन प्रतिमाओं को समेटे हैं। बिलहरी के दर्शन | 'सरल' जी ने दी। कर सभी दिंगबर जैन तीर्थ पनागर (जबलपुर) के दर्शन कर १. सच्चे हृदय से प्रभु की भक्ति करो। २. प्रतिदिन पिसनहारी मढ़िया जबलपुर पहुंचे और पर्वत पर जाकर श्रमतीर्थ | शक्तिपूर्वक दान दो। ३. ज्ञान की आराधना में कुछ समय दो। ४. पिसनहारी तथा नंदीश्वर द्वीप जिनालय के दर्शन कर संत शिरोमणि | अष्टमी चतुर्दशी एवं पर्व के दिनों में ब्रह्मचर्य का पालन करो। आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज की आज्ञानुवर्ती आर्यिकारत्न प्रो. ए.के. जैन दृढमति माताजी के दर्शन कर उनका आशीर्वाद प्राप्त किया। अनेकान्त ज्ञान मंदिर शोध संस्थान, बीना (सागर) म.प्र. अभिनंदन सांधेलीय पाटन (जबलपुर) वीर अहिंसक संगठन की स्थापना भगवान् महावीर के 'जियो और जीने दो' के सिद्धांत श्रुत महोत्सव सानंद सम्पन्न | को मूर्तरूप देने के उद्देश्य से 'वीर अहिंसक संगठन' की बीना (सागर) म.प्र. में १९-२० फरवरी २००५ को | स्थापना की गई है। संगठन का राष्ट्रीय कार्यालय 70, कैलाश परम पूज्य श्री १०८ सरलसागर जी महाराज के सुशिष्य परमपूज्य | हिल्स, ईस्ट ऑफ कैलाश, नई दिल्ली-110065 में रहेगा। मुनि श्री १०८ ब्रह्मानन्दसागर जी महाराज, मुनि श्री १०८ संगठन के राष्टीय अध्यक्ष का कार्यभार डॉ. धन्य अनंतानंतसागर जी महाराज के पुनीत सानिध्य में प्राचीन | कमार जैन, पर्व न्यायाधीश देख रहे हैं। डॉ. जैन समाज एवं पाण्डुलिपियों के संकलन, संरक्षण, संवर्द्धन एवं प्रचार-प्रसार तीर्थ संबंधी मामलों के पैरवीकार हैं, और समाज हित के के लिए प्राण-पण से समर्पित अनेकान्त ज्ञान मंदिर शोध संस्थान महती कार्यों को निष्पादित कर रहे हैं, उनके द्वारा एवं उनके बीना का १३वां स्थापना दिवस समारोह विविध कार्यक्रमों के आशीष से समाजहित के अनेक कार्य किए जा रहे हैं। श्री साथ आशातीत सफलता के साथ सम्पन्न हुआ। मणीन्द्र जैन संगठन के महासचिव हैं जो प्रतिष्ठित गीतकार, १९ फरवरी २००५ को अनेकान्त ज्ञान मंदिर बीना में | संगीतकार रवीन्द्र जैन के अनुज हैं, समाज हितार्थ कार्यों में सरस्वती आराधना के साथ सामूहिक भक्तामर स्तोत्र का पाठ | सदैव अग्रणी रहे हैं। किया गया। तदनन्तर अनेकान्त ज्ञान मंदिर की विविध उपलब्धियों संविधान के अंतर्गत अल्पसंख्यकों के लिए सुरक्षित के संदर्भ में डॉ. ब्र. मणिप्रभा दीदी सुश्री कृति जैन एवं शरद जैन | अधिकारों को प्राप्त करना तथा साथ-साथ शिक्षा, रोजगार, ने प्रकाश डाला। प्रौढ़-संरक्षण एवं वैवाहिक-संबंध सेवाएँ प्रदान करना संगठन २० फरवरी २००५ को श्रुतधाम स्थल पर १३वां स्थापना | के प्रमुख उद्देश्य हैं। दिवस समारोह एवं श्रद्धेय क्षु. १०५ गणेशप्रसाद वर्णी संगोष्ठी का संगठन के सदस्य एवं संयोजक बनने के इच्छुक । शुभारम्भ मुख्य अतिथि श्री ऋषभकुमार जी मड़ावरावाले सागर व्यक्ति संगठन के राष्ट्रीय कार्यालय 70, कैलाश हिल्स, नई के ध्वजारोहण एवं डॉ. प्रकाश चन्द्र सोधिया महाराजपुर के | दिल्ली -110065 फोन : 9810043108, 26839445 और द्वारा दीप प्रज्जवलन किया गया। इसके पूर्व मंगलाचरण सुश्री | 51325868 से संपर्क कर सकते हैं। नबीता, रानु एवं चुनमुन जैन मुंगावली ने किया । बुन्देलखण्ड के | अप्रैल 2005 जिनभाषित 31 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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