Book Title: Jinabhashita 2004 12
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 3
________________ गये वचन बड़े उपकारी हैं। है। सॅनराइज अर्थात् सूर्य का उदय होना और सॅनसेट अर्थात् उस अबला बुढ़िया को सरसों मिलने से खुशी हो | सूर्य का अस्त हो जाना। उदय होना, उगना कहा गया, जाती, लेकिन जैसे ही मालूम पड़ता कि इस घर में भी गमी उत्पन्न होना नहीं कहा गया। इसीप्रकार अस्त होना, डूबना हो गई है, तो वह आगे बढ़ जाती। ऐसा करते-करते उस कहा गया, समाप्त होना नहीं कहा गया। यही वास्तविकता है। आत्मा का जन्म नहीं होता और न ही मरण होता है। बुढ़िया को धीरे-धीरे आने लगी बात समझ में "अनागत कब मरण में, अतीत कब विस्मरण में ढल चुका पता नहीं, वह तो अजर-अमर है।। ___ संसारी दशा में जीव और पुद्गल का अनादि संयोग स्वसंवेदन यही है," संसार में इसी स्वसंवेदन के अभाव है और पदगल तो पूरण-गलन स्वभाव वाला होता है। में संसारी प्राणी भटक रहा है। यहाँ कोई अमर बनकर नहीं आया। ऐसा सोचते-सोचते वह बुढ़िया संतजी के पास कभी मिल जाता है कभी बिखर जाता है। उसी को देखकर आत्मा के जन्म-मरण की बात कह दी जाती है। केवलज्ञान लौट आयी। के अभाव में अज्ञानी संसारी प्राणी शरीर के जन्म होने पर संतजी ने कहा कि विलम्ब हो गया कोई बात नहीं। हर्षित होता है और मरण में विषाद करता है और यही लाओ सरसों ले आयी। मैं तुम्हारा बेटा तुम्हें दे दूंगा। बुढ़िया अज्ञानता संसार में भटकने का कारण बनती है। बोली- संतजी आज तो हमारी आँखें खुल गयीं। आपकी आज यह बात वैज्ञानिक लोग भी स्वीकार करते हैं दवाई तो सच्ची दवाई है ! आपने हमारा मार्ग प्रशस्त कर कि जो नहीं है, उसे उत्पन्न नहीं किया जा सकता और जो दिया। आपका उपकार ही महान उपकार है। मेरा बेटा है उसका कभी नाश नहीं हो सकता उसका रूपांतरण जहाँ भी होगा, वहाँ अकेला नहीं होगा क्योंकि अड़ौसी अवश्य हो सकता है। रूपांतरण अर्थात पर्याय का उत्पन्न पड़ौसी और भी हैं, जो पहले ही चले गये हैं ! यह संसार है होना या मिट जाना भले ही हो, लेकिन वस्तु का नाश नहीं यहाँ यह आना-जाना तो निरंतर चलता रहता है। होता। बंधुओ! जो पर्याय उत्पन्न हुई है उसका मरण अनिवार्य आप लोग सॅनराइज कहते हैं। सॅनवर्थ कोई नहीं कहता है किन्तु ऐसा मरण आप धारण कर लो कि जिसके बाद और सॅनसेट सभी कहते हैं लेकिन सॅनडेथ कोई नहीं पुनः मरण न हो और ऐसी सिद्ध पर्याय को उत्पन्न कर लो कहता, यह कितनी अच्छी बात है। यह हमें वस्तुस्थिति जो अनंतकाल तक नाश को प्राप्त नहीं होती। की ओर, वास्तविकता की ओर ले जाने में बहुत सहायक समग्र (चतुर्थ खण्ड ) से साभार ट्रेन में खाना ले जाने पर रोक लगेगी गरीबों के मसीहा कहे जाने वाले रेल मंत्री लालू यादव की ट्रेन में गरीब यात्री अब सत्तू, लिट्टी या रोटी, दाल व सब्जी सफर के दौरान अपने साथ नहीं ले जा सकेंगे। केटरिंग नीति में बदलाव के बाद अब ट्रेनों में सफर के दौरान यात्रियों द्वारा खाने-पीने के सामान ले जाने पर प्रतिबन्ध लगाने की तैयारी की जा रही है। यात्रियों को सफर में भोजन कैटरर्स द्वारा ही उपलब्ध कराया जायेगा। इसका खर्च यात्रियों के टिकट में ही शामिल कर दिया जाएगा। सभी ट्रेनों में आरक्षित सीटों से संबंधित यह योजना अगले साल जनवरी में लागू होने की संभावना है। कैटरिंग नीति में बदलाव के तहत रेल विभाग स्टेशनों पर चाय, नाश्ते आदि के स्टॉल लगाने की इजाजत उन्हीं लोगों को देगा जिनका सालाना टर्नओवर करोड़ों में होगा। जो वेन्डर इस शर्त को पूरा नहीं कर सकेगा, उसे स्टेशनों पर स्टॉल नहीं मिलेंगे। नई कैटरिंग नीति से रेलवे स्टेशन जल्द ही मल्टीने गनल कम्पनियों के फूड प्लाजा और स्टॉलों से पट जायेंगे। ऐसा होने पर ए श्रेणी के स्टेशनों पर एक कप चाय पाँच से दस रुपये में मिलेगी। नाश्ते आदि की कीमत भी आसमान छूने लगेगी। इस योजना के तहत आरक्षित बोगियों के सभी यात्रियों को भोजन कैटरर ही उपलब्ध करायेंगे और इसके लिए रकम यात्रियों के टिकट में शामिल कर ली जायेगी। रेलवे अधिकारी तर्क दे रहे हैं कि ऐसा होने से ट्रेनों में नशीला पदार्थ खिलाकर यात्रियों को लूटने की घटना पर अंकुश लगेगा और ट्रेनों में सफाई व्यवस्था भी बेहतर होगी। वैसे, जो यात्री घर का भोजन ले जाना चाहेंगे, उन्हें इसके लिए रेलवे से अनुमति लेनी होगी। अहम् बात यह है कि रेलवे का कोई भी अधिकारी इस योजना के बारे में औपचारिक रुप से बोलने को तैयार नहीं है। "अमर उजाला' से साभार दिसंबर 2004 जिनभाषित 1 www.jainelibrary.org Jain Education International For Private & Personal Use Only

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