Book Title: Jinabhashita 2005 04
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 25
________________ समुदायों में एकत्र हो गोष्ठी करते हैं, पत्र पत्रिकाओं के पन्ने । एक जगह पैसा एकत्र होता है व परिवार के सभी सदस्यों पलटते हैं, फिल्म या धारावाहिक देखते हैं, सभी में परिवार | की आवश्यकतानुसार उसे व्यय किया जाता है । एक छत के वर्तमान स्वरूप से हृदय को बैचेन पाते हैं । आज ढंढने के नीचे रहने से प्रेमभाव तो बढ़ता ही है, आवास की से भी ऐसा बालक नहीं मिलता जो अपने माँ-बाप की इच्छा | समस्या भी हल होती है । बुर्जुगों की समझाईश से युवा पीढ़ी होने पर कावड़ में बिठाकर तीर्थयात्रा करवा दे, ऐसा बेटा | भटकाव से बच सकती है । सुरक्षित वृद्धावस्था परिवार के नहीं मिलेगा जो अपने पिता के द्वारा दिये गये वचन को पूरा | साथ रहने पर ही संभव है । करने के लिए स्वयं वनवास स्वीकार कर ले, ऐसे भाई संयुक्त परिवार के अलग रहने की चाह में दम्पति कहाँ हैं जो भाई के सुख के लिये वनवास में रहे अथवा | अपना घर अलग बसा तो लेते हैं पर फिर उत्पन्न होती है राजमहल में रहकर भी वनवासी का सा रहे । ऐसी मर्यादा, | आर्थिक तंगी, वैचारिक मतभेद, बालकों की अवहेलना, ऐसा त्याग, ऐसी सहिष्णुता मात्र संयुक्त परिवारों में ही पनप | दर्शन के स्थान पर अभिमान, निश्चिंतता के स्थान पर असुरक्षा सकती है । । और पनपता है दंपति के मध्य प्रेम के स्थान पर तकरार, आज हमें सोचना होगा परिवार के बदलते स्वरूप के | कर्तव्य के स्थान पर अधिकार, प्यार के स्थान पर दुत्कार, कारण हमने क्या खोया है ? हमें किन कठिनाईयों का | संस्कार के स्थान पर दुर्व्यव्यवहार । तो हम पुनः सोचने को सामना करना पड़ रहा है ? हमने किन समस्याओं को स्वयं | मजबूर होते हैं - काश! हमारे साथ माता-पिता होते, काश! उत्पन्न किया है ? वर्तमान परिस्थितियों में यदि हम पुनः | हमारे साथ बेटे-बह होते, जीवन में कांटों के सान पर मधवन संयुक्त परिवारों को अपनायें तो राष्ट्रीय स्तर की समस्याओं का निदान सहज ही हो सकता है। ____ यह सत्य है कि संयुक्त परिवार में कुछ बुराईयाँ हैं, देश में बढ़ते औद्योगिकीकरण ने पर्यावरण प्रदूषण | परन्तु शारीरिक, मानसिक, सामाजिक व आर्थिक दृष्टि से को जन्म दिया है । बिजली, पानी की समस्या स्थाई हो गई आज भी वे ही व्यक्ति अधिक सफल हैं जिनके सर पर है । मंहगाई के इस युग में आज नारी भी पुरूष के साथ माता-पिता का साया है । वह परिवार अधिक सुखी है जहाँ कदम से कदम मिलाकर अर्थोपार्जन में लगी है, संस्कारों | घर- आँगन में बेटे- बहू का प्यार परवान चढ़ा हो, जहाँ का पतन देखकर शर्म से हमारा मस्तक झुक जाता है । बच्चों की किलकारी से घर की फुलवारी महक रही हो, दुराचार, अनाचार, पापाचार बढ़ते जा रहे हैं । धार्मिक आस्थाएँ | जहाँ माता-पिता के चरणस्पर्श कर बालक अपनी दिनचर्या लुप्त होती जा रही हैं । कमोबेश देश का ही नागरिक स्वयं के | प्रारम्भ करता है । हमें मानना होगा कि सुविधा के लिये जदा बन तानों- बानों में उलझता जा रहा है । तब हमारा ध्यान | होना पड़े तो शर्म की कोई बात नहीं, किन्तु स्वभाव के पुनः जाता है संयुक्त परिवार की ओर, जहाँ एक चूल्हा | कारण जुदा होना पड़े तो इससे बड़ा कोई अधर्म नहीं है । जलता है, पच्चीस लोग एकसाथ खाना खाते हैं, एक टी0 अंततः वी0 चलता है, सारा परिवार एक साथ मनोरंजन करता है, आर0 के0 मार्बल प्रा0 लि0, मदनगंज-किशनगढ़ भारतवर्षीय श्रमण संस्कृति परीक्षाबोर्ड की परीक्षाएँ श्री दिगम्बर जैन श्रमण संस्कृति संस्थान द्वारा 2006 की परीक्षाएं दिसम्बर माह में संभावित हैं। जो 'भारतवर्षीय श्रमण संस्कृति परीक्षाबोर्ड' स्थापित किया परीक्षा बोर्ड से अपनी पाठशाला को सम्बद्ध करना चाहते गया है जिसमें प्रथम सत्र 2004-2005 में श्रमण संस्कृति हैं वे अतिशीघ्र पत्र व्यवहार करें। सिद्धांत' प्रवेशिका के प्रथम भाग व द्वितीय भाग की परीक्षाएँ पं. सुनील जैन 'श्रवण', परीक्षा प्रभारी 30 व 31 जनवरी 2005 को आयोजित हुई, जिसमें 'भारतवर्षीय श्रमण संस्कृति परीक्षा बोर्ड' मध्यप्रदेश की 18, राजस्थान की 6 एवं महाराष्ट्र पाठशाला श्री दिगम्बर जैन श्रमण संस्कृति संस्थान सांगानेर, जयपुर (राजस्थान) 303902 के 1800 विद्यार्थियों ने परीक्षा दी। आगामी सत्र 2005 -अप्रैल 2005 जिनभाषित 23 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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