Book Title: Jinabhashita 2005 04
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 22
________________ संस्कत में होती है किन्तु आधुनिक हिन्दी पुजाकाव्यों में । उनका ध्यान करते हये, उनको यह मेरी वन्दना-नमस्कार मूलपूजा एवं जयमाला दोनों हिन्दी में ही हैं। आराध्य देव के | पहुँचे। घंटे को हल्के हाथों से तीन बार ही बजाना चाहिए। गुणकथन या गुणगान को ही जयमाला कहा गया है। 'गाऊँ मन्दिर जी में लगा घंटा हमारी विशुद्ध भावनाओं को गुणमाला अबै, अजरअमर पद देत' में जयमाला के स्थान | प्रसारित करने के लिये एक वैज्ञानिक यंत्र है। उसकी मंगल पर गुणमाला शब्द दिया गया है। ध्वनि हमारा मानसिक प्रदूषण दूर करती है। 10. जय शब्द उच्चारण - प्रायः सभी धार्मिक 12. जाप (माला)- किसी मंत्र को बार-बार स्मरण कार्यों एवं पूज्य पुरुषों के गुण संकीर्तन के समय हम जय | करना जाप कहलाता है। जाप प्रारम्भ में तो माला के माध्यम शब्द का उच्चारण करते हैं, किन्तु इस शब्द के अभिप्राय से से की जाती है फिर अंगुलियों के माध्यम से और जाप में प्रायः जन अपरिचित हैं। सामान्यतः इस शब्द के विजय | निपुण हो जायें तो बिना अंगुली चलाये मात्र मन में मंत्र का आदि कई अर्थ व्याकरण की दृष्टि से प्रचलित हैं, किन्तु स्मरण शेष रहा जाता है। जाप करने वाली माला में 108 धार्मिक दृष्टि से इसके तीन अर्थ माने गये हैं- 1. सावधान - | मोती होते हैं एवं बीच में तीन मोतियों का एक मेरुदण्ड होता सतत् सावधान रहो, 2. संकल्प - संकल्पवान् रहो, 3. अनन्य है। जहाँ से जाप प्रारम्भ होता है। जाप सूत अर्थत् सूती धागे श्रद्धा भाव रखो। | अर्थात् सूती धागे से बने मोतियों की होनी चाहिये। सूत की 11. घंटा - घंटा मंगल ध्वनि के प्रतीक रूप में | माला सदा सुख देने वाली होती है। सोना, चांदी, मूंगा, पात, बजाया जाता है। घंटे की ध्वनि सुनकर दूर के लोगों को भी | कमल बीज, स्फटिक और मोती की माला हजारों उपवासों मन्दिर जी का स्मरण हो जाता है। घंटा बजाते समय हमारे | का फल देने वाली होती है और अग्नि द्वारा पकी हुई मिट्टी, भाव होने चाहिये कि इस घंटे की मंगल ध्वनि तरंगें वहाँ | हड्डी, लकड़ी और रुद्राक्ष की मालाएँ कुछ भी फल देने तक पहुँच जायें, जहाँ हम नहीं पहुँच सकते। ऐसे नन्दीश्वर | वाली नहीं हैं अर्थात् वे मालाएँ अयोग्य हैं। ग्रहण करने योग्य द्वीप, विदेहक्षेत्र, कैलाश पर्वत आदि ऊर्ध्व-मध्य-अधोलोक | नहीं हैं। क्रमशः ...... में जितने कृत्रिम-आकृत्रिम जिन चैत्यालय विद्यमान हैं, जैन अनुशीलन केन्द्र जिन तीर्थ क्षेत्रों की आपने साक्षात् जाकर वंदना की हो, | राज. विश्वविद्यालय, जयपुर यात्रा अधूरी दिमागी कसरत और ख्याली पुलाव के बीच मीलों लंबी गुजर गयी यात्रा अधूरी एक पोले बाँस में पगडंडी बनाकर हवा- सी संशोधन फरवरी-मार्च 2005 के अंक में पेज नं. 41 पर 'आर्यिका श्री मृदुमति जी कृत पुस्तकों का विमोचन' समाचार प्रकाशित हुआ था। वस्तुतः ये पुस्तकें पूज्य आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज द्वारा रचित हैं। आर्यिका श्री मृदुमति जी की प्रेरणा से ये प्रकाशित हुई हैं। संपादक बूढ़ी नदी एक बूढ़ी नदी लीक की लाठी लिये समंदर में डूब जाती है लहरों पर नदी के कुछ चिह्न मिलते हैं । योगेन्द्र दिवाकर, सतना म.प्र. 20 अप्रैल 2005 जिनभाषित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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