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प्रतीक बनकर रह रहा है, तीब्र क्रोध करने वाला, बैर को न छोड़ने वाला, बात-बात पर झगड़ा करना जिसका स्वभाव हो और धर्म या से रहित हो, दुष्ट हो, किसी की बात नहीं मानने वाला काला कंकड़ नदी में पड़े-पड़े कहता है, वह कृष्ण लेश्या का धारक है।
अपने कर्त्तव्य और अकर्त्तव्य, सत्य-असत्य को जानता हो, सब में समदर्शी हो, दया व दान में रत हो, मृदु स्वभाव का धारक हो, ज्ञानी हो, शील का धारी हो । " दृढ़ता रखने वाला हो। अपने कार्य में पटुता रखने वाला हो । पीत वर्ण का पीला कंकर नदी में पड़ेपड़े कह रहा है, यह पीत लेश्या, तेजो लेश्या का धारक है।
नील लेश्या - नील की गोली या नीलमणि या मयूर के कण से समान नील वर्ण वाला नदी में पड़ा नीले वर्ण कंकर नील लेश्या का प्रतीक बन कह रहा है। बहुत निद्रालु हो, पर प्रशंसा करने में कुशलता रखते हो और धन सम्प्रति-वस्तुओं के संग्रह में विशेष रुचि रखने वाले हो। नील वर्ण का कंकर नदी में पड़े-पड़े कहता है, वह नील लेश्या का धारक है।
पद्म लेश्या - पद्म सदृश वर्ण वाली अर्थात् कमल के फूल के समान वर्ण वाली, नदी में पड़ा पद्म के वर्ण वाला कंकर पद्म लेश्या का प्रतीक बनकर कह रहा है, जो त्यागी हो, भद्र परिणामी हो, चोखा सच्चा हो, उत्तम कार्य करने वाला हो, बहुत अपराध या हानि होने पर भी क्षमा कर दे, साधु जनों के गुणों के पूजन में निरत हो, सत्य वचन का धारक हो । देव - गुरु-शास्त्र में रुचि रखने वाला हो। पद्म वर्ण का कंकर नदी में पड़े-पड़े कहता है, यह पद्म लेश्या का धारक है।
कापोत लेश्या - कबूतर के समान वर्ण वाली अर्थात् राख के समान नदी में पड़ा राख के रंग के समान कंकर कापोत लेश्या का प्रतीक बन कर कह रहा है, जो दूसरों के ऊपर क्षोभ करता हो, दूसरों की निन्दा करता हो, दोष लगाने में आगे हो, शोक करने में आगे हो, डरपोक हो, दूसरों से ईर्ष्या करता हो, अपनी प्रशंसा करता हो, पर का विश्वास न करता हो, अपनी हानि - वृद्धि को नहीं जानता हो, स्तुति किये जाने पर ही सन्तुष्ट होता हो । कापोत वर्ण का कंकर नदी में पड़े-पड़े कहता है, वह कापोत लेश्या का धारक है।
नदी के तट पर रेत पर पड़े एक नहीं अनेक कंकर पत्थर के बीच यहाँ छै रंग के कंकर में से तीन रंग के कंकर की बात अशुभ बुरे संकेतों के साथ कह चुके हैं। अब अंतिम तीन रंग के कंकर की बात शुभ अच्छे संकेतों के द्वारा कहने जा रहे हैं।
जिसे जैन दर्शनकारों ने तेजो लेश्या कहा है। तेजो लेश्यातप्त स्वर्ण के समान वर्ण वाली, इसे पीत वर्ण भी कहते हैं । पीत लेश्या नदी की मृदु गोद में पड़ा स्वर्ण के रंग के समान पीला कंकर पीत लेश्या तेजो लेश्या का प्रतीक बनकर कह रहा है, जो
बोधकथा
शुक्ल लेश्या शंख के समान वर्ण वाली या कांस के फूल के समान श्वेत वर्ण वाली, नदी में पड़ा श्वेत वर्ण वाला कंकर शुक्ल लेश्या का प्रतीक बनकर कह रहा है, जो पक्षपात न करता हो, न निदान करता हो, सब में समान व्यवहार करता हो, जिसे दूसरों के प्रति राग-द्वेष व स्नेह न हो। श्वेत वर्ण का कंकर नदी में पड़े-पड़े कहता है, यह शुक्ल लेश्या का धारक है ।
इस प्रकार कषाय से सनी हुई प्रवृत्ति को लेश्या कहते हैं, इस कारण से आदमी जीव, पुण्य-पाप से अपने आप को लिप्त करता है। इस प्रकार कंकर अपना संकेत दे मानव की दशा को सुधार मानवता का निर्माण कर जल, जलना नहीं बहना सिखाता है। इसी प्रकार नदी समता, ममता बिखेरते हुए बहती रहती है। रुकना काम नहीं। सीख लेने वाले लेकर चले जाते हैं । इस प्रकार नदी पर चिन्तन समाप्त हुआ।
कुल्हाड़ी की तीर्थयात्रा
एक कुल्हाड़ी बैलगाड़ी में बैठकर तीर्थयात्रा को निकली। मार्ग में जंगल मिले। वहाँ के सभी वृक्ष कुल्हाड़ी को देख कर कांप उठे। उनके मन में यह भय समा गया कि कहीं यह हमारे अंगों को काट न दे।
कुछ वृक्ष तो कुल्हाड़ी को देखकर रुदन करने लगे। तब वन के एक अतीव वृद्ध तथा अनुभवी वट वृक्ष ने गंभीरता पूर्वक कहा- आपके रोने-धोने से कुछ नहीं होगा। भूल तो हमारी ही है। वृक्षों ने एक स्वर में प्रश्न किया, कैसी भूल ?
वट वृक्ष ने कहा कि हम में संगठन नहीं है। हम सभी अपने में एकरूप होकर नहीं रहे, अपने में समाये नहीं रहे। कुल्हाड़ी के बैंटे में जो लकड़ी है, वह हमारी ही जाति की है। हमारी जाति वाले ने ही हमें काटने का काम किया है। यह हमारे असंगठित रहने के कारण ही हुआ है और हो रहा है
लोहा तब तक वृक्ष के, काट न सकता अंग । जब तक उसको काष्ठ का, प्राप्त न होता संग ॥
वयोवृद्ध अनुभवी वट वृक्ष की बात सुनकर सभी वृक्ष अपनी भूल पर नतमस्तक
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डॉ. आराधना जैन, गंजवासौदा
फरवरी 2004 जिनभाषित 11
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