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कुलटा, चंचला, वेश्या कह दी जाती है।
चेष्टाएँ आज भी नहीं हो रही हैं, क्या आज भी द्रौपदियों का पंचभर्तारी कहलाने की व्यथा-कथा पूर्वोपार्जित पाप का | कदम-कदम पर चीरहरण नहीं हो रहा है? सब कुछ वही का ही परिणाम था। वह एकनिष्ठ पतिव्रता सती क्या विवेकहीना थी? | वही है, अन्तर सिर्फ यही है कि नाम, देश, काल और वातावरण वह युधिष्ठिर और भीम को पितृतुल्य मानती थी और देवर नकुल- परिवर्तित है। बहुत दूर जाने पर द्रौपदी वर्तमान की महिलाओं को सहदेव को पुत्रवत् स्नेह प्रदान करती थी। अर्जुन की वामांगी थी प्रेरणा दे रही है। जैसे आकाश में एक-एक बादल जीवन लेकर लेकिन सुनना क्या-क्या नहीं पड़ा? क्षत्रिय कुल की क्षत्राणी | आता है और सूखी प्यासी धरती उसकी ओर याचना भरी दृष्टि से राजकन्या भी नारी होने के कारण सामान्य नारी से अधिक नहीं देखती है और वह बादल स्वयं को नि:शेष कर पृथ्वी के सूखे आँकी गई।
आँगन को उर्वर कर जाता है, ठीक इसी प्रकार वर्तमान की नारियों नारद अपनी अहं पुष्टि के लिए उसका अपहरण करा देता | के लिए द्रौपदी का चरित्र है। वह नारी जीवन के वास्तविक है। द्रौपदी के महल से शैय्या सहित उड़वाकर राजा पद्मनाभ के | परिचय को प्राप्त कराती है तथा स्वयं अपने इतिहास को महिमान्वित अन्तः पुर में द्रौपदी के शील की खील बिखरवाने भेज देते हैं। करती है। नारी साधना का चरमोत्कर्ष इनके चरित्र में निर्माण कर अर्थात् नारी के लिए सुर-असुर, राजा-महाराजा सब एक ही हैं। | अवतरित हुआ। नारी जागृति की लहर फूंकनेवाली द्रौपदी ऐसी नारी के चरित्र का उनकी दृष्टि में कोई अर्थ नहीं। किन्तु पद्मनाभ नारी है जिसने समाज के गत्यवरोध में बहनेवाली काली कुरूप के घर में भी वह उसे दुत्कारते हुए कह देती है
कुरीतियों का विध्वंस किया। इनकी परिस्थिति ने सतीत्व का "हे राजन् यदि तू अपना कल्याण चाहता है तो सर्पिणी के | अमर संचरण किया। वन में भटकते हुए भी अपने अन्तस् में समान मुझे शीघ्र ही वापिस भेज दे । तूने मेरा अपहरण कर साँप | सेवा, सौहार्द, प्रेम सहयोग का उद्रेक रखा। इसके स्वर में युगनारी के बिल में ही हाथ डाला है।" द्रौपदी ने मासोपवास करके वहाँ के स्वर की गूंज है और इसके चरित्र में अमिट और स्पष्ट रेखाओं अपने शील की रक्षा की। वह तनिक भी नहीं घबराई और न ही | में बंधी नारी की लटकती तस्वीर है जिसने नारीत्व के विकास को कर्तव्यपथ से विचलित हुई।
अभिप्रेरणा दी। आज भी क्या नारी के चरित्र पर कीचड़ उछालने वाले
के.एच.-२१६ कविनगर
गाजियाबाद लम्पटी दरिन्दे विद्यमान नहीं है? क्या व्यंग्यबाणों से अश्लीलतापूर्ण
बोधकथा
तीनों में कौन अच्छा?
करना।"
किसी ब्राह्मणी के तीन लड़कियाँ थीं। ब्राह्मणी अपनी | लड़की ने अपनी माँ से जाकर कहा। माँ बोली, "बेटी लड़कियों से बहुत प्रेम करती थी और चाहती थी कि वह उन्हें | तू निश्चिन्त रह । तेरा पति भी तेरा दास बनकर रहेगा। परन्तु तू किसी अच्छे कुल में दे जिससे वे जीवन भर सुखी रह सकें। | उसे विशेष अप्रसन्न मत करना, मर्यादापूर्वक चलना।"
जब लड़कियाँ सयानी हुई तो उनकी माँ ने उन्हें समझाया, | तीसरी लड़की ने भी यथावत् माँ के आदेश का पालन "देखो बेटियो, विवाह के पश्चात् अपने पति से लात से बात | किया। जब उसने अपने पति के ऊपर पाद-प्रहार किया तो
उसके पति ने रुष्ट होकर उसकी खूब मरम्मत की, और गुस्से में तीनों लड़कियों का विवाह हो गया और वे अपनी- | आकर वहाँ से उठकर वह चला गया। अपनी ससुराल चली गयीं। पहली लड़की ने जब अपने पतिदेव लड़की डरती-डरती अपनी माँ के पास पहुँची और उसे को लात मारी तो वह उसके चरणों को हाथ से सहलाता हुआ सब हाल कह सुनाया। माँ ने कहा, "बेटी, तू चिन्ता न कर । तुझे कहने लगा, "देवि, कहीं तुम्हारे फूल-जैसे इन कोमल चरणों सर्वोत्तम वर मिला है। तू होशियारी से रहना। अपने पति की को चोट तो नहीं पहुँची?"
कभी अवज्ञा न करना। उसकी देवता के समान पूजा करना, लड़की ने यह बात अपनी माँ से कही। माँ ने कहा, क्योंकि नारियों का भर्ता ही देवता है।" "बेटी, तू निश्चिन्त होकर रह । तेरा पति तेरा दास बनकर लड़की ने अपने पति के पास जाकर क्षमा माँगी। उसने रहेगा।" दूसरी लड़की ने भी प्रथम परिचय में अपने पति को | कहा, "स्वामी यह हमारे कुल में रिवाज चला आता है, किसी लात जमायी। पति ने साधारण क्रोध प्रदर्शित किया, परन्तु वह | दुर्भावना से मैंने ऐसा नहीं किया।" बिना कुछ विशेष कहे-सुने शांत हो गया।
_ 'दो हजार वर्ष पुरानी कहानियाँ': डॉ. जगदीशचन्द्र जैन
जून 2003 जिनभाषित 17
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