Book Title: Jinabhashita 2004 12
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

View full book text
Previous | Next

Page 28
________________ श्री वर्णी दिगम्बर जैन गुरुकुल, पिसनहारी की मढ़िया, जबलपुर (म. प्र. ) महान शिक्षाविद् महासन्त प्रातः स्मरणीय 105 क्षुल्लक श्री गणेशप्रसाद जी वर्णी ने अपने जीवनकाल में देश में अनेक शिक्षण संस्थाओं का शुभारंभ कराया। उनका मानना था कि देश की प्रगति शिक्षा से ही संभव है। इसी कड़ी में महाकौशल क्षेत्र की संस्कारधानी जबलपुर में आध्यात्मिक शिक्षा के प्रचार-प्रसार हेतु सन् 1946 में उन्होंने पिसनहारी मढ़िया क्षेत्र में गुरुकुल की स्थापना की। प्रारंभ में श्री वर्णी जी स्वयं इसके अधिष्ठाता रहे। उसके पश्चात् श्री पं. देवकीनन्दन जी, पं. जनन्मोहनलाल जी शास्त्री एवं पं. मोहनलाल जी शास्त्री आदि श्रेष्ठतम विद्वान् यहाँ के अधिष्ठा रहे । सुप्रसिद्ध साहित्यमनीषी डॉ. पं. पन्नालाल जी साहित्याचार्य सन् 1986 से फरवरी 2001 तक यहाँ के अधिष्ठाता रहे। उनके समाधिस्थ होने के उपरान्त इस परंपरा का संचालन प्रतिष्ठाचार्य ब्र. जिनेश कुमार जी कर रहे हैं । इस तरह देश के ख्यातिप्राप्त शिक्षकों की सेवाएँ इस गुरुकुल को मिली। प्रारंभ से यहाँ विद्यार्थियों को धार्मिक शिक्षा के साथ लौकिक शिक्षा भी दी जाती है। सन् 1986 में आचार्य श्री 108 विद्यासागर जी महाराज के आशीष से गुरुकुल को नई चेतना प्राप्त हुई, जब यहाँ ब्रह्मचारी भाइयों को आवासित कराकर धार्मिक शिक्षा प्रदान की जाने लगी । यहाँ के ब्रह्मचारीगण विशारद्, शास्त्री, सिद्धान्तरत्न व आचार्य परीक्षा उत्तीर्ण कर सारे देश में विद्वत्ता का प्रकाश बिखेर रहे हैं। शिक्षा के विस्तार की शृंखला में सन् 1999 में जबलपुर समीपवर्ती क्षेत्रों के प्रतिभावान् छात्रों को धार्मिक संस्कारों के साथ शिक्षा की बेहतर सुविधा उपलब्ध कराने के लिए गुरुकुल भवन में ही एक वृहद् छात्रावास प्रारंभ किया गया। जहाँ छात्रों को आवास, भोजन, औषधि व शिक्षा आदि की समुचित सुविधा प्रदान की जाती है तथा छात्र लौकिक शिक्षा के साथ-साथ धार्मिक, नैतिक शिक्षा भी ग्रहण करते हैं। इसके साथ ही व्यावसायिक क्षेत्र में कम्प्यूटर एवं अन्य विधाओं की शिक्षा भी दी जाती है। इसी कड़ी में जुलाई 2000 से गुरुकुल परिसर में श्री वर्णी दिगम्बर जैन गुरुकुल उच्चतर माध्यमिक शाला एवं शिशुओं के लिए अंग्रेजी माध्यम का शिशु मंदिर प्रारंभ 26 दिसंबर 2004 जिनभाषित Jain Education International ब्र. जिनेशकुमार, अधिष्ठाता किया गया है। वर्तमान में यहाँ लगभग 15 ब्रह्मचारी भाई एवं लगभग 100 छात्र आवासित होकर शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। जैनसाहित्य के प्रचार-प्रसार की दृष्टि से सन् 1997 में यहाँ एक विशाल साहित्यकेन्द्र की स्थापना की गई, जहाँ देश भर से प्रकाशित प्राचीन व नवीन सभी प्रकार का श्रेष्ठतम जैन- साहित्य सुगमता से उपलब्ध कराया जाता है। स्व. डॉ. पं. पन्नालाल जी साहित्याचार्य की स्मृति में पुस्तकालय का शुभारंभ भी किया गया है। यह उल्लेखनीय है कि इस गुरुकुल में साधु सन्तों के आवागमन/चातुर्मास आदि समय-समय पर हुआ करते हैं। इन पावन प्रसंगों पर जैन आगमवाचनाएँ और शिक्षणशिविर आदि संचालित हुआ करते हैं। संतशिरोमणि आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज का विशाल संघ के साथ चातुर्मास सन् 1984 व 1988 में गुरुकुल परिसर में संपन्न हुए । आचार्य श्री विद्यासागर जी के सान्निध्य में ही सन् 1981 व 1988 में गौरवशाली विशाल सिद्धान्त वाचना शिविर आयोजित हुए। आचार्यश्री प्रभावक शिष्य श्री 105 क्षु. ध्यानसागर जी के सान्निध्य गुरुकुल के अधिष्ठाता डॉ. पं. पन्नालाल जी के कुलपतित्व में सन् 1993 से 1997 तक लगातार पाँच वर्ष क्रमशः गोलबाजार जबलपुर, कटनी, नागपुर व छिन्दवाड़ा में ग्रीष्मकालीन वाचनाएँ संपन्न हुईं। गौरव का विषय है कि यहाँ से शिक्षा प्राप्त कर अनेक ब्रह्मचारी भाई मुनि, ऐलक, क्षुल्लक पद को धारण कर आत्म-कल्याण के मार्ग पर अग्रसर हुए । यहाँ के पूर्व ब्रह्मचारी भाई शिक्षोपरांत देश में अनेक जगहों पर धार्मिकशिक्षण संस्थाओं का संचालन भी कर रहे हैं । इसी क्रम में ब्र. विनोद जैन (भिंड) द्वारा जैन विषयों पर शोध करनेवाले छात्रों को मार्गदर्शन तथा अनुभवी विशेषज्ञों द्वारा योग व ध्यान का प्रशिक्षण दिया जाता है। भविष्य को दृष्टिगत रखते हुए जबलपुर के ही उपनगर धनवन्तरि नगर में एक विशाल भूखंड पर आधुनिक अंग्रेजीमाध्यम का स्कूल प्रारंभ करने जा रहे हैं। जिसमें कक्षा नर्सरी से 12वीं तक के छात्र सौम्य एवं शांत वातावरण में For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36