Book Title: Jinabhashita 2004 12 Author(s): Ratanchand Jain Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra View full book textPage 6
________________ किया गया कि आरोपों की जाँचकर अपराधी गुरु को मुनिपद से च्युत किया जाय। उन्होंने एक के बाद एक कई पत्र भेजे, किन्तु बहुत दिनों तक किसी ने भी जाँचपड़ताल करने की कोशिश नहीं की। केवल यह हुआ कि उन पत्रों को पढ़ने-सुनने मात्र से मुनिभक्तों में दो गुट बन गये। एक ने जाँचपड़ताल किये बिना ही, उक्त गुरु को दोषी मान लिया और दूसरे गुट ने भी परीक्षा किये बिना ही आँखे बन्द कर उन्हें निर्दोष घोषित कर दिया। जातीय व्यामोह के कारण भी श्रावक विभाजित होकर पक्ष-विपक्ष में खड़े हो गये। बहुत दिनों बाद भारतवर्षीय दि. जैन शास्त्रिपरिषद की प्रेरणा से एक ग्यारह-सदस्यीय जाँचसमिति गठित की गयी और उसने आचार्य विरागसागर जी एवं उनके संघस्थ त्यागी, व्रती एवं साधुओं से लिये गये बयानों के आधार पर निर्णय दिया कि आचार्य विरागसागर जी पर लगाये गये आरोप असत्य हैं। (देखिए, 'जैनगजट', 23 अक्टूबर 2003)। किन्तु यह जाँच अपूर्ण थी, क्योंकि इसमें उन आर्यिकाओं के बयान नहीं लिये गये थे, जिन्होंने 'आज तक' टीवी चैनल के 'जुर्म' नामक धारावाहिक में अपने गुरु पर आरोप लगाये और जिनमें से एक (विकासश्री) ने यह स्वीकार किया कि उसके गुरु ने उसके साथ दुष्कर्म किया था। (देखिए, 'विरागवाणी', नवम्बर 2004, में प्रकाशित 'कारंजा(लाड) से निन्दा प्रस्ताव', पृ. 38)। ___ यद्यपि उक्त आर्यिका के द्वारा टीवी पर स्वीकार किये जाने मात्र से यह सिद्ध नहीं होता कि उसके साथ गुरु के द्वारा दुष्कर्म किया गया है, क्योंकि यह सिद्ध करने के लिए उसे कई प्रश्नों के जवाब देने होंगे, उदाहरणार्थ, उसने आर्यिका जैसे महान् पद पर आसीन रहते हुए अपने साथ दुष्कर्म क्यों होने दिया? दुष्कर्म घटित होने लायक परिस्थितियों के निर्मित होने में सहयोग क्यों दिया? अर्थात् वह अपने गुरु के पास एकान्त में क्यों गयी और उसने गुरु के अश्लील प्रस्ताव क्यों सुनें और उन्हें गोपनीय क्यों रखा? यदि गुरु ने उसके साथ बलात्कार करने की कोशिश की, तो उसने शोर क्यों नहीं मचाया? दुष्कर्म हो चुकने के बाद उसने समाज के उत्तरदायी पुरुषों से तुरन्त शिकायत क्यों नहीं की? अपने माता-पिता को खबर क्यों नहीं भिजवाई? दो या तीन वर्ष तक चुप क्यों बैठी रही? व्यभिचार से अपवित्र हो जाने के बाद भी वह आर्यिका के पवित्र और पूजनीय पद पर क्यों आसीन रही? किसी अन्य योग्य आचार्य से छेदप्रायश्चित्त लेकर पुन: दीक्षा ग्रहण क्यों नहीं की? गुरु के द्वारा शीलभंग किये जाने का उसके पास लोगों को विश्वास दिलाने योग्य क्या प्रमाण है? यदि इन प्रश्नों का उत्तर वह न दे सकी, तो उसके द्वारा लगाया गया आरोप किसी षड़यंत्र का हिस्सा भी सिद्ध हो सकता है। तथापि यह भी सत्य है कि कोई पतित से पतित स्त्री भी सार्वजनिकरूप से यह स्वीकार नहीं करती कि 'मैं व्यभिचारिणी' हूँ। अत: जब आर्यिका जैसे परम पवित्र पद पर आसीन रहते हुए भी कोई स्त्री अपने साथ गुरु के द्वारा व्यभिचार किया जाना स्वीकार करती है, तो गुरु पर सन्देह के लिए अवसर अवश्य प्राप्त होता है। इसके अतिरिक्त मुझे एक ऐसी फाइल देखने को मिली है, जिसमें विद्याश्री और विधाश्री इन दो आर्यिकाओं के, क्रान्ति जैन, रजनी जैन बीना, अंजना जैन, रजनी जैन (द्वितीय) और सन्ध्या जैन, इन पाँच ब्रह्मचारिणियों के तथा एलक विमुक्तसागर, क्षुल्लक विशंकसागर और क्षुल्लक नित्यानन्दसागर के शपथपत्र संगृहीत हैं। इन सभी ने अपना पता 'मार्फत-प्रदीप जैन 17/30, छिली ईंट रोड, घटिया आजमखाँ, पुलिस चौकी के पास आगरा' दिया है। शपथ पत्र-महामंत्री, जिनसंस्कृति रक्षा एवं संवर्धक समिति आगरा (उप्र) के समक्ष प्रस्तुत किये गये हैं। सभी के द्वारा दिए गए शपथपूर्वक बयान का प्रमाणीकरण दस-दस रुपये के स्टाम्प पेपरों पर दस-दस रुपये के नोटोरियल टिकिट के साथ नोटरी आर.के. बंसल (मवाना-तहसील, आर.एन. 01 (17) 02 गवर्नमेन्ट आफ यू.पी.) ने दि. 12.12.03 को किया है। सभी के गवाह श्रीवल्लभ एडवोकेट (आर.एन.यू.पी. 689/91) मवाना (मेरठ) हैं। इन सभी शपथपत्रों में आचार्य विरागसागर पर उनके उपर्युक्त शिष्य-शिष्याओं के द्वारा उसी प्रकार के आरोप लगाये गये हैं जैसे 'आज तक' टीवी के 'साधु या शैतान' नामक 'जुर्म' धारावाहिक में विधिश्री और विकासश्री आर्यिकाओं ने लगाये हैं। इन शपथपत्रों से उक्त गुरु पर सन्देह की गुंजाइश और दृढ़ हो जाती है। इसलिए सन्देह के निवारण हेतु निष्पक्ष एवं गहन सामाजिक जाँच की आवश्यकता उपस्थित होती है। ___ इसके लिए एक ऐसी उच्चस्तरीय एवं अखिल भारतीय स्तर की जाँचसमिति गठित की जानी चाहिए, जिसमें 4 दिसंबर 2004 जिनभाषित Jain Education International - For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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