Book Title: Jinabhashita 2004 02
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 23
________________ होकर उसने अपने ऑपरेशन को देखा। उसने खोपड़ी खोलने । यह सब मृत-प्राय मस्तिष्क का मतिभ्रम है किन्तु मतिभ्रम तभी वाला वह औजार (आरी) देखा, जो एक विधुत टूथ-ब्रुश के | संभव है जब कि मस्तिष्क कुछ तो क्रियाशील हो और यदि एक समान था। उसने एक महिला की आवाज यह कहते हुए सुनी की | बार सभी प्रयोजनों के लिये मस्तिष्क निष्क्रिय-निर्जीव हो गया है रोगी की रक्त वाहिकाएँ बहुत छोटी (पतली) हैं। रीनोल्ड को तो उस दशा में मतिभ्रम भी संभव नहीं है। ऐसा लगा कि वे लोग उसकी ऊरु-मूल (groin)(जंघा) पर फिर निष्क्रिय मस्तिष्क के होने पर 'मृत्यु निकट अनुभव' शल्य क्रिया करने वाले हैं। उसने सोचा कि यह सही नहीं हो | क्यों? यह प्रश्न वैज्ञानिकों, धर्मविज्ञानियों और सामान्य जनों के सकता, क्योंकि यह तो एक मस्तिष्क की शल्यक्रिया सम्बन्धी | समक्ष अभी भी अनुत्तरित है। यदि मृत्यु एवं जीवन के सम्बन्ध में रोग है, फिर जंघा में शल्य क्रिया कैसी? उसने कल्पना की कि आज के वैज्ञानिकों द्वारा स्वीकृत सिद्धान्त स्वीकार किये जाते हैं तो शायद मस्तिष्क के भीतर की जा रही शल्यक्रिया के कारण उसे उक्त प्रकार की घटनाएँ होनी ही नहीं चाहिए (आधुनिक चिकित्सा मतिभ्रम हो गया होगा। किन्तु यद्यपि उसकी आँखे और कान | नैदानिक मापदंडों के अनुसार हृदय की धड़कन, श्वांस-प्रच्छवास, भली-भांति सील कर बंद कर दिये गये थे तब भी उसने जो देखा | मस्तिष्क की क्रियाशीलता ही जीवन है और इन सबका न रह वही वास्तव में हो रहा था। शल्यक्रिया सम्बन्धी वह आरी विद्युत | जाना मृत्यु है।) अत: कुछ वैज्ञानिकों का तर्क है कि विज्ञान को टूथ-ब्रुश जैसी थी। शल्य चिकित्सक वास्तव में उसकी जंघा | आत्मा की संभावना पर भी विचार/तलाश करना चाहिए। (ऊरु-मूल) पर कार्य कर रहे थे क्योंकि उसके हृदय को एक । जब उक्त लेख के लेखक ने एक ब्रिटिश शोधकर्ता सुसान हृदय फेफड़ा मशीन से जोड़ने के लिये एक नाल-शलाका को ब्लेकमोर (Susan Blackmore) पी.एच.डी.से रीनोल्ड के मृत्यु वहाँ ले जाना था। निकट अनुभव के बारे में पूछा कि इस विषय में उनकी क्या सोच ___ डॉक्टर स्पेट्रजलर ने उसके शरीर से खून बहाते हुए | है ? ब्लेकमोर ने इस प्रश्न का उत्तर ई-मेल से दिया, 'यदि आपके (आपरेशन में खून बहता है) साथी डॉक्टरों को, रीनोल्ड को | द्वारा वर्णित यह घटना सही है तो पूरे विज्ञान का पुनर्लेखन करना गतिविहीन (Stand still) रखने का आदेश दिया। उसके शरीर | होगा' अर्थात् ब्लेकमोर ने उस पूरी घटना को ही सही नहीं माना। में लगे प्रत्येक यंत्र के प्रत्येक पाठ्यांक (reading) के अनुसार | ब्लेकमोर ने अपने शोध ग्रन्थ 'डाइग टू लिव''Dying to रीनाल्ड के शरीर से जीवन निकल चुका था, वह निष्प्राण थी | live' में लिखा है कि मृत्यु पूर्व अनुभव सुरंग में यात्रा करना आदि अर्थात् जीवित अवस्था में होने वाली सभी बाहृय और आन्तरिक | जैसे अनुभव और शरीर से बाहर के अनुभव कुछ मनोवैज्ञानिक क्रियाएँ समाप्त हो चकी थी। तब भी उसने अपने आपको एक | घटनाओं/कारणों से हो सकते हैं। मस्तिष्क की शल्य क्रिया के सुरंग के जरिये प्रकाश की तरफ यात्रा करते हुए पाया। उस सुरंग | दौरान स्थानीय निश्चेतक की अवस्था में कभी-कभी रोगी शरीर के अंतिम छोर पर उसने उसकी बहुत पूर्व मृत दादी, अन्य से बाहर अनुभव 'out of body experience' सूचित करते हैं। रिश्तेदार और मित्रों को देखा। ऐसा लगा कि मानो समय रूक गया | इसी प्रकार के अनुभव कुछ अन्य लोग, हशीश और अन्य निश्चेतक है। तब उसके एक चाचा ने उसे उसके शरीर तक वापस पहुँचाया | लेने के प्रभाव में रहते समय भी करते हैं। इस प्रकार के अनुभव और उससे वापस होने को कहा। इस समय उसे ऐसा लगा मानो | चाहे वे किसी भी प्रकृति के हों और कितने भी वास्तविक लगें पर वह वर्फ सम शीतल जल में गोता लगा रही हो। और वापस आने | वे मृत--प्राय मस्तिष्क (dying brain) के साथ प्रारंभ होते हैं और के बाद (ऑपरेशन के बाद) उसने डॉक्टर से वह सब कहा जो | उसी के साथ समाप्त भी हो जाते हैं। पर जब मस्तिष्क पुनः उसने देखा तथा अनुभव किया था। ऐसी घटना/घटनाओं को | क्रियाशील हो जाता है तब भी वे क्यों स्मरण में रहते हैं, यह वैज्ञानिकों ने एन.डी.ई. (Near-Death experience) अर्थात् | अभी भी अनुत्तरित है? मृत्यु निकट अनुभव नाम दिया है। क्रमश ..... पहले तो वैज्ञानिकों ने इस प्रकार की घटनाओं को निरस्त निदेशक, जवाहर लाल नेहरु कर दिया। परम्परागत चिकित्सा स्पष्टीकरण यह दिया गया कि स्मृति महाविद्यालय, गंजबासौदा -फरवरी 2004 जिनभाषित 21 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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