Book Title: Jin Pujan Author(s): ZZZ Unknown Publisher: ZZZ Unknown View full book textPage 7
________________ जयमाला दोहा भक्ति भरी आराधना, कर लो प्रभु स्वीकार। शरण आपकी पा गया, हो जाऊँगा पार ॥1॥ ज्ञानोदय छंद जय-जय आदिनाथ तीर्थंकर, धर्म सारथी तुम्हें प्रणाम। निज स्वभाव साधन से तुमने, पाया शाश्वत मुक्तिधाम।। पंद्रह मास रतन बसे औ, माँ को सोलह स्वप्न दिये। तीन ज्ञान के धारी जिनवर, भूतल पर विख्यात हुये।।2।। जंबूद्वीप के भरत क्षेत्र में, नगर अयोध्या महा विशाल। नाभिराय अंतिम कुलकर से, जन्में मरुदेवी के लाल।। देवों ने अति हर्ष भाव से, पाण्डु शिला अभिषेक किया। बालपने में ही जिनवर ने आत्म शक्ति को दिखा दिया।।3।। राज्य अवस्था में ही सारे, जग के कष्ट मिटाये थे। मोक्ष पंथ के राही थे पर, शुभ षट्कर्म सिखाये थे। नीलांजन का नृत्य देखकर, वस्तु स्वरूप विचार किया। लौकांतिक देवों ने आकर, नत हो जय-जय कार किया ।।4।। सिद्धारथ वन में जाकर प्रभु, निज आतम का किया मनन। नमः सिद्धेभ्यःभावों से क, सब सिद्धों को किया नमन।। एक हजार वर्ष तप करके, शुक्लध्यान में हुए मगन। चार घातिया कर्म नाश कर, पाया केवलज्ञान गगन।।5।। मैं संसारी कर्म जाल में, फंसा चतुर्गति किया भ्रमण। रुचि न जागी सिद्ध स्व पद की, अतः कर रहा जन्म मरण।।Page Navigation
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