Book Title: Jinabhashita 2004 02
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 26
________________ है। ऊपर माला लिये हुये गंधर्वो की मूर्तियाँ हैं। दुर्ग जिले के पास नगपुरा ग्राम में भगवान पार्श्वनाथ की धमतरी में प्राचीन किले के क्षेत्र में (अब तो किले के | एक भव्य प्रतिमा मिली है। यहाँ सभी धर्मावलंबी इनकी पूजा अवशेष एवं खाइयाँ भी समाप्त हो गई हैं) किले का हनुमान मंदिर करते हैं। राष्ट्रीय राजमार्ग क्र. ६ पर कठवा पुलिया में कई जैन एवं उसी के पास प्रसिद्ध जैन मंदिर है। प्रतिमायें जड़ी हुई हैं। इसी मार्गपर मरकाटोला पुलिया में भी जैन बस्तर क्षेत्र में प्रतिमायें हैं। बस्तर क्षेत्र में भी लगभग दसवीं-ग्यारहवीं ई. में जैन धर्म संदर्भ सूची के इस क्षेत्र में विस्तृत होने के प्रमाण मिलते हैं। १. बस्तर का मूर्ति शिल्प विवेकदत्त झा १९८९ - पृ. १११ एक आधुनिक देव मंदिर में ग्यारहवीं सदी की ऋषभनाथ | २. छत्तीसगढ़ दर्पण डॉ. रामगोपाल शर्मा २००१ पृ.१ की दो भुजाओं वाली पद्मासन मुद्रा की प्रतिमा है। ध्यानमुद्रा में | ३. प्राचीन छत्तीसगढ़ प्यारेलाल गुप्त, रविशंकर वि.वि. प्रकाशन हैं एवं वक्ष पर श्रीवत्स चिन्ह है पीठासन पर बैठा हुआ वृषभ है। पृ. २११ दो ओर भरत एवं बाहुबली एवं आसन के नीचे सिंहों के मध्य | ४. बिलासपुर अंचल के दो महत्वपूर्ण गढ़- लाकागढ़ और चक्र है। गजाभिषेक का भी अंकन है। पेण्ड्रागढ़-पी-एच.डी.शोध प्रबंध तरु तिवारी १९९७ पृ. राबर्ट्सन बिल्डिंग जगदलपुर के पास एक मंदिर में खंडित | | २१५ (अप्रकाशित) प्रतिमा है इसमें लांछन तो नहीं दिखता किंतु आसन के नीचे दो | ५. मल्हार का स्थापत्य कला में योगदान लघुशोध प्रबंध राकेश सिंहों के बीच धर्मचक्र स्पष्ट है अत: यह ऋषभनाथ प्रतिमा हो। कुमार बेले (अप्रकाशित १९८४-८५ पृ. ७१) सकती है। ६. मल्हार स्थल सर्वेक्षण द्वारा __बारसूर में पार्श्वनाथ की एक प्रतिमा गढ़ बोधरा में दूसरी | ७. लघुशोध प्रबंध बेले उपरोक्त पृ. ७१ प्रतिमा मिली है। धारसूर की प्रतिमा में सात फणों का छत्र है । | ८. स्थल सर्वेक्षण द्वारा गढ़ बोधरा की प्रतिमा पद्मासन में है ये ग्यारहवीं सदी की है। । ९. मल्हार दर्शन रघुनंदन प्रसाद पाण्डेय, कृष्ण कुमार त्रिपाठी पृ. ३४ केसरपाल में पद्मावती की एक चतुर्भुजी प्रतिमा है, सिर | १०. वही ----------- पृ ४३ पर सर्प फण है, नीचे पैर के पास मुर्गा अंकित है। ये पार्श्वनाथ | ११. रिपोर्ट आफ ए टूर इन दि सेंट्रल प्राविंसेस ए कनिंधम की यक्षिणी है। १८७३-७४ पृ. २३७-३८ कांकेर के राजापारा में अंबिका की चतुर्भुजी प्रतिमा पदमासन १२. म.प्र. जिला गजेटियर बिलासपुर, हिंदी संस्करण १९९२ पृ. ४८७ मुद्रा में हैं। इनके हाथों में आम फलों का गुच्छा, अंकुश, पाश एवं १३. बिलासपुर जिला गजेटियर १९०९ पृ. २६५-२६६ शिशु का अंकन है ये नेमिनाथ की यक्षिणी हैं। १४. पी.एच.डी. शोध प्रबंध तरु तिवारी पूर्वोक्त प. २८२ कवर्धा क्षेत्र में १५ स्थल सर्वेक्षण द्वारा १६. महंत घासीदास स्मारक संग्रहालय पुरातत्व उपविभाग प्रादर्शिका डॉ. सीताराम शर्मा ने पश्चिम दक्षिण कोसल की कला पर शोध किया है उन्होंने भोरमदेव क्षेत्र एवं कवर्धा में जैन १९६० रायपुर पृ. २० १७. संग्रहालय रायपुर सर्वेक्षण प्रतिमाओं का उल्लेख किया है। उनके अनुसार इस क्षेत्र के प्रायः सभी कला केन्द्रों में जैन प्रतिमायें देखने में आती हैं। इनमें एक मुख्य विशेषता यह है कि अन्य धर्मों की प्रतिमाओं के मध्य ये १९. आर्कियालाजिकल सर्वे रिपोर्ट भाग-७ बेगलर पृ.१८६-१९३ २०. राजिम डॉ. विष्णुसिंह ठाकुर म.प्र. हिंदी ग्रंथ अकादमी जैन प्रतिमायें भी अधिष्ठित हैं। इससे यह पता चलता है कि उस काल के शासकों एवं समाज में धार्मिक सहिष्णुता की प्रवृत्ति थी। १९७२ पृ. ११३ गंडई के पास घुटियारी मंदिर परिसर में जैन प्रतिमायें हैं, २१. बस्तर का मूर्ति शिल्प डॉ. विवेक दत्तझा अभ्युदय प्रकाशन जो कायोत्सर्ग मुद्रा में है। गंडई के किरीत बाँस ग्राम में एक खेत ___ भोपाल १९८९ पू. १११ २२. छत्तीसगढ़ वैभव (अप्रकाशित) डॉ. रामगोपाल शर्मा प्र. २१० में महावीर की प्रतिमा मिली है। २३. भोरम देव क्षेत्र पश्चिम दक्षिण कोसल की कला डॉ. सीताराम बिलासपुर के पंडरिया के जैन मंदिर में पार्श्वनाथ की शर्मा मार्च १९९० संस्करण - पृ. १६०-१६१ प्रतिमा प्रतिष्ठित है यह प्रतिमा कवर्धा के ग्राम बकेला की सीमा में २४. ---- वही ---- पृ. १६१ प्राप्त हुई थी। इतिहास विभाग भोरम देव मंदिर के प्रांगण एवं परिसर में जैन तीर्थंकरों की सी.एम.डी. स्नातकोत्तर महाविद्यालय प्रतिमायें हैं, यद्यपि इनमें अधिकांश खंडित स्थिति में हैं। बिलासपुर (छत्तीसगढ़) तारा १८. वही 24 फरवरी 2004 जिनभाषित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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