________________
मुनि श्री आर्जवसागर जी के भोपाल चातुर्मास 2004 की उपलब्धियाँ
परमपूज्य आचार्य श्री 108 विद्यासागर जी महाराज के तपोनिष्ठ, आगमज्ञ शिष्य पूज्य मुनि श्री 108 आर्जव सागर जी महाराज, पूज्य क्षुल्लक श्री 105 अर्पण सागर जी एवं बालब्रह्मचारी श्री शान्त कुमार भैयाजी का वर्ष 2004 का पावन वर्षायोग श्री दिगम्बर जैन मंदिर टी.टी. नगर में सानन्द सम्पन्न हुआ। इस अवसर पर रत्नकरण्डक श्रावकाचार वारसाणुवेक्खा, तीर्थोदय काव्य, सर्वार्थसिद्धि, एवं गोम्मटसार का स्वाध्याय प्रवचन प्रतिदिन हुआ । प्रत्येक रविवार को जिनागमसंगोष्ठी एवं महाराज श्री के विशेष प्रवचन आयोजित किये गये, जिसका लाभ सम्पूर्ण भोपाल नगर के धर्मप्रेमी बन्धुओं को मिला। दिनांक 29 अगस्त से 29 सितम्बर तक षोडसकारण - पर्व स्थानीय एवं तमिलनाडु आदि विभिन्न स्थानों से पधारे श्रावकों ने उपवास, एकाशन अथवा एक दिन उपवास, एक दिन एकाशन के साथ सम्पन्न किया व मंदिर प्रांगण में ही निवास कर व्रती जीवन जीने का अभ्यास किया । इसी मध्य 18 सितम्बर से 27 सितम्बर तक दस लक्षण पर्व एवं रत्नत्रय व्रत के साथ 29 सितम्बर को क्षमावाणी पर्व का आयोजन भी किया गया। पर्यूषण पर्व में प्रतिदिन रात्रि में समाज को विद्वान पंडित डॉ. (प्रो.) रतनचन्द्र जी के प्रवचनों का लाभ प्राप्त हुआ।
2 अक्टूबर 2004 का वह विशेष दिन था जब विभिन्न विद्यालयों से आये छात्र-छात्राओं की तरीके 'अनुशासनबद्ध' से सुन्दर, आकर्षक गणवेश में अहिंसा रैली निकाली गई व मध्यान्ह शाकाहार सम्मेलन का आयोजन हुआ, जिसमें बड़ी संख्या में धर्म-प्रेमी बन्धुओं ने भाग लिया। सभा की अध्यक्षता माननीय श्री उमाशंकर जी गुप्ता, परिवहन मंत्री, मध्यप्रदेश शासन ने की तथा माननीय श्री बाबूलाल जी गौर, मुख्यमंत्री, मध्यप्रदेश शासन इस सभा में मुख्य अतिथि के रूप में पधारे। श्री हुकुमचंद जी सांवला, विश्व हिन्दू परिषद के केन्द्रीय मंत्री सभा में विशिष्ट अतिथि थे।
माननीय मुख्यमंत्री जी ने महाराज श्री द्वारा रचित "तीर्थोदय काव्य" पुस्तक का भी विमोचन किया गया। दिनांक 3 अक्टूबर को अखिल भारतीय कवि-सम्मेलन का आयोजन था, जिसमें भोपाल के प्रसिद्ध कवि श्री चन्द्रसेन जी के अतिरिक्त बाहर से पधारे कई प्रमुख कवियों ने अपना कविता-पाठ किया। सम्मेलन में महाराज श्री ने भी
30 दिसंबर 2004 जिनभाषित
समाचार
Jain Education International
अपनी कविताओं को पढ़ा।
दिनांक 21 अक्टूबर से 31 अक्टूबर तक पं. रतनलाल जी बैनाड़ा के निदेशन में सर्वोदय विद्या संस्कार शिक्षण शिविर का आयोजन किया गया। शिविर में बाल-बोध द्रव्यसंग्रह, तत्त्वार्थ सूत्र एवं ईष्टोपदेश की कक्षाएँ लगाई गई, जिसमें सभी उम्र के व्यक्तियों ने भाग लेकर अध्ययन किया एवं परीक्षा में उत्तीर्ण होकर प्रमाण-पत्र प्राप्त किये।
दिनांक 6 एवं 7 नवम्बर को वर्तमान परिप्रेक्ष्य में "षोडशकारण भावनाओं का व्यवहारिक रूप एवं वैज्ञानिक दृष्टि" विषय पर द्वि-दिवसीय अखिल भारतीय विद्वत् संगोष्ठी का गरिमापूर्ण आयोजन किया गया जिसमें देश के लब्ध-प्रतिष्ठ अनेक विद्वानों ने भाग लिया। संगोष्ठी में डॉ. श्रेयांस कुमार जैन बड़ौत ने मोक्षमार्ग में साधर्मी वात्सल्य की प्रधानता', डॉ. श्री जयकुमार जैन मुजफ्फरनगर ने 'श्रावकाचार में सल्लेखना का स्वरूप', डॉ. एल. सी. जैन जबलपुर ने 'जैनागम में जगत का स्वरूप', डॉ. देव कुमार जैन प्रसिद्ध वैज्ञानिक दिगी ने 'अभीक्ष्ण ज्ञानोपयोग में विज्ञानिक चिन्तन', डॉ. रतनचन्द्र जैन भोपाल ने 'सोलह कारण भावानाओं में दर्शन-विशुद्धि भावना', डॉ. धीरेन्द्रपाल सिंह कुलपति हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय सागर ने 'जैन दर्शन में विनय सम्पन्नता', श्रीपाल जैन 'दिवा' भोपाल ने 'तीर्थोदय काव्य में विनय सम्पन्नता', श्री सुरेश जैन, आइ. ए. एस. ने ' षोडशकारण भावनाओं का लौकिक जीवन के विकास में योगदान', श्री निरंजनलाल जी बैनाड़ा आगरा ने' दर्शन - विशुद्धि भावना का विवेचन कारणानुयोग एवं द्रव्यानुयोग के आधार पर, श्री शिखरचंद जैन सागर ने 'तीर्थंकर प्रकृति के बंध में अर्हत आदि 4 भक्तियों का योगदान', पं. भागचंद जी जैन 'इंदु' छतरपुर ने 'षोडशकारण भावनाओं में व्रत व शील का महत्व', श्री लालचंद जैन 'राकेश' गंजबासौदा ने 'तीर्थोदय काव्य' का कला पक्ष एवं भाव पक्ष', श्री सुधीर जैन भोपाल ने ' षोडशकारण भावनाओं में स्व- पर कल्याण की भावना का समावेश', श्री संजय कुमार जैन पथरिया ने 'षोडशकारण भावनाओं में शक्तितत्याग व तप भावना' एवं श्री जितेन्द्र जैन जबलपुर ने' आवश्यकों की परिपूर्णता' पर अपने आलेखों का वाचन किया। श्री अजितकुमार पाटनी भोपाल ने, जिनके संयोजन में इस संगोष्ठी का एक सफल आयोजन हुआ, "अर्हद्भक्तिभावना में अर्हत् के 46 गुण व समवसरण का वर्णन "
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org