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सदलगा पंचकल्याणक प्रतिष्ठा पर विशेष आवरण जारी
विगत दिनों कर्नाटक की संत प्रसविनी पवित्र धरा पर एक ऐतिहासिक प्रतिष्ठा महोत्सव सानंद एवं निर्विघ्न संपन्न हुआ था । बेलगांव जिले की सीमा के अंतिम छोर पर चिक्कोडी तालुका के अंतर्गत 'सदलगा' वह गाँव अवस्थित है जिसने अनेक दिगम्बर जैन सन्त एवं डॉ. एन. एन. उपाध्ये जैसे मनीषी समाज को दिये हैं। भले ही नगर के सुश्रेष्ठ श्रावक श्री मल्लप्पा जी अष्टगे की धर्मांगिनी श्रीमती श्रीमती जी अष्टगे की कुक्षी से बालक 'विद्याधर' का जन्म १० अक्टूबर १९४६ को चिक्कोड़ी के प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र में हुआ था । किन्तु बालक गिनी, मरी, तोता आदि उपनामधारी 'विद्याधर' का लालन पालन जिस पवित्र भूमि में हुआ था, सहोदर अनन्तनाथ, शांतिनाथ जैसे भ्राता एवं शांता और सुवर्णा जैसी भगिनियों के साथ ज्येष्ठ भ्राता महावीर ने भी जहाँ जन्म लिया था, उस भूमि के विशिष्ट स्पर्श से ही प्रायः पूरा घर वैराग्यरूपी मोक्षपथ पर आरुढ़ हो गया।
प्रसाद जैन ( २ / ११ रूपनगर, देहली- ११०००७, फोन०११ - २३९१७३८९३/२३९३५६८२ ) के परिजन एवं साथीजनों ने इस स्थली को जिनायतन का रूप देने का कार्य श्री महावीर अष्टगे परिवार तथा सदलगा निवासी जैन बन्धुओं के सहयोग से प्रारम्भ किया। और वह अतिशीघ्र अब 'कल्याणोदय तीर्थ' का रूप धारण कर सके, इस पवित्र भावना से अष्टधातु से निर्मित तीर्थंकर शांतिनाथ भगवान् की पद्मासनस्थ प्रतिमा का निर्माण जयपुर में कराकर धर्म प्रभावना पूर्वक सदलगा के इस जिनालय हेतु लाई गई।
२ फरवरी से ८ फरवरी २००३ तक इस अतिमनोज्ञ जिनबिंब की पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव मुनि श्री नियमसागर जी महाराज एवं आर्यिका गुरुमति जी के ससंघ सान्निध्य में लगभग १२० पिच्छिका सौरभ मुनि, आर्यिका, ऐलक, क्षुल्लक एवं क्षुल्लिका माता जी एवं सैकड़ों ब्रह्मचारी ब्रह्मचारिणियों तथा त्यागी वृन्दों की उपस्थिति में प्रतिष्ठाचार्य प्रदीप जैन अशोक नगर द्वारा शास्त्रोक्त विधिविधान पूर्वक संपन्न हुआ। दक्षिण भारत जैन सभा, वीर सेवादल, पूर्व सांसद श्री अवाड़े, श्री सुरेन्द्र प्रधाने आदि के मार्गदर्शन में उस अंचल के प्रत्येक परिवार के किसी न किसी रूप में इस महोत्सव में सहभागी होने से लोगों की भीड़ होने के बाबजूद तथा पुलिस की उपस्थिति के बिना भी सारा महोत्सव निर्विघ्न सानंद सम्पन्न हुआ । इस विशिष्ट अवसर पर प्रतिष्प आयोजन समिति के सूत्रधार श्री महावीर प्रसाद जैन दिल्ली ने प्रयास करके एक विशेष आवरण जारी करवाया है। उस पर एक ओर जहाँ संतशिरोमणि आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज की प्रसन्न मुद्रा है, तो दूसरी ओर स्थापित होने जा रहे शांतिनाथ भगवान् की अष्टधातुमय बिम्ब के बीच में भव्य, आकर्षक शिल्पांकन युक्त शांतिनाथ जिनालय भी दृष्टिगोचर होता है । ८ फरवरी को पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव के उल्लेख युक्त पूज्य गुरुदेव के चित्र सहित विशेष डाक मुहर (सील) डाक तार विभाग द्वारा जारी की गई थी। यह विशेष डाकमुहर युक्त रंगीन आवरण श्री महावीर प्रसाद जैन, दिल्ली के उपर्युक्त पते पर संपर्क करके प्राप्त किया जा सकता है।
आचार्य श्री शांतिसागर जी से नववर्ष की बाल्यावस्था में जागरण के सूर्यग्रहण करने वाले 'विद्याधर' ने आचार्य देशभूषण जी से ब्रह्मचर्य व्रत सप्तमप्रतिमाधारण की और मुनिश्रेष्ठ श्री ज्ञानसागर जी महाराज से जैनेश्वरी दीक्षा धारण कर 'विद्याधर' से 'मुनि विद्यासागर' बन गए। 'खरबूजा का संग पाकर खरबूजे का रंग बदलना' उक्ति सार्थक हो उठी । और फिर आचार्य विद्यासागर जी से दीक्षा पाकर शांतिनाथ जी बन गए 'मुनि समय सागर जी' एवं अनंतनाथ जी बन गए 'मुनि योगसागर जी'। भरे-पूरे परिवार की तीन पवित्र आत्माओं की वैराग्यदशा से प्रेरणा लेकर आचार्य प्रवर श्री धर्मसागर जी महाराज से दीक्षा पाकर पिता श्री मल्लप्पा जी हुए 'मुनि श्री मल्लिसागर जी एवं माता श्रीमती जी हुई आर्यिका श्री समयमती जी । इन्हीं के साथ शांता और सुवर्णा ने भी चारित्र का मार्ग अंगीकार कर लिया। एक ही परिवार के ८ में से ७ सदस्य कल्याण- पथ पर अविराम रूप से यात्रा करने लगे ।
ऐसे पुण्य शाली परिवार ने जहाँ पर गृहस्थ जीवन में श्रावकोचित षट्आवश्यकों का यथोक्त परिपालन किया था, वही स्थली 'कल्याणोदय तीर्थ' श्री १००८ शांतिनाथ दिगम्बर जैन मंदिर के रूप में जैन समाज के बीच धर्माराधना का केन्द्र बनने वाली थी। दिल्ली निवासी श्री महावीर
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