Book Title: Jinabhashita 2005 04
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 24
________________ संयुक्त परिवार प्रस्तुति : श्रीमति सुशीला पाटनी जहाँ हर व्यक्ति के दिल में बसता है प्यार, परिवार के किसी भी व्यक्ति का दुःख परिवार के सभी सदस्यों का दुःख होना संयुक्त परिवार की ही विशेषता है । त्याग, क्षमा, दया, सामंजस्य, सहानुभूति के सूत्र यदि कहीं एक साथ देखने को मिल सकते हैं तो वह पावन स्थल है- 'संयुक्त परिवार', जिसे हमारे मनीषियों ने 'मन्दिर' कहा है । भक्ति की स्वर लहरियों से गूंजते प्रभाती गान, बच्चों को हाथ पकड़कर मन्दिर जाते बुजुर्गगण, त्यौहारों पर एक साथ मिलकर उत्साह दिखाते परिवार के सदस्य, परियों की जहाँ हर व्यक्ति होता है, एक दूजे के लिये बेकरार, जहाँ डाले जाते हैं, धर्म, कला, साहित्य, संस्कृति के संस्कार, जहाँ हर दिन लगता है, मानों हो कोई त्यौहार, जहाँ कभी नहीं होता औपचारिक व्यवहार, जहाँ मिलता है बड़ों को आदर, छोटों को प्यार, जहाँ हर व्यक्ति को मिलते हैं समान अधिकार, जहाँ न किसी की जीत होती है, न किसी की हार, जहाँ संघर्ष या बदले की भावना नहीं, बस रहता है प्यार ही धार्मिक कथा सुनाती दादी-नानी, प्यार से खाना खिलाती माँ, प्रेम रस से पूर्ण भोजन बनाती बहुएँ, बड़ों को सम्मान देते हुए प्यार, बच्चे, यह है संयुक्त परिवार का स्वरूप । तकरार के साथ प्यार, मनुहार के साथ आहार, सत्कार के संस्कार - ये हैं संयुक्त परिवार' के आदर्श । तभी तो नववधुएँ अपने बाबुल का घर भूलकर पिया के घर में रम जाती हैं और कहती हैं'मैं तो भूल चुकी बाबुल का घर, पिया का घर प्यारा लगे।' जहाँ सास ससुर में माता- पिता और देवर - ननद में भाईबहिन की छवि दिखाई देती है । एक सुखी संयुक्त परिवार में सदैव सुख- शांति व प्रसन्नता का वातावरण है । सांझा चूल्हा, सांझा कमाई, सांझा खर्च, सांझा सुख और सांझा दुःख ही 'संयुक्त परिवार' को स्वर्ग से सुन्दर बनाता है । - समय बदला, मनोभावनाएँ बदलीं प्रगतिशीलता की ओर बढ़ते कदमों ने अर्थ के साथ स्वार्थ की भावानाएँ बदलती कीं, भौतिकवाद की पनपती विचारधारा में 'सादा जीवन- उच्च विचार' के स्थान पर 'ऐश्वर्य बिना जीवन बेकार' की भावना को जन्म दिया । 'हम दो हमारे दो' के नारों ने 'बुर्जुगों को वृद्धाश्रम छोड़ दो' जैसी प्रथाओं को जन्म दिया, आर्थिक स्वतन्त्रता के नाम पर व्यवसाय बदले, नारी स्वतंत्रता के स्थान पर उच्छृंखलता बढ़ी, सम्मान की भावना का स्थान अभिमान ने लिया, त्याग के स्थान पर भोग की लालसा बढ़ी, इन सबका परिणाम यह हुआ कि व्यक्ति एकाकी परिवार में रहने लगा । दूर- सुदूर क्षेत्रों में बसा होने से परिवार के प्रति ममत्व कम होने लगा, 'पत्नी को परमेश्वर मानने' की भावना ने माता-पिता के प्रेम को नजरअंदाज किया, अहं की भावना ने पारिवारिक बिखराव पैदा किया, परिणामतः आदर्श संयुक्त परिवार की परम्परा टूटने लगी । आज जब भी विभिन्न व्यक्तियों से मिलते हैं, विभिन्न वह पावन स्थल है, जिसे कहा जाता है 'संयुक्त परिवार' । संयुक्त परिवार भारतीय संस्कृति का प्रमुख आधार स्तम्भ है । संयुक्त परिवार एक ऐसा वट वृक्ष है, जिसकी छाँह तले परिवार का हर सदस्य सुख-चैन की नींद ले सकता है । संयुक्त परिवार एक ऐसा सागर है, जिसमें बहुओं रूपी विभिन्न नदियाँ आकर मिल जाती हैं और एक सूत्र हो जाती हैं । संयुक्त परिवार एक ऐसा उपवन है जिसमें विभिन्न रूप, रंग और गंध वाले पुष्प खिलते हैं, परन्तु घर का मुखिया माली की भाँति उन्हें सजाकर, तराशकर रखता है । 'बंधी मुट्ठी लाख की, खुल गई तो खाक की' के सिद्धांतों पर चलने वाले 'अनेकता में एकता का सूत्र देने वाले', 'आवाज दो हम एक हैं' के नारों को बुलन्द करने वाले संयुक्त परिवार सदियों से भारतीय संस्कृति के पोषक व उन्नायक रहे हैं । जब हम संयुक्त परिवार के स्वरूप पर नजर डालते हैं तो हम वहाँ पाते हैं कि एक ही छत के नीचे, अपने सीमित - असीमित साधनों के साथ दादाजी - दादीजी परिवार के मुखिया के रूप में अपने परिवार के सदस्यों को वृक्ष की भाँति प्यार की छांह में रखते हैं । शीतल बयार सा अनुभव देने वाले भाई-बहिन का प्यार स्वतः आँखे नम कर देता है । बहिन या सहेली सा साथ निभाती देवरानी जेठानी की मित्रता मन को भाव-विभोर कर देती है । जहाँ निश्छल प्रेम होता है, नि:स्वार्थ सेवा भाव होता है, निष्कपट आचरण होता है, एक वाक्य में स्वीकारें तो संयुक्त परिवार निःसंदेह एक आदर्श प्रतीक है, आदर्श व्यवस्था है, जो हमारी संस्कृति को पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तांतरित करती है । 22 अप्रैल 2005 जिनभाषित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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