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अभूतपूर्व अनावश्यक पाप
ब्र. शान्तिकुमार जैन कोई एक पाप का काम ऐसा है जो कि भगवान महावीर | नियम भी तुरन्त ले लेते हैं। बड़े लोग नहीं ले पाते। के समय से अब तक २५०० वर्षों में आपके पूर्व पुरुषों में से | कहना यह है कि फिल्म और सीरियल को छोड़कर सब किसी ने भी कभी किया नहीं, और आप भी २५ वर्ष पहले कभी | कार्यक्रम देखना चाहें तो देखिये। इस अनावश्यक भयंकर पाप से करते नहीं थे, तथा वह अत्यन्त ही अनावश्यक पाप है जिसके | तो बचना चाहिये। जो बंध हो रहा है वह तीव्र अनुभाग को लेकर करने से शारीरिक एवं आर्थिक कोई लाभ भी नहीं होता एवं जिस | हो रहा है तो उसका फल भी बड़ा घातक, दुःखदायी भोगना पाप के कारण पाँच पाप व सात व्यसन करने से होने वाले पाप | पड़ेगा। फिर बचने का कोई उपाय नहीं रहेगा। कर्म का बंध होता है। इस प्रकार का एक अभूतपूर्व अनावश्यक | कोई कहे कि एक ही कमरा है। टी.वी. भी चलती है, तो पाप कार्य करने का त्याग आप कर सकते हैं क्या?
उसकी तरफ पीठ या पार्श्व भाग में बैठ सकते हैं। देखने की मना उत्तर यह मिलेगा कि ऐसा व्यर्थ का पाप का त्याग करने | ही है, सुनने की अभी छूट रख लेवें। कोई हँसी मजाक भी करे तो में क्या बाधा है ? ऐसा पाप कौन सा है बताया जाय। त्याग कर बड़े गर्व से बोलिये कि हमारा टी.वी.देखने का त्याग है। पाप को दिया जायेगा।
छोड़ने में क्या शर्म है। बताने में क्या लाज है। आपके सम्मान से उस पाप को कराने वाले शैतान के डिब्बे का नाम है | वह भी प्रभावित होकर त्याग कर देवें। उस कमरे में आते-जाते टी.वी.। टी.वी. की बीमारी का तो इलाज कथंचित हो सकता है | में पर्दे पर नजर पड़ती जाय तो कोई बात नहीं परन्तु पैर रुकना नहीं पर यह नई बीमारी बुरी तरह से फैल गई है। देखने वाले यह | चाहिए। अनुभव भी करते हैं कि इसका दुष्प्रभाव दिल-दिमाग पर गहरा __ कोई कहे कि फुरसत/अवकाश के दिनों में समय कैसे काटें? पड़ता है, फिर भी इससे बचना नहीं चाहते।
तो भाई, आपके पूर्व पुरुष अपना जीवन कैसे बिताते थे। अच्छा टी.वी. देखना एक दम सम्पूर्ण रूप से छोड़ दें तो उत्तम | साहित्य पढ़िये, धर्मध्यान, पूजा-पाठ, माला-जाप, प्रवचन की कैसेट है। अन्यथा कम से कम फिल्म और सीरियल देखना तो पूर्णतया सुनना, तत्त्वचर्चा, बच्चों के साथ मनोरंजन, सुबह-शाम टहलना, छोड़ देना चाहिए। एक कहानी के रूप में जो घटना- दुर्घटना, | हल्के खेलकूद, आसन व्यायाम, इनडोर गेम इत्यादि अनेक प्रकार के अनाचार-व्यभिचार, दु:ख-शोक, बंधन-क्रन्दन, वाद-विवाद, मार- | साधन हैं जिसमें आनन्द लिया जा सकता है, शुभ कार्यों के चिन्तन काट, युद्ध-संघर्ष, हत्या-आत्महत्या, छल-कपट, चोरी-डकैती, | से पुण्य अर्जन कर सकते हैं। अपने जीवन के अनुभवों की पुस्तक अपहरण-आतंकवाद इत्यादि सभी प्रकार के बुरे कार्यों को देखकर | लिखें जो कि नई पीढ़ी के काम आयेगी। पेंटिंग-फोटोग्राफी में रुचि कुशिक्षा मिलती है। दर्शक उस अभिनय के साथ एकमेक होकर | ले सकते हैं। इस अनावश्यक व्यर्थ का पाप कार्य को करते रहना तो कभी रोता है, कभी हँसता है, खलनायक की हार या मृत्यु चाहता | वास्तव में अत्यन्त हानिकारक अनर्थ ही है। है, दृश्य के अनुरुप मानसिक प्रवृत्ति करता है, व्यभिचार के दृश्य | अवकाश के समय को परोपकार, के समय बिजली बन्द हो जाय तो अफसोस करता है कि रोचक | की देखभाल का कार्य तीर्थ यात्रा, सन्तसमागम इत्यादि अनेक दृश्य देखने से छूट गया, देखा नहीं जा सका। अर्थात् उपरोक्त अच्छे कार्यों में लगाकर सातिशय पुण्य उपार्जन कर सकते हैं, सभी कार्यों में दर्शक पूर्णतः स्वाद लेता है।
समाज में मान प्रतिष्ठा प्राप्त कर सकते हैं। छोटे बालक, युवक गंभीर रूप से प्रभावित हो जाते हैं। | टी.वी. देखकर दुःख-शोक करने से तो अच्छा है कि पास उनका अध्ययन बिगड़ जाता है। वैसे घृणित कार्य करने लगते हैं। | पड़ोस में कोई दीन-दुःखी परिवार में आधि-व्याधि ग्रस्त कोई कामवासना के चैनल सहज उपलब्ध हो रहे हैं। अविवाहित | व्यक्ति के पास थोड़ी देर बैठना, दु:ख-दर्द सुनना, उसे धीरज माताओं की संख्या बढ़ती जा रही है। विज्ञान ने सिद्ध किया है कि | दिलाना भी महान कार्य है। इस करुणा भाव से भी अपको बालक-बालिकाओं के मस्तिष्क का विकास एवं यथावत कार्य | अनिवर्चनीय सुख, शांति, संतोष की अनुभूति होगी। प्रणाली बाधित हो जाती है। आँखों की शक्ति खराब हो जाती है। | टी.वी. की फिल्म, सीरियल-धारावाहिक को जहाँ प्रस्तुत समाज में विसम्वाद होते हैं। परिवार में झगड़े होते हैं। दाम्पत्य | किया जा रहा है वहाँ कोई पाप नहीं हो रहा है। वहाँ हत्या, जीवन छिन्न, भिन्न हो जाता है। नाते, रिस्ते टूट जाते हैं। वृद्ध, | व्यभिचार आदि कुछ नहीं हो रहा है । सब कुछ नाटक है, बनावटी अपाहिजों का जीवन नरक बन जाता है। सन्तान से सेवा नहीं | दृश्य उस रूप तैयार किया जाता है। आप व्यर्थ में उन दृश्यों को मिलती। सारा विश्व आज इस छोटे से बक्से से परेशान है। देखकर , कथा के प्रवाह में बहकर पाप के समुद्रों में डूब रहे हैं, विश्व के सभी देश-समाज के संस्कार, संस्कृति बिखरती जा रही | जो कि पहले कभी न तो किया न कभी देखा। पाप मन से होता है है, कोई भी उपचार-प्रतिकार नजर नहीं आता।
| तन से हो या नहीं भी हो, पर पाप का बंध तो हो ही जाता है। बच्चों को समझाते हैं तो वे बोलते हैं कि मम्मी-पापा देखते | अतः इस आधुनिक विज्ञान की भयावह मशीन रूपी शैतान के हैं तो हम भी देखते हैं। वे तो दिन-रात देखते हैं हमें तो स्कूल भी | डिब्बे से दूर रहकर अभूतपूर्व अनावश्यक पाप को करने से अपने जाना है, होम वर्क भी करना पड़ता है। एक-दो घंटे समय बांधकर | आप को बचाइये।। 18 फरवरी 2004 जिनभाषित -
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